“नदी”
एक दिन बहुत निराश थी,
क्योंकि,
उसकी घाटी में बसे लोग,
उस दिन जा रहे थे,
अपना सब कुछ समेट कर,
पर नदी को नहीं पता,
क्यों जा रहे हैं?
बिना बताये अज्ञातवास को,
सदा के लिए,
आँखों में आंसू लिए.
क्योंकि,
उसकी घाटी में बसे लोग,
उस दिन जा रहे थे,
अपना सब कुछ समेट कर,
पर नदी को नहीं पता,
क्यों जा रहे हैं?
बिना बताये अज्ञातवास को,
सदा के लिए,
आँखों में आंसू लिए.
वह निराश नदी है,
भागीरथी,
जिसने देखा,
और अंत में डुबो दिया,
पुरानी टेहरी को,
मानव निर्मित बाँध में,
कैद होकर.
भागीरथी,
जिसने देखा,
और अंत में डुबो दिया,
पुरानी टेहरी को,
मानव निर्मित बाँध में,
कैद होकर.
रचनाकार:
जगमोहन सिंह जयाड़ा, जिग्यांसु
13.1.2009
जगमोहन सिंह जयाड़ा, जिग्यांसु
13.1.2009
No comments:
Post a Comment