जब बिटि आई,
तब बिटि ह्वैग्यन,
मेरा गौं का रोगी,
बोला त भोगी,
अपणा अपणा भितर,
यकुलि बैठिक,
देखणा छन समाचार,
होणु छ शहरी,
संस्कृति कू प्रचार,
दिल्ली वाळा भैजि कू,
फोन औन्दु त बतौन्दा,
हे भैजि,
आज तुमारी दिल्ली मा,
क्या ह्वैगि हपार,
आप की बणिगि सरकार....
जै दिन मैच हो,
ठप्प ह्वै जान्दि धाण,
हळ्या भैजि भि बोल्दु,
आज मैंन हौळ नि लगाण,
लग्दा जब चौक्का छक्का,
ह्वै जांदन हक्का बक्का,
डौर भि लग्दि,
कखि बिजळि न चलि जौ,
मोळ माटु नि ह्वै जौ.....
बोडि का नौना कू,
फोन आई,
बेटा आज बिजळि,
नि थै दिन भर गौं मा,
वे तैं बोडिन बताई,
यू फोन त मैंन,
बजार भेजिक,
चार्ज करवाई,
त्वैकु बोलि थौ,
एक इन्वर्टर लगै दे,
बिजळि कू,
क्वी भरोंसु नि रन्दु,
अंधेरा मा दिखेन्दु निछ,
मैं गज बज लग्युं रन्दु......
बिजळि का खातिर,
गौं का छोरा,
ट्रांसफार्मर रन्दन घच्चकौणा,
ऐगि बिजळि, गौं जथैं,
धै रन्दन लगौणा,
किलैकि तार ढीलु होण सी,
बिजळि नि औन्दि,
भारी आफत ह्वै जान्दि,
हमारा गौं मा,
बिजळि का बिना,
बिजळि कू राज छ आज,
गुलाम ह्वैगि गौं समाज.....
-जगमोहन सिंह जयाडा़ जिज्ञासु,सर्वाधिकार सुरक्षित,
ब्लाग फर प्रकाशित, दिनांक 12.6.2015
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