“ढूँढती हैं”
नजरें मेरी आज भी,
बचपन के बिछुड़े दोस्तों को,
जो बिछुड़ने के बाद,
आज तक नहीं मिले.
बचपन के बिछुड़े दोस्तों को,
जो बिछुड़ने के बाद,
आज तक नहीं मिले.
यादें उनकी आज भी,
न जाने क्यों सताती हैं,
बचपन बीता उनके साथ,
आज भी याद आती है.
न जाने क्यों सताती हैं,
बचपन बीता उनके साथ,
आज भी याद आती है.
उलझे होंगे सभी,
इस मायवी संसार में,
खुशी ढूँढ रहे होंगे,
आज अपने परिवार में.
इस मायवी संसार में,
खुशी ढूँढ रहे होंगे,
आज अपने परिवार में.
यादें उनकी जीवन भर,
उभरती ही रहेंगी,
नजरें मेरी उनको,
सदा ढूँढती रहेंगी.
उभरती ही रहेंगी,
नजरें मेरी उनको,
सदा ढूँढती रहेंगी.
रचनाकार:
जगमोहन सिंह जयाड़ा, जिग्यांसु
15.1.2009
जगमोहन सिंह जयाड़ा, जिग्यांसु
15.1.2009
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