Thursday, May 5, 2022

डख्याटगांव भ्रमण (16-19 अप्रैल,2022)

 


पहाड़ की यात्राएं करना मेरा खास शौक है।  पहाड़ में विशेषकर उत्तराखण्ड के पहाड़।  14-17 अप्रैल, 2022 तक मेरी चार दिन की छुट्टियां होने के कारण मैंने 18/04/2022 से 25/04 तक की छुट्टियां ली और कार्यालय से मूलचंद के लिए प्रस्थान किया।  मेरे साथ मेरे कार्यालय के साथी श्री नवीन थपलियाल भी मूलचंद पर मुझे मिले।  वहां पर हमनें पुत्र मनमोहन सिंह जयाड़ा का इंतजार किया।  लगभग सांय के चार बज चुके थे।  थोड़ी देर बाद मनमोहन गाड़ी लेकर मूलचंद पहुंचा और गाड़ी में तेल भरवाकर 4.20 सांय हमनें देहरादून के लिए प्रस्थान किया।  सराय काले खां से हमनें दिल्ली मेरठ एक्सप्रेस का रास्ता पकड़ा और हमारी गाड़ी फराटे भरते हुए चल रही थी।  प्रधान मंत्री मोदी जी के लिए लोग जो भी कहें, लेकिन आरामदायक राजमार्ग से यात्रा करना अब आनंदमय हो गया है। 

 

               हमें भानियावाला अपने परिवार के अनुज श्री आनंद सिंह के मेंहदी कार्यक्रम में शामिल होना था।  बिना रुके हम चार घंटे में भानियावाला पहुंच गए और कार्यक्रम में शामिल होने पर सकून सा मिला।  अमेरिका से आए हुए प्रिय अनुज जगमोहन सिंह जयाड़ा से कई वर्ष बाद मिलने का सौभाग्य मिला। सभी भाई बंधु गांव हो या शहर से शादी में शामिल होने आए थे।  सबसे वहां पर मिलकर खुशी का अहसास हुआ।  अनुज दर्मियान सिंह गांव से आया हुआ था। जयाड़ा बंधु श्री सकलचंद जयाड़ा व जयवीर सिंह जयाड़ा जी का हमें मेले में आने का निमंत्रण था।  स्नेहवश हम भी मेले में शामिल होने के लिए उत्सुक थे। हमारा पहले से दख्याटगांव, बड़कोट, उत्तरकाशी जाने का कार्यक्रम तय था। देर रात तक कार्यक्रम में शामिल होने के बाद मैं छोटे समधि श्री सुरेद्र सिंह बिष्ट जी के घर बालावाला पहुंचा। 

 

               14 अप्रैल सुबह उठने के बाद नहा धोकर मैं अपने फास्ट फूड रेस्टोरेंट, जयाड़ाज फूड कोर्ट गया और बड़े पुत्र से मुलाकात की।  देहरादून में मुझे सुखद अहसास हो रहा था।  प्रदूषित दिल्ली के वातावरण से अलग देहरादून का वातावरण बहुत सकून देता है।  मुझे इंतजार है, 31 जुलाई, 2023 आए और सेवानिवृत्त होकर मैं देहरादून आऊं और जब मन करे उत्तराखण्ड की वादियों में भ्रमण करुं, गढ़वालि कविता, कहानियों का सृजन करुं।  मेरे मन की चाह सदा रहती है देवभूमि उत्तराखण्ड को देखूं, उड़कर अनंत आकाश से, नदी पर्वतों को निहारुं, जाकर बिल्कुल पास से”.  दिन भर देहरादून में रहने के बाद मैं सांय पांच बजे भानियावाला पहुंचा और बरात में  शामिल हुआ।  बरात ने लगभग सात बजे रुड़की के लिए प्रस्थान किया।  देहरादून में आंधी चल रही थी।  हमारी बस जैसे ही हरिद्वार के पास पहुंची, बरखा शुरु हो गई।  वातावरण ठंडा होने से बहुत ही अच्छा लग रहा था।   रुड़की से मुज्जफरनगर रोड पर लगभग नौ बजे रात्रि बरात होटल गोदावरी पहुंची।  वहां पर भव्य व्यवस्था की गई थी।  सकून के साथ मित्रों संग बैठकर शादी समारोह का खूब आनंद लिया।  रात को मैं, दर्मियान सिंह और बड़े भाई श्री गोबिन्द सिंह होटल के एक कमरे में सो गए। 

