Tuesday, November 23, 2021

यात्रा स्वामी आनंद गीत जी के आश्रम नई टिहरी की....

 


             






बहुत समय से स्वामी आनंद गीत जी के पास जाने का विचार था, परन्तु मन कसमसाकर ही रह जाता.  ललथ गांव भागवत कथा में शामिल होने आया था. 9 अक्तूबर, 2021 को सुबह 9.30 बजे ललथ से रिसकोटी के लिए प्रस्थान किया.

    सड़क से गुजरते हुये मलेथा के सेरे नजर नहीं आ रहे थे.  रेलवे परियोजना स्थल में बदल चुके हैं सभी सेरे.  माधो सिंह भंडारी जी ने जिस मलेथा की धरती के लिए पुत्र का बलिदान दिया था, आज बिक चुका है, बदल चुका है.

सुबह 10.30 के लगभग मलेथा से हमनें गाड़ी को डांगचौंरा की तरफ मोड़ा.  सर्वत्र हरा भरा दृष्य नजर आ रहा था.   चढ़ाई का सफर था, गाड़ी सरपट भाग रही थी.  लगभग 11 बजे हम रिसकोटी बस स्टैंड पर पहुंचे और गाड़ी खड़ी करके रिसकोटी पहुंचे.  

      बड़ी बहन ने हमारे लिए भोजन बनाया. आंगन के पास ही अमरुद पके थे.  पके अमरुद में कीड़े थे, कच्चे अमरूद ही खाए.  हमें शुशील भटट, भटकंडा की शादी में नयी टिहरी जाना था.  भोजन करने के बाद लगभग दोपहर तीन बजे हमनें नयी टिहरी के लिए प्रस्थान किया. बड़ी बहिन ने हमें काखड़ी, कददू, पके केले इत्यादि देकर विदा किया.

        कांडीखाल से उतराई का रास्ता था.  अब मैं रिसकोटी के श्री राम सिंह रावत की जीप में बैठा था. आगे मेरा छोटा पुत्र मनमोहन गाड़ी चला रहा था. मगरौं,पौखाल होते हुये में पीपल डाली पहुंचे.  पास ही पेट्रोल पंप से हमने तेल भरवाया.  कुछ समय बाद हमनें आगे के लिए प्रस्थान किया. टिपरी पहुंचकर लबालब पानी से भरी झील को देखकर सुखद अहसास हुआ.  स्वामी आनंद गीत जी को मैंने बाध स्थल पहुंचने की सूचना दी.  भगीरथ पुरम होते हुए लगभग पांच बजे हम बौराड़ी पहुंचे.  गाड़ी पार्क करके हम गणेश चौक के पास भारत मंगलम होटल गये और शुशील भटट से मुलाकात की.

          कुछ देर रुकने के बाद मैंने स्वामी आनंद गीत जी से बात की.  उन्होंने बताया आप ढ़ुंगीधार मेरे आश्रम पर आ जाओ.  अब हमनें ढ़ुंगीधार के लिए प्रस्थान किया और स्वामी जी के आश्रम पहुंचे. स्वामी जी ने स्वागत करते हुये मुझे गले लगाया.  पुत्र मनमोहन मेंहदी कार्यक्रम में शामिल होने होटल चला गया.  स्वामी जी ने मुझे बताया आप कपड़े ठीक से पहन लो, यहां ठंड बहुत है।  स्वामी जी के सुझावनुसार मैंने हाथ मुंह धोकर कपड़े धारण किए।  मैंने स्वामी जी से कंकोड़े की शब्जी बनाने का अनुरोध किया।  स्वामी जी ने अपनी सगोड़ी से कंकोड़े मंगवाकर मेरी इच्छा की पूर्ति की।  स्वामी जी और मैं झरोखे में बांस की कुर्सियों में बैठकर बातचीत करते हुए प्रकृति का आनंद ले रहे थे।  स्वामी जी के आश्रम से भगीरथ पुरम और टिहरी बांध की झील का मनमोहक नजारा दिख रहा था।  कुछ देर बाद हमनें भोजन किया और सो गए।

 

      सुबह उठने पर सामने चंद्रवदनी की तरफ सूर्योदय हो रहा था।  सोच रहा था स्वामी जी कितने सौभाग्यशाली हैं, जिनके आश्रम से चंद्रवदनी, खैंट पर्वत, गंगोत्री हिमालय, टिहरी बांध की झील सामने नजर आ रहे थे।  जिंदगी में जिसने प्रकृति के सौन्दर्य को नहीं निहारा उसका जीवन बेकार है।  सभी की धन कमाने की ललक होती है लेकिन कोई भाग्यशाली इंसान होगा जो प्रकृति का आनंद ले पाता है। मुझे आज दिनांक 10/10/2021 को श्री शुशील भट्ट की शादी में पेटव, जाखणीधार जाना था।  मैंने अपने पुत्र मनमोहन को फोन किया और बुलाया।  थोड़ी देर बाद मनमोहन आ गया और मैं स्नान कर चुका था।  मनमोहन ने स्नान किया और उसके बाद हमनें नाश्ता किया।  तैयार होकर हमनें स्वामी जी से जाने की आज्ञा प्राप्त की और गाड़ी में बैठकर पेटव, जाखणीधार के लिए प्रस्थान किया।  बरात निकल चुकी थी जिनसे हमारी मुलाकात टिपरी-मदन नेगी ट्राली स्थल पर हुई। 

