ज्युकड़ि टुकड़ि टुकड़ि करिक,
हैंस्दु हैंस्दु चलिग्यें,
मन सी सोच हे लठयाळा,
भौंकुछ तू करिग्यें......कवि जिज्ञासु ऊवाच
हैंस्दु हैंस्दु चलिग्यें,
मन सी सोच हे लठयाळा,
भौंकुछ तू करिग्यें......कवि जिज्ञासु ऊवाच
लाल दा अर बिष्ट जी अपणि दिव्य दृष्टि जरुर डाळ्यन अर मन का उद्गार भी हास्य अंदाज मा व्यक्त करयन, या मेरा कविमन की आस छ आपसी।
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