Friday, October 28, 2016

नौकरी का बाना....



छोड़्यालि मैंन,
ब्वै बाब अर घर बार,
जल्मभूमि उत्तराखण्ड,
पहाड़ कू प्यार......

द्वी पैंसा का बाना,
किलैकि चललु मेरु घर बार,
परदेश की जिंदगी मा,
दु:ख छन हजार....

परदेश मा औन्दि छ,
मैकु ब्वै बाबु की याद,
जांदु छौं पहाड़ मैं,
भिंडि दिनु का बाद.....

सौंजड़्या मेरी करदि छ,
पुंगड़्यौं  मा धाण,
सदानि रन्दु छ क्वांसु,
वींकु ज्यु पराण......

मजबूर रन्दु मनखि,
पहाड़ सी दूर,
खौरि खान्दु जिंदगी मा,
मन सी मजबूर........

नौकरी का बाना बोला,
या बोला पापी पेट,
अयां छौं हम परदेश मा,
पहाड़ बिटि ठेट....
दिनांक 14.6.2016

प्यारु गढ़देश....



रौंत्याळु मुल्क हमारु,
डांडी कांठ्यौं कू देश,
छट्ट छुटिगी क्या बतौण,
प्यारु गढ़देश.....

पैटि थौ परदेश कू,
खूब कमौलु पैंसि,
होणि खाणि खूब होलि,
मन बिचारु हैंसि.....

भला लग्दा छन हे,
बल दूर का ढ़ोल,
अति बित्दि मन मा जब,
बंद ह्रवै जान्दा बोल....

परदेश की जिंदगी,
भलि कतै नि होन्दि,
ढुंगू बण्युं रन्दु मनखि,
जिंदगी रुवौन्दि.....

मयाळु मन सोच्दु छ,
मैंन पहाड़ जाण,
अपणा मुल्क की,
नखरि भलि खाण.....

स्याणि रन्दि छन सदानि,
होयिं रन्दि गाणी,
भौत याद औन्दु छ,
छोया ढुंगौं कू पाणी....

परदेश की जिंदगी मा,
भारी होन्दा जंजाळ,
मन पिथेन्दु परदेश मा,
भाग्दु छ गढ़वाळ.....

ज्वानि जळि जान्दि छ,
बुढ़ापु ऐ जान्दु,
मोती ढांगू बणि मनखि,
अध बाटा रै जान्दु....

परदेश बिटि पाड़,
मनखि जै नि सक्दु,
ज्यू जंजाळ मा फंसिक,
गढ़देश रटदु.....

मन इच्छा होन्दि छ,
जौलु गढ़देश,
ज्यु जिबाळ जिंदगी मा,
कतै नि होन्दि ठैस.....

कथ्गै मनखि जै नि सक्दा,
फूक उड़ि जान्दि,
मन की बात मन मा,
दगड़ा चलि जान्दि......
दिनांक 15.6.2016

कुदरत की मार.....



आज भी याद छ,
जब केदार जी का धाम मा,
भयंकर आफत आई,
सोलह जून द्वी हजार तेरा कू,
ऐतवार कू दिन थौ वे दिन,
तीन दिन बिटि लगातार,
भारी बरखा होणि थै,
सुबेर भैंरानाथ मंदिर वाळु पाड़,
टूटिक रड़्न लगिगे थौ,
केदार नाथ मंदिर बिटि,
भैंरानाथ मंदिर वाळु बाटु,
बिल्कुल बंद ह्वैगे थौ,
दूध गंगा अर मधु गंगा मा,
अथाह पाणी बगणु थौ,
छै बजिक पचास मिनट फर,
आरती का बग्त सी पैलि,
ब्याखुनि बग्त केदार मा,
पाणी अर मलवा कू सैलाब,
बड़ा बेग सी आई,
शंकराचार्य जी की समाधि,
अर कै आश्रम बगिगे था.....

मंदिर का आस पास,
पाणी भरेगि थौ,
कै मनखि बगिगे था,
कुछ लोग जंगळ जथैं,
जान बचौण का खातिर,
दूर चलिगे था,
बाद मा लौटिक ऐन,
बड़ा बड़ा ढुंगा बगिक ऐन,
मंदिर का पिछ्नै,
मरयां दब्यां मनखि,
यथैं वथैं पड़्यां था,
घनाघोर अंधेरा मा यात्री,
गोरु बाखरौं की तरौं,
बच्यां कमरौं फर बैठिक,
पूजा पाठ अर मंत्र जपणा था,
कुछ सोचणा था,
मरी जौला त केदार धाम मा,
मोक्ष मिलि जालु,
सैडि रात लोग से नि सक्या,
सुबेर जब ह्वे,
मन मा आस जगि,
बुरु बग्त बितिगी,
अग्नै क्या होलु?
सब्बि बेखबर होयां था....

सत्रा जून कू सुबेर,
सात बजि भंयकर आवाज ह्वै,
केदार मा पाणी भरेण लगि,
पाणी मा बग्दा मनखि,
बचण कू प्रयास कन्ना था,
बजार की तरफ लाश ही लाश,
नजर औणि लगिं थै,
कुछ यात्री अपणा लंगि संग्यौं,
बचौण का जतन मा,
पाणी मा बगिगे था,
जब सैलाब रुकि,
लोग चिल्लाण लग्यां था,
क्वी अपणौं तैं ढू़ढणा था,
हृदय विदारक दृष्य थौ,
केदार जी मा मलवा,
बड़ा बड़ा ढुंगा,
चौतरफ नजर औणा था,
कुदरत की भयंकर मार,
केदार जी मा दिखेणि थै......
 दिनांक 15.6.2016

मलेेथा की कूल