Tuesday, August 27, 2013

"ऊकाळ जनि जिन्‍दगी"

हरेक की अपणि अपणि,
काटण लग्‍यां छन सब्‍बि,
जंजाळ छट्यौन्‍दु छट्यौन्‍दु,
चन्‍नि छ जिंदगी की गाड़ी,
देख्‍दु जावा अग्‍वाड़ि,
क्‍या क्‍या होलु जिंदगी मा,
पिंडाळु का पात मा पाणी सी,
ढळ ढळ ढळकदि जिंदगी,
कब कथैं ढळकि जाऊ,
यू कैकु भि पता निछ,
चार दिन की चांदनी छ,
हमारी तुमारी जिंदगी,
ऊकाळ जनि जिन्‍दगी मा.....

-जगमोहन सिंह जयाड़ा “जिज्ञासु”
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित
27.8.13

Monday, August 26, 2013

तेरी कूड़ी बांजा पड़लि....

दिदा यनु न बोल,
अपणा मन मा,
कुछ त तोल,
ऊ जमानु अब चलिगि,
अबत तेरी गाळी,
फूल काफळ छन,
अपणा गौं मा देख,
जौंकि कूड़ी बांजा छन,
ऊंकी खूब होणी खाणी छ,
सैर बजारु मा,
अर तै प्‍यारा देरादूण,
तेरी गाळयौंन अब,
खुशी सी होंदि,
दुबारा बोल,
तेरी कूड़ी बांजा पड़लि....

-जगमोहन सिंह जयाड़ा “जिज्ञासु”
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित
26.8.13

Sunday, August 25, 2013

ऐंसु कू सौण....

क्‍या बोन्‍न तैकी भौण,
मोळ माटु करिगि,
मेरा मुल्‍क अैक,
पुंगड़ा, भेळ, पाखा,
प्‍यारा गौं,
टूटिक रड़्यन,
ज्‍यूंदा ज्‍यू मनख्‍यौंन,
अपणा घौर छोड़्यन,
डरैगि अर दुख दीगि,
ज्‍यूकड़ि मा दाग लगैगि,
निहोण्‍या निर्भागि,
ऐंसु कू सौण....
-जगमोहन सिंह जयाड़ा “जिज्ञासु”
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित
23.8.13

Wednesday, August 14, 2013

"क्‍या बोन्‍न रे प्‍याज त्‍वैकु"


प्‍याज की पिराण कम,
अर कीमत यूं आंख्‍यौं मा,
दणमण आंसू ल्‍हौणि छ,
जू प्‍याज कू,
प्रयोग नि करदा,
ऊंकू अर्थशास्‍त्र,
यीं मति तै समझौणु छ,
नि खैल्‍यु त क्‍या हवे,
तू फिकर न कर,
भूख सी तू मन्‍न सी रै,
हे अपणा पहाड़ कू ,
कोदु झंगोरु हि,
ज्‍यू भरिक खै,
कब्‍बि त होलु प्‍याज,
बजार मा सस्‍तु,
जग्‍वाळ मा रै,
जब हवै जालु,
दस रुप्‍या किलु,
तब ज्‍यू भरिक प्‍याज,
छक्‍कि छक्‍कि खै,
क्‍या बोन्‍न रे प्‍याज त्‍वैकु।

-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
सर्वाधिकार सुरक्षति एवं ब्‍लाग पर प्रकाशित
14.8.13

Tuesday, August 13, 2013

“आफत मा उत्‍तराखण्‍ड”


उत्‍तराखण्‍ड मा आफत
आज किलै आई?
धौळयौं का धोरा बस्‍यां,
होन्‍दा खान्‍दा मनख्‍यौं की,
जैन मवासि धार लगाई,
कैकि लगि होलि नजर....
 
आज सब्‍बि बोन्‍ना छन,
यू प्रकृति कू प्रकोप छ,
सेाचा दौं प्रकृति तैं,
गुस्‍सा किलै आई,
धरयुं करयुं मनख्‍यौं कू,
जल प्रलय मा बगाई....
 
