Tuesday, June 30, 2015

कुमाऊं की बारदोली.....



सल्‍ट भारी बीहड़ इलाकु थौ,
अर ऊंचा नीसा डांडा,
फैसला ह्वै,
जब भी क्‍वी बैठक होलि,
रणसिंगा बजैये जालु,
अंग्रेज बोल्‍दा था,
बल यू पहाड़ कू,
खतरनाक टेलीफोन छ......

पटवारी पेशगार तैं,
घूस देणु बंद करेगे,
अब ऊं तैं हर चीज,
मोल ल्‍हीक खाण पण्‍नि थै,
20 सितम्‍बर, 1930 कू,
नयेड़ नदी का छाला,
नरसिंग गिरी का बगड़ मा,
एस.डी.एम. हबीबुर्ररहमान कू,
पुलिस कैम्‍प लगि,
सैडु डंगूला गौं घेरेगि,
गौं मा जू मनखि था,
ऊं फर भारी मार पड़ि,
बचे सिंह जी का घर की,
कुड़कि करेगी,
पुलिसन खूब लूट पाट करि,
घोड़ा दौड़ेक फसलपात,
बरबाद करेगि......

खुमाड़, टुकनोली, चमकना,
जब खबर पौंछि,
रणसिंगा बजि,
कई सौ मनखि,
नयेड़ का छाला कठ्ठा ह्वैन,
फसल कु हर्जानु,
वसूल करेगे,
एस.डी.एम. मजबूर ह्वै,
वापस लौटिगे.....

मौलेखाळ मा सभा ह्वै,
फैसला करेगे,
अत्‍याचारु सी बचण का खातिर,
नेता गिरफ्तार होला,
ठेकेदार पान सिंह पटवाळ,
सबसि पैलि गिरफ्तार ह्वैन,
येका बाद खुमाड़ मा,
पुरुषोत्‍तम जी का यख,
बैठक कू आयोजन ह्वै,
तय करेगे जौंका खिलाफ,
वारंट जारी होयां छन,
अपणि गिरफ्तारी देला,
लक्ष्‍मण सिंह अधिकारी जिन,
आंदोलन कू संचालन करि....

30 नवम्‍बर, 1930 कू,
मोहान डाक बंगला फर,
सत्‍याग्रहियौं कू जत्‍था पौंछि,
डंडा की बरसात ह्वै,
सब्‍बि जेल मा कैद करेग्‍यन....

सिलसिला जारी रै,
चार पांच सिंतम्‍बर, 1942 कू,
खुमाड़ मा भारी भीड़ जमा ह्वै,
गोबिन्‍द सिंह ध्‍यानी जिन,
पुलिस अर एस.डी.एम. कू,
बाटु रोकिक विरोध करि,
जानसनन गोळी चलाई,
गंगाराम अर खिमानंद कांडपाल,
चूड़ामणि अर बहादुर सिंह मेहरा,
शहीद ह्वैन, कुछ लोग घायल ह्वैन,
सल्‍ट की बहादुरी देखिक,
महात्‍मा गांधी जिन,
कुमाऊं की बारदोली की,
पदवी प्रदान करि........

-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु,
सर्वाधिकार सुरक्षति,
दिनांक 30'.2015 

Monday, June 29, 2015

तिलाड़ी आन्‍दोलन.......



30 मई, 1930 कू,
तिलाड़ी का मैंदान मा,
जनता की बैठक होणी थै,
धौळी यमुना शांत बगणि थै,
सब लोग बेखबर,
बैठक की कार्रवाई,
ध्‍यान सी सुण्‍ना,
अर देखणा था.....

रज्‍जा की फौज न,
बिना चैतेयां मैदान फर,
चौतरफा घेरु मारिक,
निहत्‍थौं फर गोळी चलाई,
मनखि यथैं वथैं,
जान बचौण का खातिर,
डाळौं मा चड़्यन,
यमुना मा कूद्यन,
कयौं की जान गै,
कई घैल ह्वैन.....

दीवान चक्रधर जुयाळन,
बौळ्या बणिक,
जनता फर गोळी चलवाई,
बेकसूर मनख्‍यौं फर,
अत्‍याचार करवार्इ,
लूटपाट मचवाई,
हजारों लोग कैद करयन,
कई मनख्‍यौं तैं,
कैम्‍प मा ल्‍हेक,
ऊंकी जीवन लीला,
खत्‍म करिक,
ऊंकी लाश यमुना मा,
अपणा पाप लुकौण,
अर ढकौण का खातिर,
बेदर्द ह्वैक बगाई,
यमुना आज भी,
मूक गवाह छ,
वे अत्‍याचारी दिन की.....

