मिलि मैकु एक भुला
गढ़वाळि,
भैजि आप कवि ‘जिज्ञासु’ छन,
मैकु गढ़वाळि मा बच्याई,
मैंन पूछि क्या
होलु आपकु नौं?
तब वे भुलान मैकु
बताई,
मैं आपकु फेसबुक
दगड़्या छौं,
लक्ष्मण सिंह रावत
छ मेरु नौं,
आपकी गढ़वाळि कविता
पढ़दु छौं....
खुशी कू अहसास ह्वै
मैकु,
तबर्यौं डी.टी.सी.
की बस आई,
भैजि चल्दु छौं प्यार
सी बताई,
मैं गढ़वाळि कविता
लिख्दु छौं,
मेरा कविमन मा ख्याल
आई,
मेरी दूधबोलि भाषा
तेरा परताप,
मैंन उत्तराखण्ड्यौं
कू प्यार पाई.....
दिनांक 31.1.2016
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