डांडी कांठ्यौं मा कुयेड़ि,
लगिं छ झक्काझोर,
बसगाळ्या बरखा ऐगि,
नाचणु मन कू मोर......
तिबारि मा रिटणु बोडा,
ह्वक्का का ओर पोर,
बोडि उस्यौंण लगिं छ,
भडडु फर तोर.....
गाड गदन्यौं मा होण लग्युं,
पाणी कू सुस्यांट,
बोडा बैठ्युं छ तिबारि मा,
होणु बाखरौं कू भिभड़ाट...
डांड्यौं मा कुयेड़ि रिटिणि,
दिखेणु निछ भैर,
फोथ्लौं कू किबलाट होणु,
कखि बासणु मैर......
चौक अग्वाड़ि डाळी मा बैठि,
घुघति होयिं ऊदास,
बरखा कू धिड़क्वाणि लग्युं,
बदळ्यु छ आगास.....
भारी जग्वाळ होयिं थै,
कब होलि बसगाळ्या बरखा,
बोडा जी नात्यौं तैं बोन्ना,
हे चुचौं भीतर सरका.....
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु,
सर्वाधिकार सुरक्षति,
दिनांक 25.6.2015
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