यथगा होण का बाद,
कै मनख्‍यौं फर,
मुकदमा चलाई,
बीस साल की कैद,
अर जुर्मानु लगाई,
जैजाद कुड़की करि,
राजशाही का अंत की,
यख बिटि शुरुवात,
शुरु ह्वै थै.......

-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
दिनांक 30.6.2015

सिद्धपीठ मां चन्‍द्रवदनी.....


टिहरी जनपद खासपट्टी मा,
मां चन्‍द्रवदनी कू थान,
चन्‍द्रकूट पर्वत शिखर फर,
होयि छ मां विराजमान......

पूर्व दिशा मा इन्‍द्रजीत पर्वत,
पश्‍चिम दिशा टिहरी डाम,
उत्‍तर दिशा मा खैंट पर्वत,
दक्षिण दिशा देवप्रयाग,
त्रेता युग मा जख ऐ था,
दशरथ पुत्र श्रीराम.......

चौदिशु मा अलकनन्‍दा,
भिलंगना, भागीरथी घाटी,
बदन पड़ी यख मां सती कू,
विष्‍णु न जब सुदर्शन सी काटी...

सिद्धपीठ छ मां चन्‍द्रवदनी मा,
मनोकामना पूरी होन्‍दि,
मां का दर्शन का खातिर,
दूर दूर सी जनता औन्‍दि....

मन्‍दिर न्‍यौड़ु लखि बखि बण छन,
बास्‍दा जख काखड़ हिल्‍वांस,
ऋतु बसन्‍त जब औन्‍दि छ,
मुल मुल हैंस्‍दा लाल बुरांस....

यख बिटि नजर औन्‍दि छन,
हिंवाळि ह्युं की कांठी,
रौंत्‍याळि यनि लग्‍दि छन,
जन पैरिं को ह्युं की ठांटी....


- जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
सर्वाधिकार सुरक्षित अर प्रकाशित
दिनांक 19.6. 2015

दर्द भरी दिल्‍ली.....


बदलिगी दिल्‍ली देखणा छौं हम,
मैट्रो रेल चलिगी,
धक्‍कम धक्‍का तख भी होणी,
कखि भि ठैस नि रैगि......

डी.टी.सी. मा हाल बुरा छन,
मोबाईल चोरी होणा,
जेब कतरौं कू ढंग बदलिगी,
देखा मौज मनौणा......

कुर्चम कुर्चा होण लगिं छ,
दिल्‍ली तौ भि प्‍यारी,
जाण भि कख छ दिल्‍ली छोड़ी,
होयिं छ भारी लाचारी.....

सब्‍यौं का मन मा बसिं छ दिल्‍ली,
नकली माल खयेणु,
बिजली पाणी नखरा दिखौणि,
दर्द यनु छ सहेणु........

सड़क्‍यौं मा देखा हाल बुरा छन,
गच्‍च होयिं छन गाड़ी,
मार पीट तक ह्वै जान्‍दि छ,
मनखि देखा अनाड़ी......

भैर जवा त हाल बुरा छन,
सस्‍ती होयिं छ जान,
ब्‍याख्‍ना घौर बौड़िक ऐग्‍या,
धन्‍य हो तेरु भगवान.......

दिल्‍ली मा दर्द भौत छन,
कुछ निछ अपणा हात,
जिंदगी जैकि यख कटिगी,
बड़ा भाग की बात........

- जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
सर्वाधिकार सुरक्षित अर प्रकाशित
दिनांक 22.6. 2015

धन बे दिल्‍ली.....



धन बे दिल्‍ली त्‍वै दिल्‍ली मा,
कथ्‍गा मनखि समौणा,
गढ़वाळि दिल्‍ली मा दनकिक ऐग्‍यन,
अपणु दर्द दबौणा.....

जैं भी कलोनी मा दिल्‍ली मा जावा,
नजर औन्‍दा गढ़वाळि,
घर घर जख्‍या कू तड़का लग्‍दु,
बणौन्‍दा पकोड़ी स्‍वाळि......

वे गढ़वाळ की रौनक हर्चिगी,
दिल्‍ली मा सदानि बग्‍वाळि,
कैका मन मा दर्द बस्‍युं छ,
खुश छन कुछ गढ़वाळि......

कूड़ी बंजेगि कंडाळि जमिगि,
पुंगड़ि पड़िग्‍यन बांजा,
कुछ का मन मा दर्द कतै नि,
बणिग्‍यन दिल्‍ली मा राजा.....

