पर्वतजन को ही नहीं,
सबको प्यारे लगते हैं,
जंगलों का हरा आवरण ओढ़े,
दूध जैसी बहती जल धाराएँ,
घाटियौं में बहते निर्मल नीर की,
नदियों की मालाएँ,
पर्वत शिखरों पर सफेद,
टोपीनुमा ऊँची चोटियाँ,
सुन्दरता इतनी पहाड़ की,
जहाँ विचरण करते हैं,
देवी, देवता और परियाँ,
जिसकी जन्मभूमि पहाड़ हो,
सौभाग्य है उसका,
कवि "जिज्ञासु" की अनुभूति है,
जन्मभूमि पहाड़ के प्रति,
बागी-नौसा गाँव जहाँ,
कुलदेवी चन्द्रबदनी मंदिर के पास......
-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
सर्वाधिकार सुरक्षित अवं प्रकाशित
27.1.2013
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