 

कुछ देर बाद हम टिपरी पहुंचे और कुछ देर रुकने के बाद प्रस्थान करते हुए लगभग एक बजे पेटव गांव पहुंचे।  सड़क पर चाय इत्यादि की व्यवस्था थी। अब बरात आगे दुल्हन के घर की तरफ बढ़ी, हमनें विवाह स्थल पर पहुंचकर श्री शुशील भट्ट से जाने की इजाजत ली क्यौंकि हमें देहरादून दिल्ली के लिए प्रस्थान करना था।  अंजनीसैण में मैंने श्री धियानंद उनियाल जी व श्री चंद्रमोहन थपलियाल जी से चलते चलते मुलकात की और तीन बजे ललथ गांव पहुंचे।  सड़क पर रुककर हमनें बहु और नातणि के आने का इंतजार किया।  अब हमनें देहरादून के लिए प्रस्थान किया।  बगवान से सड़क शानदार थी और गाड़ी खूब भाग रही थी।  मूल्यागांव, देवप्रयाग, तीन धारा होते हुए हम बछेलिखाल से पहले एक मोड़ पर पहुंचे।  वहां पर भीड़ लगी हुई थी, हमनें वहां पर देखा एक स्कार्पियो सड़क से नीचे गिरी हुई थी।  भगवान का शुक्रिया वो गाड़ी नीचे नही लुढ़की, नहीं तो किसी का बचना मुमकिन नहीं था।  लगता था सवारी घायल ही हुए होगें। 

 

साकनीधार से उतराई की सड़क थी, सौड़पाणी, कौडियाला होते हुए हम ब्यासी पहुंचे.  वहां पर कुछ देर रुकने के बाद हमनें प्रस्थान किया और रिषिकेश होते हुए डोईवाला पहुंचे।  वहां पर भयंकर जाम लगा हुआ था।  किसी प्रकार निकलते हुए हम सांय 6.30 बजे बालावाला पहुंचे।  अपने होटल जयाड़ाज फूडकोर्ट पर जाकर मैंने अपने बड़े पुत्र चंद्रमोहन से मुलाकात की और सब हाल चाल पूछे।  समधि श्री मातबर सिंह सजवाण जी से संवाद हुआ और रात्रि भोजन करने के बाद 11 बजे हमनें दिल्ली के लिए प्रस्थान किया।  छुटमलपुर तक छोटे पुत्र मनमोहन ने गाड़ी चलाई और उसके बाद बड़े पुत्र चंद्रमोहन ने दिल्ली तक गाड़ी चलाई।  लगभग साढ़े चार बजे सुबह 11/10/2021 को हम अपने आवास संगम विहार पहुंच गए।

 

जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू

20/10/2021  

Wednesday, April 7, 2021

ढुंगा

 


जब क्वी ब्वल्दु मनखि कु,

बल तू ढुंगू छैं,

सुणदन तब ढुंगा,

ह्वन्दा छन भारी नाराज,

तब ब्वल्दन,

ढुंगा मनख्यौं कु,

तुम छैं ढुंगा,

अर दुमुख्या मनखि।

 

सच मा ढुंगा द्यब्ता छन,

मूर्ति बणैक मंदिर मा,

पूजदन मनखि,

घर कूड़ा भि बणौंदन,

जख अपणु जीवन बितौन्दन,

मण्डाण मा ढुंगा बिछैक,

ऊंका ऐंच द्यब्ता नचौन्दन।

 

ढुंगा ब्वल्दन,

हम्न पाड़ नि त्यागि,

तुम मनखि यना छैं,

जख मिलि गळ्खि,

वे मुल्क देस भागी।


जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू

रचना: 1634

सूर्योदय

 


ह्वन्दु छ जब पाड़ मा,

हिंवाळि कांठी,

सोना चान्दी सी चमकदिन,

अति स्वाणि लगदिन,

चौखम्बा, नन्दा घूंटी,पंचाचूली,

चौखम्बा अर त्रिशूली।

 

पर्वतजन सदा द्यखदन,

करदन भलु ऐसास,

जब औन्दन सूरज भगवान,

ऊंचि हिंवाळि कांठ्यौं बिटि,

देवभूमि उत्तराखण्ड लग्दि,

स्वर्ग का समान।

 

अंध्यारु मिटि जान्दु,

डांडी-कांठ्यौं मा ऐ जान्दु घाम,

ल्यन्दन मनखि सुबेर,

देवभूमि का द्यब्तौं कु नाम।

 

शुरु ह्वन्दु दिन,

करदन मनखि अपणि धाण,

सूरज भगवान चमकदन,

खुश ह्वन्दु ज्यू पराण।

 

