Thursday, November 26, 2015

पत्नी चालीसा......

जय हो ज्‍यु पराण सी प्‍यारी,
गुण की गागर तू हमारी-1
ससुर जी की प्‍यारी बेटी,
टी.बी. देखदि बेड मो लेटी-2
तेरी खुट्टि हम दबौन्‍दा,
जीवन अपणु सुखि बणौन्‍दा-3
हात मा तेरा रन्‍दि थमाळि,
बिट्टौं ऊद तू मारदि फाळि-4
सासू जी की बेटी प्‍यारी,
तेज सुबौं की लग्‍दि न्‍यारी-5
हैंस्‍दि मुखड़ि त्‍वैन  दिखाई,
ब्‍यो का दिन बिटि ज्‍युकड़ि जळाई-6
दुश्‍मन त्‍वैकु मुख लगौन्‍दा,
ज्‍युकड़ि मेरी खूब जळौन्‍दा-7
करदा छन ऊ तेरी बड़ाई,
त्‍वैसी सदानि दुख हि पाई-8
भूत पिचास नजिक नि औन्‍दा,
जब हम तेरु ध्‍यान लगौन्‍दा-9
तीन लोक मा तू छैं न्‍यारी,
किस्‍मत कोणा पड़ीं हमारी-10
घर बार की तू कल्‍याणी,
तेरु भेद हम्‍न नि जाणी-11
सुख दुख त्‍वैसी हम छौं पौणा,
जिंदगी का दिन लगौणा-12
जब बिटि जिंदगी मा आई,
सदानि डरदु डरदु खाई-13
तेरी डौर कू बण्‍यां गंगलोड़ा,
त्‍वैकु छौं हम गधा अर घोड़ा-14
धोन्‍दा छौं हम तेरी साड़ी,
चन्‍न लगिं जिंदगी की गाड़ी-15


दिनांक 22.11.2015



Tuesday, November 17, 2015

हमारु पाड़........


ढुंगा डौळौंन बण्‍युं छ,
आगास तक ऊंचा ऊठिक,
सीना अपणु ताणिक,
गर्व सी तण्‍युं छ.....

रैबार छ वेकु हमतैं,
मेरी तरौं ऊब ऊठा,
हिटदु रवा ठण्‍डु मठु,
नि रोकणु अपणा खुट्टा....

पाड़ी आज प्रगति फर छन,
यनु लग्‍दु पाड़्यौंन,
 पाड़ की बात मन सी माणी,
होणि छ तौंकी खाणी बाणी....
दु:ख एक बात कू छ,
पाड़्यौंन पाड़ कू रैबार,
मन मा धारण करिक,
पाड़ की कीमत नि पछाणि,
पाड़ त्‍यागि घर कूड़ी छोड़ि,
किलै प्‍यारा पाड़ सी मुक्‍क मोड़ी...


पाड़ विशाल हृदय छ,
जल्‍मभूमि की बजै सी,
हमारु ज्‍यु पराण सी प्‍यारु,
सच बोला त यीं दुनियां मा न्‍यारु....

5.11.2015

सुबेर....


आगास मा रतब्‍येणु आई,
अहसास ह्वै रात ब्‍येंगि,
रात की कोखि बिटि,
सुबेर कू जल्‍म ह्वैगि.....
तब दूर खिर्शु की डांड्यौं मा,
झळ झळ सूरज भगवान ऐगि,
उठ्यन मेरा मुल्‍क का मनखि,
खासपट्टी ऊदंकार ह्वैगि......
मेरा गौं बागी नौसा मा,
खूब चैल पैल ह्वैगि,
क्‍वी चार बंठा पाणी ल्‍हेगि,
क्‍वी अपणि भैंसी नह्वैगि....
गौं का बीच चंद्रवदनी मंदिर मा,
क्‍वी द्यू जगौणु घंटी बजौणु,
बोडा कांधि मा हळसुंगि धरि,
अपणा माळ्या बळ्दु हक्‍यौणु.....
कवि जिज्ञासु का गौं मा,
सुबेरकू यनु दृश्‍य होन्‍दु,
दर्द भरि दिल्‍ली की सुबेरदेखि,
यनु भाव कविमन मा औन्‍दु......


15.11.2015

दर्द्याळु पाड़.....


सब्‍बि धाणि देन्‍दु,
देन्‍दु हि देन्‍दु छ,
कुछ नि लेन्‍दु......
पहाड़ कू ठण्‍डु पाणी,
बारानाज की दाणी,
कैल्‍सियम कू भण्‍डार कोदु,
हाडगि मजबूत बणौन्‍दु,
रोग भी दूर भगौन्‍दु,
गेंठी, बेबर, बेर, तड़ल,
काखड़ि, मुंगरि,गोदड़ि, चचेन्‍डि,
कुजाणि क्‍या क्‍या देन्‍दु,
देन्‍दु हि देन्‍दु कुछ नि लेन्‍दु.....

