दिपावली: झिलमिल-झिलमिल दिवा जगि गैना....
देहरादून। गढ़वाली में जगमोहन सिंह जयाड़ा " जिज्ञासु"की कविता है,
'जै दिन बानी-बानी का,
पकवान बणदा छन,...
वे दिन कु बोल्दा छन,
रे छोरों आज पड़िगी,
बल तुमारी बग्वाल।'
देहरादून। गढ़वाली में जगमोहन सिंह जयाड़ा " जिज्ञासु"की कविता है,
'जै दिन बानी-बानी का,
पकवान बणदा छन,...
वे दिन कु बोल्दा छन,
रे छोरों आज पड़िगी,
बल तुमारी बग्वाल।'
सचमुच ऐसा ही रूप रहा है पहाड़ में बग्वाल का। 'बग्वाल' व 'इगास' संभवत: गढ़वाली में दीपावली के ही पर्यायवाची हैं।
http://www.jagran.com/spiritual/religion-dipavli-blind-blind-diva-jagi-gaina-10831361.html
http://www.jagran.com/spiritual/religion-dipavli-blind-blind-diva-jagi-gaina-10831361.html
No comments:
Post a Comment