तन मन मेरा नन्हा,
बिखर रहा बचपन माटी में,
मुझे पता नहीं है,
निश्चिंत हो माटी के संग,
खेल रहा हूँ,
ऐसा है बचपन मेरा,
बीतने पर नहीं लौटेगा,
मुझे पता नहीं है,
मैं तो मस्त हो माटी में,
एक अलख जगा रहा हूँ,
बीता होगा बचपन आपका,
माँ और माटी के संग,
याद दिला रहा हूँ।
-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
24.1.2013
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