“पहाड़”
पहाड़ की पगडंडियों को,
निहारती मेरी कल्पना,
उतर आयी कविता बनकर,
मेरे सामने और बन गई,
कालजयी कविता,
प्यारे पहाड़ों पर.
निहारती मेरी कल्पना,
उतर आयी कविता बनकर,
मेरे सामने और बन गई,
कालजयी कविता,
प्यारे पहाड़ों पर.
समझते हैं लोग,
पहाड़ों को कठोर,
लेकिन पहाड़ों को पहचानों,
बहती हैं उनके दिल से दरिया,
जिनसे मिलकर बनती हैं,
जीवनदायिनी नदियाँ.
पहाड़ों को कठोर,
लेकिन पहाड़ों को पहचानों,
बहती हैं उनके दिल से दरिया,
जिनसे मिलकर बनती हैं,
जीवनदायिनी नदियाँ.
पहाड़ की पीठ पर,
बैठकर अहसास करो,
बहती हवा का,
झोंके के रूप में,
मंद मंद कभी तेज,
जो दे जाती है,
ठंडक हर किसी को.
बैठकर अहसास करो,
बहती हवा का,
झोंके के रूप में,
मंद मंद कभी तेज,
जो दे जाती है,
ठंडक हर किसी को.
निहारो चहुँ ओर,
हरियाली ही हरियाली,
कहीं हँसता हुआ हिमालय,
सतरंगी आसमान,
झूमते देवदार और चीड़,
दूर दिखती सुंदर नदियाँ.
हरियाली ही हरियाली,
कहीं हँसता हुआ हिमालय,
सतरंगी आसमान,
झूमते देवदार और चीड़,
दूर दिखती सुंदर नदियाँ.
सुनो प्रकृति का संगीत,
पक्षियों का कोलाहल,
देवालयों में बजती घंटियाँ,
घसेरियों के गीत,
और शैल संगीत.
पक्षियों का कोलाहल,
देवालयों में बजती घंटियाँ,
घसेरियों के गीत,
और शैल संगीत.
रचनाकार:
जगमोहन सिंह जयाड़ा, जिग्यांसु
२२.१२.२००८
जगमोहन सिंह जयाड़ा, जिग्यांसु
२२.१२.२००८
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