 

               सुबह पांच बजे मैं जाग गया, दर्मियान सिंह और बड़े भाई साहब सो रहे थे।  दर्मियान सिंह को देर तक साने की आदत है।  कुछ देर बाद भाई गोबिन्द सिंह जयाड़ा भी उठ गए।  दर्मियान सिंह को जगाया तो कहने लगा बरात ग्यारह बजे तक जाएगी, मैंने उसे बताया बरात सात बजे प्रस्थान कर जाएगी।  मैं नीचे बेसमेंट में गया, वहां सभी नाश्ता कर रहे थे।  मैं कमरे में आया और दोनों भाईयों को कहा, बरात जाने वाली है।   आप फटाफट हाथ मुंह धो लो।  दोनों ने देर कर दी, हम बेसमेंट में आए तो कोई भी बराती नजर नहीं आ रहा था।  समझ में आया, बरात जा चुकी है।  होटल से हम रुड़की बस अड्डे आए और हरिद्वार की बस पकड़ी।   एक घंटे में हम हरिद्वार पहुंचे फिर देहरादून की बस पकड़ी।  चालीस मिनट का सफर करने के बाद हम भानियावाला फ्लाई ओवर पर उतर गए।

 

               अब हम पैदल भानियावाला दुर्गा चौकी की तरफ चलने लगे।  भाई गोबिन्द सिंह जी कहने लगे, यहां पर राम गोपाल भट्ट जी रहते हैं उनके आवास पर चलते हैं।  मुख्य सड़क से कालोनी की सड़क पर मुड़ने के बाद उनका चौथा घर था।  जब हम घर पर पहुंचे तो लिखा हुआ था अठुरवाला।  गोबिन्द भाई साहब को लगा हम गलत घर में जा रहे हैं।  राम गोपाल जी आंगन में बैठे हुए थे, उन्होंने आवाज लगाई, अंदर आओ।  कई साल बाद भट्ट जी से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।  पंडित जी आत्मीयता से हमारे संग बात कर रहे थे। खूब आदर सत्कार सहित पंडित जी ने भोजन करवाया।  सायं के सात बज चुके थे, भट्ट जी के सुपुत्र डाक्टर साहब ने हमें चाचा दर्शन सिंह के आवास पर छोड़ा। कुछ देर बाद दर्मियान सिंह हमें वेडिंग प्वाईंट ले गया।

 

               रात्रि लगभग नौ बजे तक सभी परिजन एवं मेहमान आ चुके थे।  कहीं पर लोग बैठकर घूंट लगाकर आनंद ले रहे थे।  एक कोने में मण्डाण लगा हुआ था, सभी उल्लास से नाच रहे थे।  सभी से मुलाकात हो रही थी। मेरा सुपुत्र चंद्रमोहन सिंह, मनमोहन सिंह जयाड़ा, दोनों बहुएं और तीना नातिन औन नाति दग्लु भी देहरादून से पहुंच चुके थे।   बहुत ही अच्छा लगता है जब कार्यक्रम के बहाने अपनों से मुलाकात होती है, नहीं तो मुलाकात का समय किसके पास है, इस आधुनिक दौर में।  रात को हम वेडिंग प्वाईंट के कमरे में सो गए।

 

