लड़ि भिड़ि उत्तराखण्ड लिनि थौ,
हातु सी छुटदु जाणु छ,
हातु सी छुटदु जाणु छ,
उत्तराखण्ड घैल हमारु,
द्येखा कनु कणाणु छ.....
आस औलाद दगड़ा ल्हीक,
उत्तराखण्डी जाणु छ,
बिन मनख्यौं का गौं हमारा,
उत्तराखण्ड ऊताणु छ.....
बलिदानु का बाद बण्युं,
उत्तराखण्ड हमारु छ,
देवभूमि ब्वोल्दा छन,
द्येखा कथ्गा प्यारु छ.....
खान्दि बग्त टोटग उताणि,
मति देखा मरदु जाणी,
बिंगि ल्येवा हे लठ्याळौं,
छौन्दा कु भि होयिं गाणि,
अब न जावा घौर छोड़ि,
छोया ढ़ुंग्यौं कू पाणी छ....
समळि जावा अजौं भी,
बग्त यू बताणु छ,
लड़ि भिड़िक लिनि थौ जू,
हाथु सी छुटदु जाणु छ……
जगमोहन सिंह जयाड़ा, जिज्ञासू,
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
2.3.2009 को रचित
दूरभाष: 9654972366
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