पतझड़ में...
गिरा दिए पात अपने,
धरा पर वृक्षों ने,
इस आस में,
कि बसंत आएगा,
हमारा श्रृंगार करने,
पतझड़ है,
बसंत के लिए,
मर मिट गया,
बसंत के,
आगमन से पहले......
बसंत में.....
हो रहा है सृंगार,
वृक्षों का,
कहीं कलियाँ,
कहीं फूल,
खिलने लगे हैं,
बौळया बुरांश,
लगा रहे हैं बंणाग,
बांज के बण में,
हमारे पहाड़ में,
खूबसूरत डाँड्यौं में,
चलो निहार आयें,
चन्द्रबदनी मंदिर के पास,
बसंत में........
-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं ब्लॉग पर प्रकाशित
20.2.13
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