               आज 16 अप्रैल, 2022 को हमें डख्याटगांव जाना था। सुबह उठकर हमनें सीधे देहारादून के लिए प्रस्थान किया।  समधि जी के आवास पर पहुंचकर स्नान करने के बाद हमनें नाश्ता किया ।  लगभग दस बज चुके थे, हमनें रायपुर की ओर प्रस्थान किया। सहस्रधारा से होते हुए हम राजपुर रोड पहुंचे।  हम दर्मियान सिंह को गाड़ी में पेट्रोल भरने के लिए कह रहे थे।  मसूरी पहुंचने पर एक पेट्रोल पंप दिखा तो वह बंद था।  मसूरी से पहले बाएं हाथ को हमनें कैम्पटी फाल का बाईपास वाला रास्ता चुना।  काफी देर बाद हम कैम्पटी पहुंचे तो वहां वाहनों का तांता लगा हुआ था।  रेंग रेंग कर हमारी गाड़ी आगे बढ़ी। चार दिन का सार्वजनिक अवकाश होने के कारण पर्यटकों का तांता लगा हुआ था।  रास्ते में एक पेट्रोल पंप मिला, उसने हमें सिर्फ पांच सौ रुपये का पेट्रोल दिया।  अब हम चिंतित हो गए, आगे कहां मिलेगा पेट्रोल?  दर्मियान सिंह के दांत में दर्द था, वह गाड़ी धीरे चला रहा था।  कैम्पटी से उतर कर हम यमुनोत्री मार्ग पर चलने लगे।  हमें भूख भी लगने लगी थी, नैनबाग पहुंने पर हमनें गाड़ी में तेल भरवाया और डामटा की तरफ चल पड़े।  डामटा पहुंने पर एक होटल के आगे हमनें गाड़ी रोकी।    

 

               होटल में एक हिमाचली टोपी धारी ने हमें भोजन परोसा।  बड़े मधुर अंदाज में वह बात करते हुए हमें भोजन करवा रहा था।  मैं उसे निहार रहा था, कुछ ऐसा प्रतीत हो रहा था, उसने नशा किया हुआ है।  भोजन करने के बाद उससे मैंने उसका नाम पूछा।  उसने बताया, मेरा नाम शंभूनाथ है और में उत्तरप्रदेश का रहने वाला हूं।  दिखने में वो जौनसारी सा ही लग रहा था।  हमनें उसको कहा, आपने सुंदर अंदाज में हमें भोजन करा, आपका शुक्रिया।

 

               दर्मियान सिंह ने गाड़ी स्टार्ट की और अब हम नौगांव की तरफ जा रहे थे।  सड़क काफी संकरी थी, इसलिए दर्मियान गाड़ी प्यार से चला रहा था।  आसमान में बादल लग रहे थे, ऐसा लग रहा था, जरुर वर्षा होगी।  अनमोल जयाड़ा को मैंने फोन किया, हम नौगांव पहुंचने वाले हैं।  उसने बताया मैं आपको यमुनोत्री राजमार्ग से राजगढ़ी जाने वाली सड़क पर मिलूंगा।   लगभग साढे़ छ बजे हम बड़कोट पार करके राजगढ़ी वाली सड़क से यमुना पुल के लिए मुड़े।   अनमोल स्कूटी पर चलने लगा और हम उसके पीछे पीछे।  सड़क बहुत खराब थी।  हम जब टट्वा में पहुंचे तो एक सज्जन हाथ में ठेक्की लेकर आ रहे थे।  मैंने गाड़ी रुकवाई और उन्हें गाड़ी में बिठाया।  अब संवाद हुआ तो उन्होंने अपना नाम लीला सिंह जयाड़ा बताया।  कहने लगे, मेरा एक लड़का ग्राम विकास अधिकारी है।  इतना सुनते ही मैंने कहा, हिमांशु तो नहीं?  लीला भाई ने बताया, हां वही है।  बातचीत करते हुए हम गांव के नीचे पनघट्ट के पास पहुंचे, दर्मियान सिंह ने  गाड़ी रोकी और पार्क की। हमारा बिचार संकलचंद भाई जी के यहां जाने का था।  लेकिन अनमोल ने अपने घर चलने को कहा, जो हम टाल न सके। वर्षा शुरु हो चुकी थी, ठंड का अहसास होने लगा।  अनमोल के पिताजी श्री रुकम सिंह जयाड़ा जी से मुलाकात हुई। उनको मैं अप्रैल, 2015 के भ्रमण के दौरान मिल चुका था।  स्वर्गीय राम किशन जयाड़ा जी के छोटे भाई श्री कुशाल सिंह जयाड़ा जी से भी हमारी मुलाकात हुई। चाय पीने के बाद हमनें भोजन किया और गांव में हो रही रामलीला देखने के लिए प्रस्थान किया।  

