अक्ल बंटेणि थै जब,
लगिं थै लंबी
लैन,
मर्द लग्यां लैन
मा,
जनानि क्वी नि
थैन....
भारी अचरज
ह्वोण लग्युं,
कख गैन सब्बि
जानानि,
पता लगि
ब्यूटी पार्लर मा,
बण्नि रुप की
खजानि....
ब्यूटी पार्लर
बिटि जब,
सब्बि बौड़िक
ऐन,
अक्ल बंटेगि
थै सब,
मन मा दु:खि
ह्वेन....
भटे भटेक रोण
लग्यन,
अनर्थ ह्वेगि
आज,
हम्त पिछ्नै
रैग्यौं,
अग्नै बैख
समाज.....
परमेसुर की
निंद टूटि,
मच्युं भारी
लराट,
पूछि तब
जनान्यौं तैं,
किलै ह्वोयुं ऊकताट....
जनानि तब
ब्वोन्न लग्यन,
अक्ल हम्तैं
भी देवा,
हम जनानि जात
छौं,
असगार कतै न
ल्येवा....
परमेसुर तब
ब्वोन्न लग्यन,
अक्ल सब्बि
बंटेगि,
कखन द्येण मैंन
अब,
भारी अनर्थ
ह्वेगि....
जनानि तब
ब्वोन्न लग्यन,
सुणा परमेसुर हमारी
बात,
निसाब करा हम
दगड़ि,
हम छौं जनानि
जात....
परमेसुरन तब बताई,
देणु छौं
वरदान,
मुल्ल
हैंसल्या जब तुम,
मर्द मूर्ख
समान....
एक जनानि
ब्वोन्न लगि,
हैंसणु असौंगु
काम,
जिंदगी भर
रोन्दा छौं,
कब्बि निछ
आराम.....
परमेसुरन ब्वोलि
तब,
रोणु छ भलि
बात,
मर्दु की मति
हरण ह्वे जालि,
बात तुमारा
हात....
एक जनानि
ब्वोन्न लगि,
हैंसणु रोणु कतै
नि औन्दु,
झगड़ा करिक
काम बणौणु,
सुभौ हमारु होन्दु....
परमेसुरन
ब्वोलि तब,
मर्दु दगड़ि
जब करल्या झगड़ा,
मर्द तब डरिक
रला,
जिन्दगी मा
तुमारा दगड़ा....
तीन कळा की
धनि तुम,
रोणु, हैंसणु,
झगड़ा,
मूर्ख बणिक
मर्द सदानि,
रला तुमारा
दगड़ा.....
-जगमोहन सिंह जयाड़ा
जिज्ञासू
दिनांक 15/11/2017
No comments:
Post a Comment