खुदेणु रयौं भौं कबरि,
जब जब याद मैकु आई,
आंसू भि निकळयन,
आँखौं बिटि मेरा,
ज्यू पराण ह्वै भारी ऊदास,
मन मा खुदेड़पन कू,
होंदु रै अहसास.....
देख्यां मनख्यौं की,
खुद भारी सतौन्दि,
बग्त बे बग्त भारी,
याद भि औन्दि,
तुम सनै भि,
औन्दि होलि हमारी,
याद करदु रयन,
कृपा होलि तुमारी....
मैं त भौत खुदेणु छौं,
"तुमारी खुद मा",
ऋतु मौळयार छयिं छ,
फयोंलि मैत अयिं छ...
-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
सर्वाधिकार सुरक्षति एवं ब्लॉग पर प्रकाशित,
27.2.2012
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