संस्‍कृति कू त्‍याग करिक,
होण लग्‍युं मोळ माटु,
अपणा गढ़वाळ तैं याद नि करदा,
खोज्‍दा नि गौं कू बाटु......

घडयाळा लगणा भूत पुजेणा,
पित्र भी यखि थर्पेणा,
दिल्‍ली भारी स्‍वाणि लगणि,
देब्‍ता भि यखि नचेणा......

दिल्‍ली देब्‍ता समान लगणि,
धन बे दिल्‍ली त्‍वैकु,
दिल वाळौं दिल्‍ली छैं तू,
क्‍या कसूर छ कैकु.......

- जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
सर्वाधिकार सुरक्षित अर प्रकाशित
दिनांक 21.6. 2015

Wednesday, June 24, 2015

बसगाळ्या बरखा....



डांडी कांठ्यौं मा कुयेड़ि,
लगिं छ झक्‍काझोर,
बसगाळ्या बरखा ऐगि,
नाचणु मन कू मोर......

तिबारि मा रिटणु बोडा,
ह्वक्‍का का ओर पोर,
बोडि उस्‍यौंण लगिं छ,
भडडु फर तोर.....

गाड गदन्‍यौं मा होण लग्‍युं,
पाणी कू सुस्‍यांट,
बोडा बैठ्युं छ तिबारि मा,
होणु बाखरौं कू भिभड़ाट...

डांड्यौं मा कुयेड़ि रिटिणि,
दिखेणु निछ भैर,
फोथ्‍लौं कू किबलाट होणु,
कखि बासणु मैर......

चौक अग्‍वाड़ि डाळी मा बैठि,
घुघति होयिं ऊदास,
बरखा कू धिड़क्‍वाणि लग्‍युं,
बदळ्यु छ आगास.....

भारी जग्‍वाळ होयिं थै,
कब होलि बसगाळ्या बरखा,
बोडा जी नात्‍यौं तैं बोन्‍ना,
हे चुचौं भीतर सरका.....

-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु,
सर्वाधिकार सुरक्षति,
दिनांक 25.6.2015

Wednesday, June 17, 2015

रवि अर कवि......

कवि की कल्‍पना,
कल्‍पना मा,
एक ऊड्यार देखणु छ,
तख बल बाग बैठ्युं,
कखि भागीरथी का छाला,
अपणा बच्‍चौं तैं,
प्‍यार कन्‍नु छ,
यख फुंड मनखि,
कतै नि आला.....

अलकनंदा मा,
मसीर माछु फटकणु छ,
देवप्रयाग संगम फर,
पाणी मा दनकणु छ,
किलैकि संगम फर,
क्‍वी माछु नि मारदु,
नहेन्‍दा छन मनखि,
संगम फर जब होन्‍दु,
पर्व कू दिन,
औन्‍दि पंचमी मकरैण,
पिंड दान करदा तख,
जैकु महत्‍व छ भारी,
जख मू भेंटेन्‍दि छन,
सासु भागीरथी,
अर अलकनंदा ब्‍वारि....

चंद्रकूट पर्वत फर,
ऊंचि चोटी मा,
विराजमान छ चंद्रवदनी,
ऋतु मौळ्यार मा,
जख हैंस्‍दा छन बुरांस,
औन्‍दा छन भक्‍तगण जख,
पूरी होन्‍दि मन की कामना,
अर मन की आस,
तख बिटि दिखेन्‍दु,
हैंस्‍दु हिमालय,
पैरि हो जन कांठ्यौं की,
सुखिली ठांटी.....

कवि की कल्‍पना छ,
देवभूमि उत्‍तराखण्‍ड तैं देखौं,
उड़िक अनंत आगास सी,
पंछी, पहाड़, लखि बखि बण,
देखौं जैक पास सी,
कवि जिज्ञासु की कल्‍पना,
अहसास करौणि होलि,
जख नि जान्‍दु रवि,
कल्‍पना मा तख,
पौंछि जान्‍दु कवि.......

-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु,
सर्वाधिकार सुरक्षित,
दिनांक 18.6.2015

हैंसी खेलि खावा......



