भौत होणि छ,
ये जमाना मा,
बूड बुड्यौं की,
हणाट कणाट का,
दिन बितौणा,
अपणि घर कूड्यौं का,
बण्यां छन जग्वाळा....
जौंका खातिर खौरी
खाई,
ऊन हि पीठ लगाई,
कैन त मरदि बग्त,
औलाद कू,
सुख भी नि पाई,
एक दिन औन्दि खबर,
बुबाजी या ब्वै,
चलिग्यन अपणा
घौर...
बूड बुड्यौं तैं,
औलाद पूछ्दि छ,
तुम्न करि हि क्या
छ?
हमारा खातिर,
यनु नि सोच्दा,
औखु जमानु थौ ऊबरि,
तौंकी पेट पाळै कन्नु,
अक्षर ज्ञान दिलौणु,
भारी बात थै,
जमाना का हिसाब
सी.....
बुढ़ेन्दा का दिन,
भला नि होन्दा,
तबरि प्यार अर सम्मान
की,
आस करदु मनखि,
अपणि औलाद सी,
करयुं भी चैन्दु,
देव्ता समान होन्दन,
हमारा ब्वै बाब,
जौन हमारा खातिर,
खौरी हि खाई,
अपणि जिंदगी लगाई,
दुर्गति नि करिं
चैन्दि,
जब तक ज्यूंदा छन,
सेवा करा मेवा
मिलला.......
रंत रैबार अखबार का खातिर रचित।
-जगमोहन सिंह जयाड़ा
जिज्ञासु,
ग्राम.बागी नौसा,
पट्टी-चंनद्रवदनी,
टिहरी
गढ़वाळ-249122।
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