कैन स्वोचि, छैल देलि,
घाम सी बचालि,
फल फूल भी लगला,
ध्यान करिक जग्वाळि,
धर्ति कु श्रृंगार भी ह्वोलु,
यीं आस मा पाळि....
नजर अपणि अपणि,
कैन स्वोचि, मोर अग्वाड़ि,
छैल कन्नि छ या डाळि,
किलैकि ह्युंद लग्युं छ,
यींका फांगा काटि देवा,
ह्युंद का घाम कु,
खूब मजा ल्येवा.....
रुड़्यौं का दिन ऐन,
डाळि ह्वोयिं थै,
खूब झप्पन्याळि,
छैल मा बैठिक छ्वीं,
लगौणा भै बंध गढ़वाळि,
जन भी स्वोचा?
डाळि पाळिक फैदा खूब,
यीं आस मा हि पाळि....
गाड गदना का धोरा,
होन्दि ज्व डाळि,
वीं फर धागु बांधिक,
भूत, पिचास अर खबेस,
पूज्दा हम गढ़वाळि,
कुजाणि क्या ह्वे जान्दु,
सूखि जान्दि स्या डाळि.....
-जगमोहन सिंह जयाड़ा ‘जिज्ञासू’
ग्राम- बागी नौसा, चंद्रवदनी,
टिहरी गढ़वाळ।
दूरभाष: 9654972366,
दिनांक 22/11/2017
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