अपणा मनोहारी रुप सी,
हमारा मन मा ऊलार जगौन्‍दु,
चुंच्‍यान्‍दा पोथ्‍लौं कू चुंच्‍याट,
फर फर बग्‍दु बथौं,
रौला पाखौं बग्‍दु पाणी,
बांज बुरांस देवदारु,
मुल मुल हैंस्‍दु बुरांस,
मनख्‍यौं का मयाळु मन मा,
कुतग्‍याळि सी लगौन्‍दु....
सोचा दौं, दर्द हि देणा छौं,
कथ्‍गा मयाळु रौंत्‍याळु छ,
हमारु दर्द्याळु पाड़......

14.11.2015 

घड्याळु .....


लगण लग्‍युं छ घर मा,
घड्याळा औण लग्‍युं छ,
एक बड़ु सी लगोठ्या  मेरु,
देव्‍ता का नौं कू ल्‍हयुं छ......


दगड़्यौं मेरा बतौण लग्‍युं छौं,
घड्याळा मा जरुर ऐन,
जथ्‍गा भाग मा होलु तुमारा,
लगोठ्या की लोतगि खैन......

सिरी फट्टी कू मोह हो मन मा,
घड्याळा सी मिलि जैन,
घड्याळा का खातिर रमेश्‍वरी,
झोळा पेट लुकैक ल्‍हेन.....

लगोठ्या आंक नि लेलु त,
मन मा कतै नि घबरैन,
ल्‍वठ्यन पाणी का  बूंद कुछ,
कंदूड़ फर वेका तरकैन......

अंके जालु लगोठ्या जब,
थमाळि हात मा ल्‍हेन,
कैंधी खूब रख्‍यन सिरी फर,
घड्याळा सी मिलि जैन.....

ख्‍याल रख्‍यन हे दगड़्यौं मेरा,
बांठी तुम हि लगैन,
कार बार करदु करदु,
लोतगि मोतगि घळ्कैन.....

भितर्वांस की रस्‍सी होलि सवादि,
गिलास भरिक प्‍येन,
ख्‍याल रख्‍यन मन मा अपणा,
लत्‍ग पत्‍ग कतै न लगैन.....

दवै दारु कू बंदबस्‍त भिछ,
बेफिक्र तुम मन मा रैन,
कृपा करयन तुम मैं फर,
घड्याळा मा शामिल ह्वैन.....

देव्‍ता पुजै कू न्‍युतू मेरु,
घंघतोळ मा बिसरि न जैन,
जग्‍वाळ मा रौलु मैं तुमारी,
सनक्‍वाळि तुम ऐ जैन......


18.11.2015

Friday, November 13, 2015

दूधबोली भाषा....


कवि की कुटि मा रिटणि रन्‍दि,
कवि की दूधबोली भाषा,
बौळ लगौन्‍दि कवि का मन मा,
दूर भगौन्‍दि निरासा......

राज करदि कवि मा मन मा,
कवितौं कू जल्‍म करौन्‍दि,
रैबारु होन्‍दि छन वींकी,
भाषा प्रेम जगौन्‍दि.....

नौट कमैक मनखि बणि जांदा,
जिंदगी भर धन जग्‍वाळा,
श्रृंगार कर्ता दूधबोली का,
होन्‍दन भाषा प्रेम रखण वाळा....

कामना करदु मन कलम सी,
कवि की होन्‍दि अभिलाषा,
जीवन धन्‍य तब होलु मेरु,
फलु फूलू मेरी दूधबोली भाषा.......

7.11.2015

गढ़वाळि कवितौं मा...


सन् उन्‍नीस सौ पच्‍चीस तलक,
बामणूं कु एकाधिकार रै,
साख्‍यौं बिटि जारी कविता-जात्रा,
'अंग्‍वाळ' कविता संग्रह,
गढ़वाळि कविता पुराण मा,
यनु लिख्‍युं छ.....
यनु भि लिख्‍युं छ,
सरोळा बामण हि,
ज्‍यादातर कवि रैन,
1925 का बाद,
जजमान गढ़वाळि कवि ह्वैन....

बग्‍त बदलि आज यनु निछ,
उत्‍तराखण्‍डी समाज का लोग,
कवि अर लिख्‍वार छन,
कुछ त पाड़ का दर्द सी,
उच्‍च कोटि का कवि बणिग्‍यन,
क्‍वी भाषा प्रेम मा.......

कवि नजर का कारण,
'अंग्‍वाळ' कविता संग्रह पढ़िक,
कविमन मा ख्‍याल आई,
कविता रुप मा लिखिक,
प्रिय पाठक गण आपतैं बताई....


7.11.2015

मलेेथा की कूल