औंळि तोड़ी सौंळि भुला,
औंळि तोड़ी सौंळि
भै बंधु मा मेल रखा,
नि बटोळा बौंळि....
अजग्‍याल यू हि होणु,
भै बंधु मा निछ मेल,
जिंदगी द्वी दिन किछ,
खेलणा छौं खेल.....
गौड़ी कू कमर हे भुला,
गौड़ी कू कमर,
सोरौं देखि नि खिरसेणु,
क्‍वी निछ अमर.....
गरीबी का दिन मा सब्‍बि,
करदा था प्रेम भारी,
होन्‍दा खान्‍दा ह्वैग्‍यें चुचौं,
अब क्‍या छ लाचारी.....
भलि बात या हि होन्‍दि,
भै बंधी निभावा,
जैका भाग मा जथ्‍गा,
हैंसी खेलि खावा......
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु,
मेरी अनुभूति वर्तमान फर,
सर्वाधिकार सुरक्षित,
दिनांक 17.6.2015

Sunday, June 14, 2015

एक बुढ़्या.....


हमारा गढ़वाळ कू एक बुढ़्या,
शिकारी कू शौकी भारी,
गौं का मनखि कठ्ठा ह्वैन,
लगोठ्या वेन एक मारी....

कात्‍लु पळ्येक कन्‍न लग्‍युं,
लगोठ्या कू कारबार,
घळ घळकौणु टुकड़ि मुकड़ि,
देखणा लोग हपार.....

सिरी फाड़िक वेन जब,
घळ्काई लगोठ्या कू आंखू,
गळ बळ गळ बळ कन्‍न लग्‍युं,
बंद ह्वैगि वेकु सांखू......

नौनान वेकी धौणि मा,
जोर सी मुठगैकि मारी,
गिच्‍चा बिटि आंखू छटगि,
खुशी ह्वैगि तब भारी.....

बचिगि बुढ़्या बड़ा भाग सी,
सब्‍यौन ऊ समझाई,
खै लेन्‍दि बुढ़्या टुकड़ि मुकड़ि,
आंखू क्‍यौकु घळ्काई.....

थर थर कौंपि बुढ़्या अफुमा,
भै बंधु तैं बताई,
बचपन बिटि मैं घळ्कौन्‍दु छौं,
यांकु मैंन घळ्काई.....

आणि पड़िग्‍यन आज मैकु,
आंखू नि घळ्कौलु,
तुमारु बोल्‍युं मैं याद रखलु,
टुकड़ि मुकड़ि खौलु......

-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु,
सर्वाधिकार सुरक्षित,
दिनांक 15.6.2015

Friday, June 12, 2015

हमारा गौं मा बिजळि.....


जब बिटि आई,
तब बिटि ह्वैग्‍यन,
मेरा गौं का रोगी,
बोला त भोगी,
अपणा अपणा भितर,
यकुलि बैठिक,
देखणा छन समाचार,
होणु छ शहरी,
संस्‍कृति कू प्रचार,
दिल्‍ली वाळा भैजि कू,
फोन औन्‍दु त बतौन्‍दा,
हे भैजि,
आज तुमारी दिल्‍ली मा,
क्‍या ह्वैगि हपार,
आप की बणिगि सरकार....

जै दिन मैच हो,
ठप्‍प ह्वै जान्‍दि धाण,
हळ्या भैजि भि बोल्‍दु,
आज मैंन हौळ नि लगाण,
लग्‍दा जब चौक्‍का छक्‍का,
ह्वै जांदन हक्‍का बक्‍का,
डौर भि लग्‍दि,
कखि बिजळि न चलि जौ,
मोळ माटु नि ह्वै जौ.....

बोडि का नौना कू,
फोन आई,
बेटा आज बिजळि,
नि थै दिन भर गौं मा,
वे तैं बोडिन बताई,
यू फोन त मैंन,
बजार भेजिक,
चार्ज करवाई,
त्‍वैकु बोलि थौ,
एक इन्‍वर्टर लगै दे,
बिजळि कू,
क्वी भरोंसु नि रन्‍दु,
अंधेरा मा दिखेन्‍दु निछ,
मैं गज बज लग्‍युं रन्‍दु......

बिजळि का खातिर,
गौं का छोरा,
ट्रांसफार्मर रन्‍दन घच्‍चकौणा,
ऐगि बिजळि, गौं जथैं,
धै रन्‍दन लगौणा,
किलैकि तार ढीलु होण सी,
बिजळि नि औन्‍दि,
भारी आफत ह्वै जान्‍दि,
हमारा गौं मा,
बिजळि का बिना,
बिजळि कू राज छ आज,
गुलाम ह्वैगि गौं समाज.....

-जगमोहन सिंह जयाडा़ जिज्ञासु,सर्वाधिकार सुरक्षित,
ब्‍लाग फर प्रकाशित, दिनांक 12.6.2015

Thursday, June 11, 2015

बेटी......

