देवभूमि उत्तराखण्ड मा भूतू की कथा मन मा उमंग पैदा करदि छ।
देवभूमि मा भूत गौं, भूत देव्ता, भूतू की
बरात की बात हम सुण्दा छौं। दाना सयाणौं सी हम पूछ्दा छौं, क्या
आपन भूत भि देखि? कै
लोग विस्तार सी भूत द्यखण की बात बतौन्दा छन।
क्वी ब्वल्दन रात का सफर मा भूतन मैंमु बीड़ी मांगी। क्वी बतौन्दन मनख्यौंन भूत दगड़ि लड़ै भि
करि। कै लोग ब्वल्दन, भूत नि ह्वन्दा, सिरप भ्रम होन्दु। लैंसडौंन, मसूरी मा
अंगरेजु का भूत देखण की बात हम सुण्दा छौं।
उत्तराखण्ड का अलावा देस बिदेस भर मा भूतू की चर्चा ह्वन्दि छ। अकाळ मौत का
कारण मनखि भूत बण्दा छन। जब तक ऊंकु
जीवनकाल पूरु नि ह्वन्दु, भूत बणिक भटकदा छन।
पैलि मनोरंजन का साधन नि था। ह्युंद का मैना झट्ट खै पकैक लोग ढ़िक्याण का
भितर लेटि जान्दा था। छोरा-छारा दादा-दादी सी कथा सुणौण कु ब्वल्दा था। दादा-दादी अपणा मौखिक संकलन सी कथा सुणौन्दा
था। कथा रज्जा राणी, रामैण, महाभारत, तोता-मैणा,
भूत अर लोक कथा आधारित ह्वन्दि थै।
आज लोक कथाओं कु प्रचलन सनै सनै खत्म होणु छ। टेलीविजन अर मोबैल आज मनोरंजन
कु साधन ह्वेगि।
असूज का मैंना की बात छ, एक हफ्ता बिटि लगातार बरखा लगिं थै।
ठंडन कंपनारु छुटण लग्युं थौ। हम दादी जी का दगड़ा ढ़िक्याण पेट लेट्यां था। सब्बि नाति नतणौन दादी जी सी ब्वलि, हे दादी, आज तू हम्तैं भूतू की कथा सुणौ। दादी जी कु हात मा मुंगरेठु धर्युं थौ। किलैकि जब भि कै नाति नतणा फर खाज उठदि त दादी
मुंगरेठान खाज कन्यौन्दि थै। हमारी फरमैस
सुणिक दादीजिन ब्वलि, “सुणा, आज मैं
तुम्तैं भूतू का बारा मा आप बीती बात सुणौन्दु”। “असूज कु मैनु थौ, फूलफट्ट की जोन लगिं थै। वे दिन
जुन्याळि रात थै। सुबेर तुमारा दादा जी अर
मैंन झंगरेटा काटण कु बर्ताखुंटा पुंगड़ा जाण थौ।
हम्तैं झट्ट निन्द ऐगि”। हम्न पूछि, दादीजी फेर
क्या ह्वे? तब दादीजिन बताई, “वीं रात तुमारा
दादा जी की निन्द झट्ट टूटिगी, तुमारा दादाजिन मैकु ब्वलि
खड़ु उठ रात खुलण वाळि छ। जुन्याळि रात होण का कारण तुमारा दादा जी तैं भ्रम ह्वे,
जन रात खुलण वाळि छ। मैंन
तुमारा दादा जी सी पूछि, अजौं रात भौत छ, किलैकि रतब्येणु नि दिखेणु। तुमारा दादाजिन म्येरी बात फर गौर नि करि अर
ब्वलि चल झट्ट। जब हम बर्ताखुंट पौंछ्यौं त सामणि बारगुर का डांडा फुन्ड रॉंका
घुमण लग्यां था अर भूत किलक्वारि मान्न लग्यां था।“
दादी जी की बात सुणिक हमारा मन मा डौर सी पैदा होणि
थै। हम्न दादी जी सी पूछि, अग्वाड़ि क्या ह्वे दादी? दादीजिन बताई, “मैकु भारी डौर सी लगणि थै। मैंन
तुमारा दादा जी तैं बताई, मैकु भारी डौर लगणि छ। तुमारा दादाजिन चिरड़ेक ब्वलि, त्वेकु सदानि डौर हि ह्वयिं छ।
फटाफट्ट झंगरेटा काट, सुबेर ये पुंगड़ा मा हम्न हौळ
लगौण। तुमारा दादा जी की बात सुणिक मैं झंगरेटा
काटण लगिग्यौं। कुछ देर बाद तुमारा दादा
जी सुस्ताण लग्यंन। ऊंन एक चिलम तमाखू भरि
अर तमाखू प्येण लग्यन। जब तुमारा दादाजिन
तमाखू पिनि त थोड़ी देर मा माल्या पुंगड़ा बिटि भत्त भत्त ढुंगा पण्न लग्यन। तुमारा दादाजिन जोर सी आवाज लगै, कुछ रे ढुंगा चलौणु। थ्वड़ि देर
मा ढ़िस्वाळ का पुंगड़ा फुंड एक स्याळ रोण लगि।
मैकु समझण मा देर नि लगि, यु भूत छ जू छम्म धन्न
लग्युं छ। तुमारा दादजिन मैकु ब्वलि,
तू डरी ना।” अब हम सब्बि नाति नतणा न्युं
च्युं ह्वेग्यौं। हम्न दादीजी सी पूछि,
वेका बाद क्या ह्वे दादी?
