यमनगरी मा म्येरी,
एक कला दीर्घा बणावा,
धर्ति मा छन बृजमोहन नेगी,
ऊं तैं झटपट ल्हावा.....
दमड़ि का बिना,
धर्ति मा चित्रकार,
करि नि सकणा था,
खुलिक कला श्रृंगार.....
कनु दुर्भाग्य छ,
सरकारन नि करी सहयोग,
पौड़ी मा बणै देन्दा कला
दीर्घा,
देख्दा सब्बि ल्वोग.....
धर्ति मा कदर निछ,
साहित्य कला कु सम्मान,
हुनरवान रै जांदन,
चाटुकार पौंदा मान.....
यम ह्वोलु ब्वोन्नु,
नेगी जी, खूब करा चित्रकारी,
दिखै द्येवा हुनर कला कु,
या इच्छा छ हमारी....
अब नि दिखेण धर्ति मा,
स्वर्गवासी नेगी जी
चित्रकार,
कवियों की कविता कु,
करदा चित्रकारी सी श्रृंगार.....
शत् शत् नमन अर श्रद्धाजंलि,
आपतैं मान्यवर नेगी जी,
आपका स्वर्गवासी ह्वोण फर,
कविमन दु:खी ह्वेगि जी.....
-जगमोहन सिंह जयाड़ा ‘जिज्ञासू’
ग्राम- बागी नौसा, चंद्रवदनी,
टिहरी गढ़वाळ।
दूरभाष: 9654972366,
दिनांक 27/11/2017
रंत रैबार मा प्रकाशित मेरी या श्रद्धाजंलि कविता
रंत रैबार मा प्रकाशित मेरी या श्रद्धाजंलि कविता
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