सूर्योदय पाड़ मा,

लग्दु अति प्यारु,

मुल्क भि हमारु,

यीं दुन्यां मा अति न्यारु।


जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू

रचना: 1633

धौळि बचावा

 


धौळ्यौं कु जल्म छ ह्वयुं,

हिमालयी ग्लेशियरों बिटि,

ब्वल्दन जौंकु सदानीरा,

सागर जथैं बग्दु जान्दिन,

टकरान्दिन अपणा किनारों सी।

 

धौळ्यौं का धोरा छन,

प्रसिद्ध पंच प्रयाग,

जख ब्याखुनि बग्त,

बजदन शंख अर घाण्ड,

जगदन झिलमिल द्यू।

 

धौळ्यौं का धोरा बस्यां छन,

सैर अर बजार,

जख बिटि निकळ्दु छ,

प्रदूषित पाणी,

गंदळि कर्याल्यन धौळि,

हे! मनख्यौं तुम्न,

धौळ्यौं की पवित्रता,

कतै नि पछाणि।

 

आज आवाज उठणि,

धौळ्यौं तैं बचावा,

पबित्रता खत्म न करा,

धौळ्यौं तैं न सतावा।


जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू

रचना: 1632

पहाड़

 


 

मन तैं सकून देन्दन,

जौंका चरण मा बग्दिन,

पवित्र धौळि गंगा-जमुना,

च्वंट्यौं मा चमक्कदु,

सुखिलु चमकिलु ह्युं।

 

बदन मा जौंका धारण कर्यां,

हरा भरा बण,

पीठ फर जौंका झूमदन,

बांज, बुरांश अर देवदार।

 

बाटौं फुंड हिटदा बट्वै,

पौन्दन प्रकृति कु प्यार,

द्यखदन डांडी-कांठी,

मन मा पैदा ह्वन्दु उलार।

 

मनखि ब्वल्दन,

बल जिंदगी पहाड़ ह्वेगि,

पर पहाड़ अति प्यारा,

यीं दुन्यां मा अति न्यारा।

 

जुगराजि रै पहाड़,

त्वेन बीर भड़ द्येखि ह्वला,

आपकु रैबार हम्तैं,

उत्तराखण्ड की जै ब्वला।


जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू

रचना: 1631

“बसंत बौड़ि ऐगि”

 


 

ह्युंद अड़ेथि बसंत ऐगि,

मन मा छैगि ऊलार,

डांडी-कांठी मुल मुल हैंसणि,

झलकणु फ्यौंलि कु प्यार।

 

बौळ्या बुरांस बौळ्या बणिक,

डांडौं मा लगौणु बणांग,

दूर बिटि डांडौं द्येखि लगदु,

जन फैलीं संग्ता आग।

 

भम्माण ऊदासी दिन छयां,

गैरी घाट्यौं द्येखि ऐसास होंदु,

यु बौळ्या बसंत किलै हमारा?

मन मा कुतग्याळि लगौन्दु।

 

बुरांस हिंवाळि कांठ्यौं तैं,

मुल मुल हैंसि सनकौणा,

हम बिंग्दौं सान सान मा,

अफुमा छ्वीं छन लगौणा।

 

द्यब्तौं की रोपिं पंय्या की डाळि,

फैलौणी बसंती बयार,

फूलीं संग्ता पाख्यौं मा,

बल जख हरी भरी सार।

 

बाळु बसंत बौड़िक ऐगि,

पिंगळि दिखेणि लयाड़ी सार,

कवि जगमोहन जयाड़ा जिज्ञासू”,

रंगमत ह्वयुं बल हपार।


-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू

दर्द भरी दिल्ली/ 05/02/2021

रचना: 1630

“अपणि भाषा”

 


बाळापन बिटि ब्वल्दु मनखि,

अपणि प्यारी बोली-भाषा,

ब्वे-बाब सिखौन्दा छन,

ज्व हमारी सदानि आसा। 

 

बीर-भड़ु की भाषा रै,

शब्द स्वाणा रच्यां बस्यां,

भाषा हमारी विरासत भी,

त्रिस्कार कब्बि न कर्यां।

 

शब्द कु असर द्यखा,

डरखु कु ब्वल्दा स्याळ,

एक गौळा रड़ि जू,

वेकु नजर औन्दा भ्याळ।

 

नाचणौं ज्यु करदु जैकु,

वेकु ब्वल्दा छन नचाड़,

नाचणौं कु मण्डाण लगौन्दा,

जख हमारु प्यारु पाड़।

 

शब्द ज्वड़िक भाषा बण्दि,

शब्द बतौन्दा छन भाव,

मयाळु शब्द एक छ,

जैकु ह्वन्दु अपणु भाव।

 

संकल्प ल्यवा भाषा छन,

गढ़वाळि, कुमाऊंनि, जौनसारी,

मिटण न द्यवा बोली भाषा,

जगमोहन जयाड़ा जिज्ञासूतैं प्यारी। 

  

-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू

दर्द भरी दिल्ली/ 05/02/2021

रचना: 1629

मलेेथा की कूल