टिंचरी माई
उत्तराखंड की,
पहाड़ जैसी,
ठगुली देवी उर्फ़ दीपा,
जिसे जीवन भर,
उसकी जिंदगी ने ठगा.
ठगुली देवी उर्फ़ दीपा,
जिसे जीवन भर,
उसकी जिंदगी ने ठगा.
दो वर्ष की उम्र में पिता को,
पाँच वर्ष की उम्र में माता को,
उन्नीस वर्ष की उम्र में,
पति और पुत्र को खोकर,
अंत में बनी इछागिरी माई,
नौ महीने चंडी घाट हरिद्वार में रही,
लेकिन उन्हें,
वहां की जिंदगी,
रास न आई.
पाँच वर्ष की उम्र में माता को,
उन्नीस वर्ष की उम्र में,
पति और पुत्र को खोकर,
अंत में बनी इछागिरी माई,
नौ महीने चंडी घाट हरिद्वार में रही,
लेकिन उन्हें,
वहां की जिंदगी,
रास न आई.
पौडी में नशा विरोध करके,
टिंचरी की दुकान को,
चंडी रूप धारण करके,
आग लगाई,
उसके बाद उन्हें लोग कहने लगे,
“टिंचरी माई”
टिंचरी की दुकान को,
चंडी रूप धारण करके,
आग लगाई,
उसके बाद उन्हें लोग कहने लगे,
“टिंचरी माई”
जगमोहन सिंह जायाड़ा, जिग्यांसू
१५.१२.२००८ को रचित
१५.१२.२००८ को रचित
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