जा बेटी अपणा सैसर जा,
आस छ मेरी जुगराजि रै,
सास ससुर की सेवा करि,
फर्ज अपणु खूब निभै......
-कवि जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु एक किरदार में
दिनांक: 31.3.2015

भौंकुछ.......

ज्‍युकड़ि टुकड़ि टुकड़ि करिक,
हैंस्‍दु हैंस्‍दु चलिग्‍यें,
मन सी सोच हे लठयाळा,
भौंकुछ तू करिग्‍यें......कवि जिज्ञासु ऊवाच
लाल दा अर बिष्‍ट जी अपणि दिव्‍य दृष्‍टि जरुर डाळ्यन अर मन का उद्गार भी हास्‍य अंदाज मा व्‍यक्‍त करयन, या मेरा कविमन की आस छ आपसी।

मन कू बैम.....

घिमणाट सिमणाट होयुं छ,
यू निर्भागि ज्‍यु पराण,
भिभड़ाट सुणि सुणिक,
डरि डरिक भारी डरयुं छ,
यन लगण लग्‍युं जन,
भैर कखि भूत अयुं छ,
ह्वै सकदु बाग हो,
बाखरयौं कू भिभड़ाट,
ओबरा मच्‍युं छ,
कब खुललि काळी रात,
अंधेरु अड़ेथि दिन आलु,
डौर दूर होलि मन सी,
मन कू बैम मिटि जालु......
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु,
कल्‍पना मा ठेट गढ़वाळि शब्‍दु का प्रयोग कू मेरु प्रयास
सर्वाधिकार सुरक्षित, दिनांक 10.6.2015

झम्‍मज्‍याट भि नि पड़ि......



मेरा मुल्‍क का कुछ मनखि,
बैठ्यां था कछड़ि लगैक,
अर पेण लग्‍यां था दारु,
कुछ मनखि यना था,
जौंकु जिंदगी मा,
बल दारु हिछ सारु,
दारु विदेशी थै,
वींकु नशा घतघतु,
मनखि झटट सी,
नि ह्वै सकदु रंगमतु....
बोतळ खाली ह्वै,
हौर ल्‍हौण भि कखन थै,
काळी रात की बात थै,
तब एक मनखिन बोलि,
अरे भाई, क्‍या होलु,
झम्‍मज्‍याट भी नि पड़ि....
जै मनखि का घौर,
कछड़ि सजिं थै,
वेकु ऊ रिस्‍तेदार थौ,
ऊ तब कखिन,
जुगाड़ लगैक,
लोकन ब्राण्‍ड ल्‍हाई,
वे मनखिन घूंट लगाई,
तब रोठ्ठी खान्‍दु खान्‍दु,
झम्‍मज्‍याट दूर करि,
ऊताणदण्‍ड ह्वै ग्याई......
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु,
कल्‍पना मा ठेट गढ़वाळि शब्‍दु का प्रयोग कू मेरु प्रयास
सर्वाधिकार सुरक्षित, दिनांक 11.6.2015

सरुलि.....



हे सरुलि,
तेरी मुखड़ि,
यनि छ दिखेणि,
कांठा मा की जोन जनि,
मुल मुल हैंसणि........
कवि जिज्ञासु की कलम सी श्रृंगार रस की रसधारा
दिनांक 11.6.2015

पहाड़ की याद.....

भड़ोक्‍युं थौ मन भारी,
होयिं थै लाचारी,
द्वी कटोरी पळ्यौ पिनि,
मन ह्वै खुश भारी......
छप छपि सी पड़ि तब,
लिंबु की खटै खाई,
फंसोरिक सेयौं तब,
यनि निंद आई.....
रुड़यौं का दिन छन,
होन्‍दा काफळ रसीला,
लगिं संगि खाणा होला,
हे प्रभु तेरी लीला....
छोया ढुंग्‍यौं का पाणी की,
भारी याद औणि,
पहाड़ की याद भुलाैं,
भारी छ सतौणि....
कवि जिज्ञासु की कलम सी कल्‍पना ठेट दर्द भरी दिल्‍ली मा।
सर्वाधिकार सुरक्षित
दिनांक 11.6.2015

क्‍या छ जिंदगी.....

जिंदगी कू राज,
जाण्‍न का खातिर,
जिंदा रणु जरुरी छ,
पर आजतक क्‍वी,
मनखि सदा जिंदा नि रै,
प्रकृति कू नियम बोला,
या चोळा बदल की प्रक्रिया,
एक मजबूरी छ....

