क्या बतौण हे दगड़्यौं,
भारी गरु होणु छ,
ज्यु कन्नु छ भ्वीं बिसै द्यौं,
सूर सांसू नि औणु छ...
किलै होलु यु फांचु,
यथ्गा गरु होणु,
क्या बिगाड़ि मैंन येकु,
किलै होलु रुओणु.......
हंसी खुशी ऊठैं थौ मुण्ड मा,
सोचि थौ मौज मनौलु,
नखरु भलु जनु भि होलु,
जिंदगी का दिन लगौलु....
हौर चीज होन्दि त,
दगड़यौं मा बांटी देन्दु,
अफु हि बोकण पड़दु,
कैमु कतै नि दियेन्दु......
बोकणु छौं हे दगड़्यौं,
तुम भी बोकणा होला,
गरु निछ तुमारु फांचु,
मन कू जरा भेद खोला....
देहधारी ह्वैक हम्तैं,
यूं फांच्चु बोकण हि पड़लु,
क्वी बिचारु ऊब्ब उठलु,
क्वी भत्तम ऊद रड़लु......
भलु ह्वान लाल भुला कू,
जिंदगी कू फांचु बताई,
लिख्यालि फांच्चा पर कविता,
बिचारन कुतग्याळि लगाई.....
-जगमोहन सिंह जयाड़ा
जिज्ञासु
दिनांक 5.1.2016
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