 

               मारीच रावण संवाद चल रहा था।  मारीच रावण से कह रहा था, मैं बूढ़ा हो चुका हूं और हिम्मत हार बैठा हूं।  सुंदर अंदाज में सभी अपना किरदार निभा रहे थे।  बहुत साल बाद याने दूसरी बार रामलीला देखने का मौका डख्याटगांव में मिला।  सीता हरण का दृष्य सुंदर अंदाज में प्रस्तुत किया गया।  मुझे मंच पर बुलाया गया और मैंने अपनी एक कविता तीन पराणीसुनाई।  ठंड बहुत थी, उप प्रधान जी ने मुझे अपनी जैकिट पहनने को दी, तब कुछ राहत मिली।   कुछ देर बात हमनें साने के लिए अनमोल के घर को प्रस्थान किया।

 

               सुबह 17/04/2022 को जागने पर मैं बाहर आया तो पक्षियों का चहकना मनोहारी लग रहा था। कहीं तीतर की आवाज, कहीं लोगों की हलचल।  अनमोल के घर की तरफ धूप नहीं थी, लेकिन ऊपर गांव का दृश्य सुंदर लग रहा था।  टटेश्वर महादेव जी का भव्य मंदिर बीच गांव में है।  डख्याटगांट आज भी मूल स्वरुप में है।  यहां भी पलायन हुआ है, लेकिन खेती अभी होती है।   गांव में मेले के कारण बाहर से आए लोगों की वजह से खूब चहल पहल थी।  मैंने कुछ तस्वीरे और विडियो बनाए ताकि यादगार संकलन मेरे पास रहे।  नाश्ता करने के बाद हमनें श्री जयवीर सिंह जयाड़ा जी के आवास राजगढ़ी के लिए प्रस्थान किया।   संकलचंद जी व हम जब राजगढ़ी पहुंचे तो जयवीर भाई जी ने हंसते हंसते हमारा स्वागत किया।  जयवीर भाई के घर से दूर बड़कोट और अन्य क्षेत्र की सुंदरता नजर आ रही थी।  उनके घर के आगे एक भव्य वाटिका है, जहां फूल खिले थे और फुहारा भी।  यहां पर हमनें भोजन किया और कुछ देर बाद राजगढ़ी के लिए प्रस्थान किया। तीसरी बार मैं राजगढ़ी आया था, कोठा देखने की मेरी इस बार इच्छा थी।  जयवीर भाई से मैंने वहां जाने की इच्छा जताई।

              

               यहां पर राजा के जमाने का भव्य भवन था।  आज वह खंडहर हो चुका है और प्रांगण में कड़ाळि जमी हुई है।  मैंने जयवीर भाई से भवन की दुर्दशा के बारे में पूछा।  एक धरोहर की दुर्दशा को मैंने कैमरे में कैद किया।  मैं सोच रहा था, कभी यहां क्या चहल पहल रहती होगी? इस बार मैं मेले की झलक भली प्रकार से देखना चाहता था।  अब हमनें नीचे दख्याटगांव के लिए प्रस्थान किया।  चंद्रवदनी मंदिर में हम कुछ देर रुके।  माता के दर्शन करने के बाद हमनें पगडंडी से गांव के लिए प्रस्थान किया।  दर्मियान सिंह अपनी गाड़ी लेकर गांव के नीचे पार्क करके गांव में पहुंचा।  पिछले भ्रमण के दौरान मैं मेले को भली प्रकार से नहीं देख सका था।  मेला परिसर में पहुंचने पर मैंने देखा मेला शुरु हो चुका था।  स्त्री पुरुष गोल घेरे में नाच रहे थे।  पास ही नीमदरी एवं तिबारीनुमा भवन पर लोग बैठे हुए थे।  जन सैलाब और विभिन्न रंग, वेशभूषा में लोग अति सुंदर लग रहे थे।   मेले की भव्य झलक मन को बहुत मनोहारी लग रही थी। टटेश्वर महादेव की डोली मेले की शोभा बढ़ा रही थी।  मेले के प्रति कितना उत्साह दिख रहा था लोगों में, अवर्णनीय है।  