अपणि जिंदगी का,
स्‍वर्णिम दौर मा मनखि,
क्‍या क्‍या नि करि जान्‍दु,
जाण सी पैलि धरती मा,
वेकु करयुं बोल्‍यु रै जान्‍दु,
भलु करा या बुरु,
यु  हमारा हात छ,
जिंदगी हमारी,
बद्रविशाल जी का हात छ......

-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
रचना सर्वाधिकार सुरक्षति,
दिनांक 12.6.2015

Tuesday, June 9, 2015

बोडि अर बोडा....

किल्‍कणि बिल्‍कणि बोडि बोडा फर,
लाठन छ धध्‍यौणि,
बोन्‍न लगि छ त्‍वै बुढया कू,
मौत भि हर्चि,
कुजाणि क्‍यौकु नि औणि.....

लग्‍द बग्‍द करि भागणु बोडा,
बोन्‍न लग्‍युं छ बचावा,
यीं बुढ़ड़ि कू मुर्दा मरिगि,
हे चुचौं झट पट आवा.....

ढुंगू उठाई निर्भागि बोडिन,
बोडा की लोळ फोड़्यालि,
फेरौं का बग्‍त दिन्‍युं बचन,
बोडिन आज तोड़्याळलि;....

भ्‍वीं मा लठगि बोडा धड़म्‍म,
मुण्‍ड फर ल्‍वै कू धारु,
कळजुगि बुढड़ि मरि जै तू,
अब क्‍या रिस्‍ता हमारु.....

दणमण आंसू ऐन बोडि का,
सोचणि कपाळ फूटिगि,
मति मरिगि आज मेरी,
ज्‍वानि मेरी टूटिगि......

बोडिन बोडा ऊब ऊठाई,
प्‍यार सी मुण्‍डळि फलोसी,
माफ करि देवा मैकु तुम,
बोडि तैं औणि बेहोशी....


बोडा बोन्‍नु निर्भागि बुढ़ड़ि,
अब नि देखण तेरी मुखड़ि,
कनु अनर्थ करयालि त्‍वैन,
कनि छ तेरी ज्‍युकड़ि......

निर्भागि मोळु देखण लग्‍युं,
बोडा बोडि कू तमाशु,
न्‍यौड़ु आई झट पट ऊ,
खांसण लग्‍युं छ खांसू........

-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
दिनांक: 18.5.2015 

बग्‍त....


बग्‍त की बात न पूछा,
होन्‍दु छ बलवान,
बग्‍त कब्‍बि यनु ऐ जान्‍दु,
गधा ह्वै जान्‍दु पैलवान.....

बग्‍त फर क्‍वी काम नि औन्‍दु,
यनि होन्‍दि छ बग्‍त की मार,
बग्‍त की मार सी मरदि दुनियां,
तौ भि चन्‍दु छ संसार......

बोल्‍दन बग्‍त कू दगड़ु करा,
रुक्‍दि ने जैकी चाल,
जू मनखि नि करदु छ,
भला नि होन्‍दा तैका हाल.....

बग्‍त सी खाणु, पेणु, सेणु,
बग्‍त सी अपणा काम करा,
भला बग्‍त कू राज यू हिछ,
जिंदगी मा रंग भरा.....

बग्‍त हमारु आज लठ्याळौं,
एक दिन यनु आलु,
ह्वैगि बग्‍त तुमारु पूरु,
बग्‍त हम्‍तैं यनु चेतालु.......

-कवि जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
दिनांक: 31.3.2015

Monday, June 8, 2015

परदेश मा.....


बोल्‍िा थौ स्‍वर्गवासी,
ब्‍वै बुबाजिन मैकु,
तू ढंग सी रै,
कैकि बात्‍तु मा कब्‍बि,
धोक्‍का मा नि ऐ,
अपणा काम सी सदानि,
मतलब रखि,
सुदि नि जाणु कै दगड़ि,
भौं कखि,
भौं कैकु दिन्‍युं,
सुदि न खै,
दरोळि मतोळि सी,
दूर हि  रै,
बस मा बैठलि त,
डरेबर की सीट सी,
चार सीट पिछनै बैठि,
अपणु ख्‍याल रखि,
या जिंदगी अपणा हात छ,
ढंग सी रै परदेश मा......

-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु,
रचना सर्वाधिकार सुरक्षित,
दिनांक: 9.6.2015

मेरु बचपन....