उत्‍तराखण्‍ड की सदानीरा,
धौळयौं तैं बांध मा बांधिक,
घोर अनर्थ कर्रयालि,
सैडु पहाड़ ठक्‍कटेक
खूब करिक खम्‍मडैक,
कोरी कोरिक, तोड़ी फोड़िक,
जख तक हवै सकु,
तंत्र अर ठेकेदारुन,
अपणा मन की करयालि...
 
आवाज उठि, हे यनु न करा,
धरती मां छ तुमारी,
वींकू श्रींगार करा,
जब कैन नि सुणि,
प्रकृतिन पहाड़ मा,
अपणु रौद्र रुप दिखाई,
घोर तबाही मचाई
 
हिमालय तैं गुस्‍सा आई....
देवभूमि का देव्‍ता रुठ्यन,
या प्रकृति रुठि,
या कैकि नजर लगि,
भयंकर जल प्रलय कू दंश,
आज मनख्‍यौंन,
उत्‍तराखण्‍ड की धरती मा,
त्रस्‍त हवैक भुगत्‍यालि,
सबक छ अग्‍वाड़ि का खातिर,
विकास जरुर हो,
पर विणास की कीमत फर,
कतै ना...
 
 
धरती कू श्रृंगार हो,
पर्यावरण की रक्षा भी,
पहाड़ मा तीर्थ यात्रा हो,
सैल्‍वान्‍यौं की यात्रा,
पर्यावरण की दृष्‍टि सी,
पहाड़ का खातिर,
भलि बात निछ......
 
 
दुख का आंसू पर्वतजन का,
समय का साथ सूखि जाला,
दुख भी भूली जाला,
बग्‍त की पुकार छ,
प्रभावित पर्वतजन की,
तन मन धन सी,
संकट की घड़ी मा,
भरसक मदद हो...
 
 
खण्‍ड खण्‍ड हवैगि,
आज हमारु उत्‍तराखण्‍ड,
उत्‍तराखण्‍ड की आपदा मा,
जौन अपणि जान गवांई,
बद्रीविशाल जी ऊं तैं,
सदगति प्रदान करवन,
कविमन की कामना छ,
जनु ऐंसु हवै, यनु कब्‍बि न हो,
देवभूमि का देव्‍तौं सी,
प्रार्थना छ......
 
दिनांक 11.8.2013 को 2 बजे गढ़वाल हितैषणी सभा, गढवाल भवन, पंचकुया रोड द्वारा अयोजित कवि सम्‍मेलन में कविता पाठ हेतु दिनांक 15, जुलाई-2013 को रचित एंव पठित  मेरी कविता।

“पहाड़ मा जल प्रलय”

16-17 जून-2013 कू,
अतिवृष्‍टि सी,
रड़युं, झड़युं, बग्‍युं,
त्रस्‍त होयुं पहाड़,
जख ताण्‍डव नृत्‍य करि,
मंदाकिनी, अलकनन्‍दा,
भागीरथीजिन.....

केदारनाथ जी,
वे दिन ढुंगु बणि,
निर्दयि हवैन,
मनखि बेबस हवैक,
काल का मुख समैन,
जबकि मनखि,
ऊंका धाम मा,
मन मा मोक्ष की,
कामना करिक औन्‍दा....

पहाड़ वे दिन,
चुप्‍पचाण्‍या था,
आंखौं मा ऊंका आंसू,
बण बूट रोणा,
मनखि अपणि जान,
पिछनैं भागदि,
मौत सी बचौणा,
कुछ दब्‍यन, बग्‍यन,
कुछ अपणा मुल्‍क,
घौर बौड़ा हवैन......

फिर वाही रौनक,
पहाड़ मा लौटलि,
हयूं पड़लु,
हिंवाळि काठयौं मा,
नयीं डाळि जमलि,
भेळ पाखौं मा,
खेल कौथिग उरेला,
धार खाळ मा,
हिटण का बाटा,
सैणि सड़क,
मुल्‍क्‍यौं का खातिर,
नयां कूड़ा,
नौना नौन्‍यैां का,
सरस्‍वती मंदिर,
सब बण्‍ला,
पर जौंका परिवार,
काल का मुख समैंन,
ऊंका मन मा,
पहाड़ मा जल प्रलय
त्रासदी की तस्‍वीर,
मिटि नी सकदि.....

-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
12.8.13

मलेेथा की कूल