 

               मेला देखने के बाद हम प्रदीप जयाड़ा के घर गए।  वहां पर भी हमारा खूब मान सम्मान हुआ।  यहां हमें मेहमान के रुप में देख रहे थे, जबकि हम उन्हें कह रहे थे, हम जयाड़ा बंधु हैं।   कुछ देर बैठने के बाद हम श्री लीला सिंह जयाड़ा जी के घर पर गए।  वहां भी खूब खातिरदारी हुई। अब हमें श्री पंकज सिंह जयाड़ा के घर जाना था। पंकज वर्तमान में नई टिहरी पुलिस विभाग में कार्यरत है।   पंकज के यहां  पहुंचकर उनके पिता, ताऊ और चाचा श्री जबर सिंह जयाड़ा, श्री भजन सिंह जयाड़ा व श्री जगमोहन सिंह जयाड़ा जी से मिले और परिचय हुआ।   भै बंधो के गांव में खूब आनंद आ रहा था।  दूर दिल्ली से जिस मकसद से मैं यहां आया था, उसकी पूर्ण प्राप्ति मन को प्रफुल्लित कर रही थी। प्रकृति, संस्कृति दर्शन से क्या आनंद मिल रहा था, निशब्द हूं। यात्राएं जरुर करनी चाहिए, यात्रा करने से सुख की प्राप्ति होती है, और ज्ञान प्राप्ति भी।  सांय को हम अनमोल के घर पर गए और भोजन करने के बाद सो गए। 

 

सुबह 18/04/2022 को उठा तो देखा बाहर धूप आ चुकी थी।  सुबह का समय बहुत ही मनोहारी था।  पक्षियों की आवाज, दूर दिखती घाटी और ऊपर दिखता डख्याटगांव, बहुत ही आकर्षित लग रहे थे।  सुबह सबसे पहले हम आलोक जयाड़ा जी के यहा गए।   वहां पर उनकी दादी जी व ताऊ जी से मुलकात हुई।  सकलचंद भाई हमारे साथ थे।  पास ही स्कूल में बच्चे सज धजकर तैयार हो रहे थे।  पता लगा ये सब रामलीला के लिए तैयार हुए हैं। आज रामलीला में राजगद्दी मंचन था और मेले का अंतिम दिन भी था।  आलोक से मेरा संवाद हुआ, अब वे पदोन्नत होकर आई.टी.बी.पी. में असिस्टेंट कमाडेंट बन गए हैं।   कुछ समय रुकने के बाद हमनें श्री कुशाल सिंह जयाड़ा जी के घर की ओर प्रस्थान किया।

 

कुशाल सिंह जयाड़ा जी की मुझे मिस काल आई थी। मैंने उनसे बात की और घर पर आने का वादा किया।  वादे के अनुसार हम सभी उनके घर पर पहुंचे। वहां पर हमारी खूब आवाभगत हुई।  सभी जयाड़ा बंधुओं का हमें प्यार हमें मिल रहा था।  उधर राजगद्दी की तैयारी चल रही थी।  कुछ समय के बाद हम रामलीला मंच के सामने पहुंचे।  वहां पर बहुत बड़ी भीड़ थी।  राम, लक्ष्मण और सीता, हनुमान सभी मंच पर आए और राज्यभिषेक हुआ।  मेले की रौनक में समय कब कटा पता नहीं लगा।  सांय को हम अनमोल के घर लौट आए और सो गए। अब हमें 19/04/2022 को सुबह देहरादून के लिए प्रस्थान करना था।

 

