औजि दिदा कू परिवार,
साक्यौं बिटि बजौणु
छ,
परंपरा अपणि निभैक,
उत्तराखण्ड्यौं
नचौणु छ....
जमानु बदलि जब बिटि,
ढ़ोल दमौं कू त्रिस्कार
होणु छ,
ब्यो बरात आज उत्तराखण्डी,
बैण्ड बाजा बुलौणु
छ......
यनु होलु त एक दिन,
ढ़ोल दमौं हर्चि
जालु,
औजि दिदा तब ढ़ोल
दमौं,
किलै अर कख
बजालु.....
ढ़ोल दगड़ि वेकु
दगड़्या,
दमौं भी चुप ह्वै
जालु,
झग्नु झेंता झग्नु
झेंता,
सुण्नु दुर्लभ ह्वै
जालु.....
ढ़ोल दमौं का बोल
हे,
जब खामोश ह्वै जाला,
उत्तराखण्डी भैं
बंधु तैं,
बैण्ड वाळा हि
नचाला.......
कवि ‘जिज्ञासु’ की आस
छ,
प्यार करा ढ़ोल दमौं सी,
बिंगणु हे यू खास छ..... दिनांक
5.2.2016
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