दादीजिन अग्वाड़ि की बात बताई। “भौत देर बाद एक भैंसू सामणि एक पुंगड़ा फुंड अटगण लग्युं थौ। मैंन स्वचि, यु कैकु
भैंसू छ यीं रात मा यख फुंड दनकण लग्युं।
तुमारा दादा जी तैं त डौर कतै नि लग्दि थै। कै बार ऊंन भूत भगाई। किलैकि ऊं फर भैरु द्यव्ता औन्दु थौ। तुमारा
दादाजिन मैकु ब्वलि, तू कतै न डर। कुछ समय बिति ह्वलु, एक
चिलांगु भत्त भत्त एक डाळा बिटि हैक्का डाळा मा उडाण लगि। मैकु अब भारी डौर लगण
लगि थै। कुछ देर बात हम्न देखि, अब हमारा सामणि एक लम्बू सफेद मनखि सी खड़ु ह्वेगि। ऊ आगास तक लम्बू
दिखेणु थौ”।
हम हुंगरा देण लग्यां था अर दादी जी आपबीती कथा सुणौण लगिं
थै। हम सब्यौंन पूछि, दादीजी क्या ह्वे अग्वाड़ि? “दादीजिन बताई, वे लम्बा भूत देखि म्येरा आंख फट्ट
बंद ह्वेन अर मैं भ्वीं मा बैठिग्यौं।
तुमारा दादा जी फर भैरु द्यव्ता आई अर तुमारा दादा जी भूत जथैं
भाग्यन। मैं पुंगड़ा मा यकुलि
रैग्यौं। तुमारा दादाजिन ऊ भूत नौसा बागी
का नीस चुप्पच्याणि तक धद्याई। भौत देर
बाद ऊं पुंगड़ा मा ऐन। मैंन तुमारा दादा जी
कु ब्वलि, तुमारी आज कनि मति मरि। तुम्न सेण भि नि दिन्यौं। तुम आधी रात मा उठिग्यन आज। देखा अब छ धार मा रतब्येणु औणु”।
“सैडा पुंगड़ा का झंगरेटा काटदु काटदु सुबेर ह्वेगि, तब
तुमारा दादा जी अर मैं घौर अयौं। हम्न
रातै बात सब्यौं तैं बताई। सब्यौंन हम
झिड़क्यौं, क्या थै तुम फर यनि बितिं, जू
रात मा झंगरेटा काटण गयें।” दादी जी की आपबीती सुणिक हम सब्बि नाति नतणा फंसोरिक सेग्यौं। आज दादी जी
स्वर्गवासी छन। दादी जी हम्तैं भलि भलि
कथा सुणौन्दि थै।
हमारा उत्तराखण्ड मा काम काज कु सदानि भार रन्दु थौ। जै गौं मा पाणी कु अखर्यो ह्वन्दु थौ, वखा मनखि रात भर पाणी भन्न मा व्यस्त रन्दा था। क्वी रात मा सेरौं पाणी बट्यौण जान्दा था। झंगोरा
कोदा की पिसै कन्न कु सारी रात घट्ट मू रन्दा था।
क्वी रुद्रप्रयाग, गुलाबराई भैंसा, बल्द मंडी मा ल्हिजान्दा था।
रात भैर रण का कारण मनख्यौं कु भूत सी सामना भि होन्दु थौ । भूत घट्ट की
भेरण रोकि देन्दा था। कै मनखि फर जब भूत लग्दु थौ त झाड़कंडी बुलौन्दा था। रख्वाळि अर मंत्र सी भि भूत भगौन्दा था। भूतू कु प्रकोप आज भि ह्वन्दु छ।
-जगमोहन सिंह जयाड़ा “जिज्ञासू”
ग्राम: बागी-नौसा, चंद्रवदनी, टिहरी
गढ़वाळ,
उत्तराखण्ड।
प्रवास: दर्द भरी दिल्ली।
दूरभाष/ 9654972366
दिनांक: 15/11/2019
कुमगढ़ पत्रिका के लिए रचित मेरी कहानी