बीति बचपन छै बरस तक,
मुज्‍जफर नगर मा,
याद छ मैकु मरिगे थौ मैं,
एक दिन बीच सड़क मा....
सड़क पार कन्‍न लग्‍युं थौ,
कुजाणि कख बिटि जीप आई,
धक्‍का सी लगि मैं फर,
चारी टैर का बीच पाई....
बचिग्‍यौं मैं बड़ा भाग सी,
उन्‍नीस सौ छयासठ की बात,
कुल देब्‍तौं की कृपा ह्वै,
जोड़दु छौं मैं जौंकु हात.....
गढ़वाळ ल्‍हिग्‍यन बुबा जी मैकु,
ऊ दिन आज भी मैकु याद,
सन सड़सठ कू साल थौ ऊ,
गढ़वाळ बिति बचपन वेका बाद....
स्‍कूल गयौं नौं लिखाई,
हेडमास्‍टर स्‍व. भवानी दत्‍त डंगवाळ,
पाटी बोदग्‍या हात रंदु थौ,
हिटदु उद्यार ऊकाळ.....
याद छ मैकु लड़ै लगि थै,
सन इकहत्‍तर कू थौ साल,
भारी प्रेम थौ गौं गौळा मा,
गरीबी भौत थै गढ़वाळ.....
मन मा भारी ऊलार रंदु थौ,
औन्‍दि बग्‍वाळ लग्‍दा थौळ,
बड़ु होयौं तब लगौण लग्‍यौं,
पुंगड़ौं मा अपणा हौळ.....
मन मा बात बसिं थै मेरा,
ध्‍यान सी कन्‍न पढ़ाई,
बिति बचपन अहसास ह्वै,
जीवन रुपी नाव बढाई....
कसक ऊठि मन मा मेरा,
गढ़वाळि कविता लिखण लगिग्‍यौं,
धरती सी चलि जांदु वे दिन,
मन की बात बतैग्‍यौं......
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
दिनांक: 21.5.2015

ऊकाळ.....



तीन तड़तड़ी छन,
खास पटटी, टिहरी मा,
चन्‍द्रवदनी मंदिर का न्‍यौड़ु,
ज्‍वान्‍यां की ऊकाळ,
त्‍यूंसा की ऊकाळ,
अर कटारचोट की ऊकाळ,
ऊब देखल्‍या त,
टोपलि ऊद पड़ि जांदि,
लोळ बिटि,
तौ भी हिटदा छन,
मेरा मुल्‍क का मनखि,
ठंडु मठु बोझ भारु ल्‍हीक,
पसीन्‍या चून्‍दु तरबर,
तन बदन मा,
ऊकाळ हमारा मन मा,
एक आस जगौन्‍दि,
हिटण छ लक्ष्‍य तक,
मंजिल का खातिर,
बिना मंजिल जिंदगी,
नि जी सकदु मनखि,
हमारी जिंदगी भी,
एक ऊकाळ छ......
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
दिनांक: 21.5.2015

Friday, June 5, 2015

मन ही मन खुश होन्‍दु छ.......

एक दगड़या थौ बेरोजगार,
एक व्‍यंग लिख्‍युं छ त्‍वै फर,
मैंन बोलि वेकु,
सुण्‍लि तू यार,
वैन बोलि पैलि तू,
मैकु खाणौं खलौ,
खाणौं खाण का बाद,
वेन बोलि अब,
पेप्‍सी पिलौ,
पेप्‍सी पिलौण का बाद,
वेन बोलि,
खाणौ भौत सवादि थौ,
वेकु मजा माटा मा मत मिलौ,
मैं ये देश की धरती मा,
खुद एक व्‍यंग छौं,
मैकु व्‍यंग न सुणौं,
जौन जन सेवा का नौं फर,
हमतैं बेरोजागारी कू रोजगार दिनि,
कुर्सी मा बैठि मौज करदु रैन......

व्‍यंग वे मास्‍टर का बारा मा सुणौ,
जू हमारा नौनौं पढ़ौण फर ध्‍यान नि देन्‍दु,
अर अपणि औलाद तैं,
अंग्रेजी स्‍कूल मा पढ़ौन्‍दु छ,
वे पुलिस का सिपै का बारा मा बतौ,
जू भ्रष्‍टाचार की गंगा बगौन्‍दु छ,
कानून कू रख्‍वाळु अफु तैं बतौन्‍दु छ,
वे डाग्‍टर का बारा मा सुणौ,
जू मोटी फीस ल्‍हीक,
मरीज तैं टेस्‍ट करौण की,
सलाह देन्‍दु छ,
कमीशन कमौन्‍दु छ,
मरीज तैं बोल्‍दु,
त्‍वै फर भंयकर बिमारी छ,
वे तैं भरमौन्‍दु छ......


