“चांदनी रात में”
पड़ती है जब,
चीड़ के जंगलों पर,
पूर्णिमा की रात को,
चमकते चाँद की रोशनी,
तो चीड़ के वृक्ष लगते हैं,
सुनसान रात में,
जैसे खड़े हों,
पहाड़ पर लम्बे भूत.
चीड़ के जंगलों पर,
पूर्णिमा की रात को,
चमकते चाँद की रोशनी,
तो चीड़ के वृक्ष लगते हैं,
सुनसान रात में,
जैसे खड़े हों,
पहाड़ पर लम्बे भूत.
मंद मंद बहती हवा में,
झूमते चीड़ के पेड़,
पैदा करती जिनकी पत्तियां,
सायं सायं की आवाज,
तोड़ती है सन्नाटा,
चांदनी रात में.
झूमते चीड़ के पेड़,
पैदा करती जिनकी पत्तियां,
सायं सायं की आवाज,
तोड़ती है सन्नाटा,
चांदनी रात में.
सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा “जिग्यांसु”
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
निवास:संगम विहार,नई दिल्ली
(31.3.2009 को रचित)
दूरभाष: ९८६८७९५१८७
जगमोहन सिंह जयाड़ा “जिग्यांसु”
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
निवास:संगम विहार,नई दिल्ली
(31.3.2009 को रचित)
दूरभाष: ९८६८७९५१८७
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