19/04/2022 को सुबह उठने के बाद हमनें नित्यक्रम से निपटकर जाने की तैयारी शुरु की।  चाय पीने के बाद हमनें श्री सकलचंद जी के आवास की तरफ प्रस्थान किया।  गांव में हमारी मुलाकात श्री उपेन्द्र सिंह जयाड़ा जी से हुई थी।  उन्होंने हमें देहरादून जाते हुए अपने आवास पर बड़कोट में आने का निमंत्रण दिया था।  राजगढ़ी से जयवीर भाई हमें विदा करने के लिए सकलचंद भाई के आवास पर पहुंचे ।  चाय पीने के बाद सकलचंद भाई और जयवीर भाई हमें सड़क तक विदा करने आए।  आते हुए हमनें एक ग्रुप फोटो ली और गले लगकर विदा हुए।  अब हम यमुना पुल की ओर टट्वा को निहारते हुए चल रहे थे।  टट्वा को देखने की मेरी बहुत इच्छा थी, जो इस बार पूरी न हो सकी। डख्याटगांव पीछे छूटता जा रहा था और हम यादों की पोटली लेकर गंतब्य की ओर बढ़ रहे थे।  श्री लीला सिंह जयाड़ा जी हमारे साथ थे।  बड़कोट में वे हमें उपेन्द्र भाई जी के आवास पर ले गए।  उपेन्द्र भाई की वृध्द माता जी आंगन में बैठी हुई थी।  हमनें माता जी को प्रणाम किया और उन्होंने हमें आशीर्वाद दिया।  उपेन्द्र भाई जी से संवाद हुआ और चाय पानी का दौर चला।  नाश्ता तैयार हो चुका था।  हमनें नाश्ता किया और मैंने उपेन्द्र भाई को अपना पहला गढ़वाली काव्य संग्रह अठ्ठैस बसंत भेंट किया।

 

               लगभग दिन के बारह बज चुके थे।  अब हम नौगांव की ओर गाड़ी में जा रहे थे।  बर्नीगाड में रुककर दर्मियान सिंह ने गाड़ी की धुलाई की, क्योंकि वहां पर एक झरना था और सभी लोग वहां पर अपनी गाड़ी धो रहे थे।  गाड़ी धोने के बाद दर्मियान सिंह ने हाथ मुंह धोया और बड़े भाई श्री गोबिन्द सिंह जी ने स्नान किया।  यमुना घाटी में गर्मी बहुत थी।   कुछ देर रुकने के बाद हमनें डामटा नैनबाग की ओर प्रस्थान किया।  अब हम बिना रुके चल रहे थे।  विकास नगर सड़क मार्ग से एक सड़क कैम्पटी फाल, मसूरी के लिए जाती है।  अब हम उस मार्ग पर चल रहे थे। दिन के दो बज चुके थे और चारों ओर गर्म हवा चल रही थी। 

 

कैम्पटी फाल से पहले हम एक जगह पर रुके।  वहां पर गधेरे में एक झरना था।  पास हि एक होटल था वहां पर हमनें गाड़ी खड़ी की और चाय के लिए कहा।  वहां पर बहुत पानी बह रहा था।  होटल वाले को हमनें कहा, आप इसका सदुपयोग करो, यहां घराट लग सकता है या बिजली पैदा करने की टरबाईन।  होटल के नीच उन्होंने फलदार पेड़ लगा रखे थे। यह क्षेत्र पर्यटन की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है।  यहां पर्यटक बहुत आते हैं।  चाय पीने के बाद हमनें मसूरी की ओर प्रस्थान किया।  अब मौसम कुछ ठंडा लग रहा था।  पर्यटकों की हलचल बहुत थी।  मसूरी से सहस्रधारा रोड, रायपुर होते हुए लगभग चार बजे हम अपने रेस्टोरेंट जयाड़ा फूड कोर्ट पहुंच गए।  वहां पर हमनें ममोस खाए और कुछ देर बाद छोटे समधि जी के आवास पर बालावाला पहुंचे।  रास्ते में खिचड़ी बनाने के लिए हम फोन से बता चुके थे। हाथ मुंह धोकर हमनें खिचड़ी खाई और आराम किया। 

 

लगभग सात बजे हमनें भानियावाला के लिए प्रस्थान किया क्योंकि हमें श्री बिक्रम सिंह जयाड़ा के सुपुत्र श्री सूरज जयाड़ा के मेंहदी कार्यक्रम में शामिल होना था।  वेडिंग प्वाईंट पहुंचकर सभी परिजनों से मुलाकात हुई। हर जानकार अपने अंदाज में मिल रहा था, और संवाद भी हो रहा था।  शादी समारोह का आनंद लेने के बाद हम वेडिंग प्वाईंट के कमरे में सो गए।

