जनि कटार चोट की,
बगड्वाळधार का नजिक,
त्यूंसा की,
रौडधार का नजिक,
ज्वान्याँ की,
पौड़ीखाळ का नजिक,
चन्द्रबदनी मंदिर का ओर पोर,
टिहरी गढ़वाळ मा,
जख फुन्ड हिटदा था,
प्यारा मुल्क का मनखी,
गौं-गौळौं, मैत-सैसर,
औन्दि जान्दी बग्त,
लम्बा लैंजा लगैक,
छ्वीं बात्त लगौंदु-लगौंदु,
पता नि लगदु थौ,
कब हिटि होला,
"तड़-तड़ी ऊकाळ",
अपणा मुल्क धमा-धम.
रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
दिनांक:१.२.११
सर्वाधिकार सुरक्षित यंग उत्तराखंड, पहाड़ी फोरम पर प्रकाशित"
गढ़वाळि कवि छौं, गढ़वाळि कविता लिख्दु छौं अर उत्तराखण्ड कू समय समय फर भ्रमण कर्दु छौं। अथाह जिज्ञासा का कारण म्येरु कवि नौं "जिज्ञासू" छ।दर्द भरी दिल्ली म्येरु 12 मार्च, 1982 बिटि प्रवास छ। गढ़वाळि भाषा पिरेम म्येरा मन मा बस्युं छ। 1460 सी ज्यादा गढ़वाळि कवितौं कू मैंन पाड़ अर भाषा पिरेम मा सृजन कर्यालि। म्येरी मन इच्छा छ, जीवन का अंतिम दिन देवभूमि उत्तराखण्ड मा बितौं अर कुछ डाळि रोपिक यीं धर्ति सी जौं।
Tuesday, February 1, 2011
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