बरखा कु पाणी बगण ने देवा,
वेद पुराण बतौन्दा छन,
खाळ बणैक जमा करा,
मिलि जुलिक डाळि लगावा,
डांडा ह्वे जाला हरा भरा....
बण कु बिकास ह्वे जालु जब,
धर्ति मा फुटला पाणी का धारा,
पाणी होलु त खेती भि होलि,
होणी खाणी होलि मुल्क हमारा...
जल्म हमारु यीं धर्ति मा,
धर्ति मां कु श्रृंगार करा,
मिलि जुलिक डाळि लगावा,
डांडा ह्वे जाला हरा भरा....
पित्रुन पाळ्यन डाळा बुटळा,
सबक ल्हीक श्रृंगार करा,
मिलि जुलिक डाळि लगावा,
डांडा ह्वे जाला हरा भरा....
बांज बुरांस की डाळि रोपा,
तन मन सी श्रृंगार करा,
मिलि जुलिक डाळि लगावा,
डांडा ह्वे जाला हरा भरा....
एक डाळि दस पुत्र समान,
धर्ति मा डाळि लगौन्दु जू मनखि,
वे सी खुश होन्दा भगवान....
डाळि लगावा काम भलु छ,
कवि “जिज्ञासू” की
सुणा जरा,
मिलि जुलिक डाळि लगावा,
डांडा ह्वे जाला हरा भरा....
जगमोहन सिंह जयाड़ा “जिज्ञासू”
ग्राम: नौसा बागी, पट्टी:
चंद्रवदनी,
पोस्ट औफिस: कुन्डड़ी,
टिहरी गढ़वाल, उत्तराखण्ड।
दूरभाष: 9654972366
प्रवास: दर्द भरी दिल्ली।
01/07/2019