 

20/04/2022 सुबह उठने पर भाई गोबिन्द सिंह जयाड़ा जी ने बताया मुझे पेचिस लग गई है। शायद बर्नीगाड में नहाने से उन्हें स्वास्थ्य संबंधी तकलीफ हो गई।  वे अपने सुपुत्र संजय जयाड़ा के साथ रायपुर चले गए।  मुझे लेने के लिए मेरा छोटा पुत्र मनमोहन सिंह जयाड़ा आया।  मैंने दर्मियान सिंह को अल्विदा कहा । देहरादून में हम दोपहर तीन बजे हमनें दिल्ली के लिए प्रस्थान किया।  जोगीवाला चौराहे पर हमें दर्मियान सिंह के बड़े सुपुत्र मिले, उन्हें भी  दिल्ली जाना था।  कुछ देर बाद हम बस अड्डे के पास मारुति शो रुम पहुंचे।  पुत्र मनमोहन को मिनि ट्रक खरीदने के लिए कुछ औपचारिकताएं पूरी करनी थी। ठीक 4.30 बजे हमनें दिल्ली के लिए प्रस्थान किया।  दिल्ली में मुझे द्वारिका में श्री शोबन सिंह जयाड़ा के सुपुत्र की शादी में शामिल होने जाना था।  रात दस बजे हम द्वारिका पहुंचकर शादी में शामिल हुए।  द्वारिकार से  रात लभगभ एक बजे हम अपने आवास संगम विहार पहुंचे।   

 

दर्मियान सिंह के सौजन्य से डख्याटगांव का यादगार भ्रमण हुआ।  दर्मियान सिंह को भ्रमण करने का शौक रहता है।  उसके साथ मैंने 2004 में देहरादून से कालसी, चकरौता, त्यूणी, मोरी, नौगांव, डामटा, नैनबाग, मसूरी का भ्रमण किया था।  अगली मंजिल हमारी पीपलकोटी, बिमरु और घुत्तू के पास गंगी गांव भ्रमण है। ईश्वर से कामना है, हम उत्तराखण्ड भ्रमण करते रहें। 

(जगमोहन सिंह जयाड़ा  जिज्ञासू”, 06/05/2022)



















































Wednesday, May 4, 2022

पहाड़

 


 जब घुमण कु मन करदु,

हम त्येरा धोरा औन्दा छौं,

रौंत्याळि डांडी हिंवाळि कांठ्यौं द्येखि,

मन सी अति खुश ह्वन्दा छौं।

 

गैरी गैरी घाटी ऊंचि कांठी,

सुणेन्दु पोथ्लों कु चुंच्याट,

गाड गदन्यौं मा बग्दु पाणी,

घट्वाळा भैजि का घट्ट मा ठाट।

 

दूर कखि कै गौं मा जब बजदन,

हमारा पारंपरिक ढ़ोल दमौं,

ऊलार सी छै जान्दु मन मा,

ज्यु करदु झट्ट वखि पौंछि जौं।

 

बणु मा लाल बुरांस दिखेन्दा,

मुल मुल हैंस्दि हिंवाळि कांठी,

दूर बिटि देख्दा छौं जब हम,

पहाड़ की पैरिं सुखिलि ठांटी।

 

पर्यटक औन्दा त्वे द्यखण,

कूड़ा फुळेक करदा नखरु काम,

पर्यावरण प्रदूषित भि ह्वन्दु,

जै फर लग्युं चैन्दु विराम।

 

स्वर्ग छ पहाड़ हमारु,

जख छन द्यव्तौं का धाम,

पंच भै पंडौं ऐन जैं धर्ति मा,

पहाड़ मा ऐन प्रभु श्रीराम।

 

-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू

रचना-1729

दिनांक 26/11/2021

दूरभाष: 9654972366

नई दिल्ली

सांची पत्रिका में प्रकाशित 

मलेेथा की कूल