आल्लु मूळा तैं थेंचिक,
बण्दु छ बल थिंच्वाणि,
मनख की तेरी गति भी या हि,
ह्वै सकदु त्वैन नि जाणि.....
अहसास होणु मन मा,
आंख्यौं मा औणु पाणी,
दुख पिछ्नैं पड़्यां छन,
किलै अर कुजाणि.....
यथ्गा होण फर भी,
मनखि त्वैन नि जाणि,
लग्युं छैं लग्द बग्द,
तेरु बण्युं थिंच्वाणि.......
माया तेरा मोह मा,
मनखि होयां लोभी,
दिन रात दुख दुखौणा,
अचेत होयुं तौ भी......
थेंचेणु दिन रात मनखि,
कनि गति छ तेरी,
थिंच्वाणि बण्युं तेरु लठ्याळा,
दुख भी होन्दु हेरी......
-जगमोहन सिंह जयाड़ा
जिज्ञासु,
दिनांक 23.1.2016
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