जख पलायन की मार सी,
सुलगणा छन सवाल,
कथैं जाणु छ आज,
हमारु कुमाऊं अर गढ़वाल....
गाड मा घुम्दा था घटट,
होयां छन आज खामोस,
दुर्दशा देखि आज तौंकी,
मन मा होन्दु अबसोस......
जान्दरा अब नि रिंग्दा,
आज होयां छन अड़गट्ट,
पिसै कू सस्तु साधन थौ,
रोठठी बणौदा था फट्ट.....
बग्दा पाणी का धारा,
अब जख नि देखेन्दा पनेरा,
पनेरौं की कछड़ि लग्दि थै,
धारौं फर मुल्क मेरा.....
तिबारी डिंडाळ्यौं मा,
अब नि सज्दि बैखु की कछड़ि,
दाना सायाणा सब्बि बैठिक,
छ्वीं लगौन्दा था दगड़ि.....
घुग्ति आज भी बास्दिन,
बांजी खाली खड़बट्ट छन सार,
घुग्दि आज ऊदास होयिं छन,
क्वी नि देणु ऊं मा रैबार......
गौं का गौं खाली खाली,
मनखि छन कुल द्वी चार,
सुनपट्ट सी पसरयुं छ,
पहाड़ होयुं लाचार......
देवभूमि मा यू क्या होणु?
हे बद्रिविशाल,
पहाड़ मा आप हि रला,
खाली कुमौं अर गढ़वाल.....
No comments:
Post a Comment