“मेरा प्यारा गाँव”
जब चला था इस शहर को,
डगमगा रहे थे पावं,
उस दिन निराश हो रहा था,
मेरा प्यारा गाँव.
मैंने कहा मत हो निराश,
में लौट कर आऊंगा,
काम करूंगा कुछ में ऐसे,
तेरा मान बढाऊंगा.
निभा न सका में अपना वादा,
उलझता गया भंवर में,
मन कहता है लौट चलें अब,
क्या रखा इस शहर में.
जगमोहन सिंह जयाड़ा, जिग्यांसू
रचना: पुरष्कृत एवम प्रकाशित
16.7.2008
जब चला था इस शहर को,
डगमगा रहे थे पावं,
उस दिन निराश हो रहा था,
मेरा प्यारा गाँव.
मैंने कहा मत हो निराश,
में लौट कर आऊंगा,
काम करूंगा कुछ में ऐसे,
तेरा मान बढाऊंगा.
निभा न सका में अपना वादा,
उलझता गया भंवर में,
मन कहता है लौट चलें अब,
क्या रखा इस शहर में.
जगमोहन सिंह जयाड़ा, जिग्यांसू
रचना: पुरष्कृत एवम प्रकाशित
16.7.2008
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