नखरी भलि ब्वै का हात की,
भेजिं वे पहाड़ बिटि,
तरसेणु सी रैलि तू,
बचपन मा चाखिं खयिं,
अपणा मुल्क घर गौँ मा,
याद आज भी औन्दि होलि,
पैणु पात, स्वाला, पकोड़ा,
चूड़ा, बुखणा, आरसा, रोटाना,
पिंगलु कंक्र्यालु घरया घ्यू,
कोदु, झंगोरू, कौणी, कंडाळी,
चुक्युं आज सब्बि धाणि,
ब्वै बुबा छन स्वर्गवासी,
त्वैन भी पहाड़ छोड़यालि,
त्वैकु आज टरकणि,
"कखन खाण भुला त्वैन"......
-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं ब्लॉग पर प्रकाशित
29.12013
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