मनखि आज मनखि नि रैगि,
हैंस्दु भिछ त सुदि दिखावटी,
कन हैंसदा था मनखि,
मेरा मुल्क प्यारा पहाड़,
जबरी दुःख ही दुःख,
फिर भी खुश रन्दा था,
खित खित अर मचौन्दा था,
भारी खिग्चाट,
पाखा पलटे जांदा था,
मुल मुल भि हैंसदा था,
ये जमाना मा ज्यादा सुख सी,
भौत दुखी छन मनखि,
एक हैक्का देखिक भी,
चार दिन किछ या जिंदगी,
खूब हैंसा यीं धरती मा,
यख सदानि कैन नि रण,
बाकि तुमारी मर्जी,
हैंसा या रोवा,
पर केका खातिर....
-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं ब्लॉग पर प्रकाशित
22.2.13
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