“कवि”
कविताओं के प्रेम में,
“कवि” हुआ कंगाल,
सोचा नहीं अपने लिए,
जीवन रहा तंग हाल.
“कवि” हुआ कंगाल,
सोचा नहीं अपने लिए,
जीवन रहा तंग हाल.
कई कवियों की जीवनी,
पढ़कर हुआ मलाल,
रचनाओं को रचते हुए,
बने न माला मॉल.
पढ़कर हुआ मलाल,
रचनाओं को रचते हुए,
बने न माला मॉल.
श्रोताओं ने सदा सुनी,
कवियों की कविताएँ,
कौन कवि रहा माला मॉल,
जरा हमें बताएं.
कवियों की कविताएँ,
कौन कवि रहा माला मॉल,
जरा हमें बताएं.
कलयुग के इस दौर में,
यथार्थ का है ये हाल,
सच्चा होता है कवि मन,
पर रहता है कंगाल.
यथार्थ का है ये हाल,
सच्चा होता है कवि मन,
पर रहता है कंगाल.
सावधान! हे कवि मित्रों,
लिखना ऐसी कविताएँ,
माला मॉल चाहे न हों,
यथार्थ को ही बताएं.
लिखना ऐसी कविताएँ,
माला मॉल चाहे न हों,
यथार्थ को ही बताएं.
रचनाकार:
जगमोहन सिंह जयाड़ा, जिग्यांसु
23.1.2009
जगमोहन सिंह जयाड़ा, जिग्यांसु
23.1.2009
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