“पतझड़”
आने पर पत्ते छोड़ देते हैं,
वृक्ष का साथ,
पात विहीन वृक्ष लगता है,
देखो कैसा अनाथ.
वृक्ष का साथ,
पात विहीन वृक्ष लगता है,
देखो कैसा अनाथ.
कहते हैं,
पतझड़ आने पर,
पत्ता बसंत के लिए मरा,
जब आता है बसंत,
और करता है,
नये पत्ते लगाकर,
वृक्षों को हरा भरा.
पतझड़ आने पर,
पत्ता बसंत के लिए मरा,
जब आता है बसंत,
और करता है,
नये पत्ते लगाकर,
वृक्षों को हरा भरा.
बसंत के आगमन पर,
आते हैं कौथिग(मेले),
तब आती है मुझे,
पहाड़ की याद,
लेकिन, पतझड़ कराता है,
मुझे एहसास,
आने वाला है बसंत,
पतझड़ के बाद.
आते हैं कौथिग(मेले),
तब आती है मुझे,
पहाड़ की याद,
लेकिन, पतझड़ कराता है,
मुझे एहसास,
आने वाला है बसंत,
पतझड़ के बाद.
(सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा “जिग्यांसु”
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
निवास:संगम विहार,नई दिल्ली
(20.3.2009 को रचित)
दूरभाष: ९८६८७९५१८७
जगमोहन सिंह जयाड़ा “जिग्यांसु”
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
निवास:संगम विहार,नई दिल्ली
(20.3.2009 को रचित)
दूरभाष: ९८६८७९५१८७
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