आज मैं जाण लग्युं,
रौंत्याळी अखोड़ी,
सच बोला त,
दर्द भरी दिल्ली छोड़ी,
द्वी चार दिन मा,
जरूर बौड़िक औलु,
नौकरी का बाना,
जन्मभूमि गढ़वाल छोड़ी.....
-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
16.1.2013
गढ़वाळि कवि छौं, गढ़वाळि कविता लिख्दु छौं अर उत्तराखण्ड कू समय समय फर भ्रमण कर्दु छौं। अथाह जिज्ञासा का कारण म्येरु कवि नौं "जिज्ञासू" छ।दर्द भरी दिल्ली म्येरु 12 मार्च, 1982 बिटि प्रवास छ। गढ़वाळि भाषा पिरेम म्येरा मन मा बस्युं छ। 1460 सी ज्यादा गढ़वाळि कवितौं कू मैंन पाड़ अर भाषा पिरेम मा सृजन कर्यालि। म्येरी मन इच्छा छ, जीवन का अंतिम दिन देवभूमि उत्तराखण्ड मा बितौं अर कुछ डाळि रोपिक यीं धर्ति सी जौं।
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