अर्थ कू अनर्थ कन्‍न वाळा,
तै व्‍यगंकार तैं सुणौ,
जैकि टक्‍क मोटा लिफाफा फर रंदि,
अर अपणु उल्‍लू सीदा कन्‍न का खातिर,
व्‍यंग तैं अपंग बणौन्‍दु छ,
मन ही मन खुश होन्‍दु छ.......
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
दिनांक: 5.6.2015

तुम फर हिछ सारु..........

वंत मैं निमाणु मनखि छौं,
आपकी तरौं श्रीमान,
अपणि एक आंखी सी छौ,
भारी परेशान,
लोग बिंगदन मैंन,
अपणि आंखी जाणि बूझिक,
झप्‍पज्‍याई,
आंखिन शान करिक,
मन की बात बताई......

बचपन की बात छ,
स्‍कूल मा एक नौनी,
बैठीं थै हमारा दगड़ा,
जैंकु नौ थौ रेखा,
एक दिन वीन हम जथैं,
बड़ा ध्‍यान सी देखि,
हमारी आंखी झप्‍पज्‍याई,
क्‍लास बिटि हाय हाय करदु,
व भग्‍यान भैर भगि ग्‍याई,
आज भी याद छ,
कुछ देर बाद हेड मास्‍टर जिन,
हमतैं बुलाई,
शर्म नि औन्‍दि स्‍कूल मा,
आंखी किलै झप्‍पज्‍याई,
हम्‍न बोलि साब,
भौत भूल ह्वैगि,
मास्‍टर जिन बोलि,
यनु भी होन्‍दु भूल मा,
अब नि रखणु मैंन,
तू स्‍कूल मा।

बौजी की एक भूलि,
नाता मा हमारी स्‍याळि,
अयिं थै हमारा गौं,
सचि तुमारा सौं,
वीं देखिक हम्‍न,
आदत सी मजबूर,
आंखी झप्‍पज्‍याई,

हम देखि वींका मन मा,
प्‍यार सी जगि ग्‍याई,
झटट हमारा धोरा आई,
बल जीजा जी प्रणाम,
मन की मुराद पूरी ह्वैगि,
आज हे श्रीराम,
बौजिन अपणि भुलि,
हमारी स्‍याळि तैं समझाई,
स्‍यौड़ु छ आंखन यू,
तेरा लैक कतै निछ,
मोळ माटु करि द्याई......

एक दिन बुबाजिन,
मैकु बोलि,
तू अब ब्‍यो करि ले,
नौनि देख्‍याल मेरी देखिं छ,
शरील की कच्‍ची छ,
बच्‍ची छ, तो भि अच्‍छी छ,
जनि भिछ, आखिर नौनि छ,
बड़ा घर की,
हम फर कड़की छ,
मैंन बोलि जल्‍दि क्‍या छ,
बुबाजिन बोलि,
तू गधा छैं, ढै मण कू ह्वैग्‍यें,
मैं फर बोझ छैं,
कब तक बोझ बण्‍युं रैलि,
तू मैं फर,
फंसी जैलि त सम्‍ळि जैलि,
खोटु सिक्‍का छैं चलि जैलि।

धड़कदा दिल सी,
नौनि देखण गयौं,
होण वाळि सासु जी सी,
मुलाकत ह्वै,
मेरी आंखी झप्‍पज्‍याई,
नौनि भीतर छ बेटा,
मैं नौनि की ब्‍वै छौं,
नौनि तैं बुलौं,
मेरी आंखी फिर झप्‍पज्‍याई,
नौनि भैर आई,
बुबा जी की,
इच्‍छा ठुकराई।

मैंन घौर ऐक बुबाजी तैं बताई,
बुबाजिन बोलि आग लग्‍यन,
तेरी जवानि फर,
एक अंज्‍वाळ पाणी मा,
तू डूबि जा,
डूबि नि सकदि,
तैं आंखा फोड़ दी,
जख भी जांदि,
मार खैक औन्‍दि,
राम हि जाणु,
कुजाणि कन,
तैं आंखी झप्‍पज्‍यौन्‍दि।

क्‍या बतौण अब,
आप हि बाटु बतावा,
एक नौनि खुजावा,
जैंकि एक आंखी,
झप्‍पज्‍यान्‍दि हो,
भलु होलु तुमारु,
तुम फर हिछ सारु..........
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
दिनांक: 5.6.2015

मलेेथा की कूल