किसने किया मेरा ये हाल,
कैसे हुआ मैं कंकाल,
धरती पर था मैं एक इंसान,
करता था मतदान,
बनती थी उनकी सरकार,
पेट मेरा भरा नहीं,
मजदूरी करता था,
स्वयं मैं मरा नहीं,
मुझे मार दिया उन्होने,
अपने पेट की आग,
बुझाने के लिए,
मंहगाई बढ़ा बढ़ा कर,
क्या करूँ,
आज हूँ मैं एक कंकाल..
-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
30.1.2013
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