Monday, July 27, 2020

बौळ्या बरखा.....



बसगाळ बौड़ि ऐगि अब,
हरी भरी ह्वेग्यन गौं की सार,
पापी कुयेड़ि दौड़दु जान्दि,
डांड्यौं मा वार पार।

चौक मा लगिं चचेन्डी त्वमड़ि,
ग्वदड़ि, काखड़ी, मुंगरी,
बौळ्या बरखान भिगण लगिं,
रौंत्याळि डांडी हरी भरी ।

चौमासा कु द्यौरु गिगड़ान्दु,  
बरखा बत्वाणि घनाघोर,
काळु बसगाळ डरौण लग्युं,
बरखा डांडौं ओर पोर ।

सार्यौं का बीच बाटौं फुंड,
घसेर्यौं की लंबी लंगट्यार,
बरखा मा भिगेणि छन,
बरखा लगिं लगातार ।

ब्वडा भितर बैठि बैठि,
हबरि द्यखणु भैर,
बौळ्या बरखा दिन भर की,
ओबरा बासणु मैर ।

भैर बरखा भितर सरका,
दूर गाड गदन्यौं कु सुंस्याट,
ब्वडा भितर सेयुं फंसोरि,
सुपिनु द्येखि कन्नु बबड़ाट ।

बौळ्या बरखा आफत ल्हौन्दि,
पणगोळा भि फूटि जान्दा,
कैकि मवासि घाम लग्दि,
बाटा घाटा भि टूटि जान्दा ।

बौळ्या बरखा की जग्वाळ रन्दि,
सरग दिदा पाणी बास्दि चोळी,
बौळ्या बरखा जब बौड़िक औन्दि,
ख्यल्दि छप्प पाणी की होळी ।

मनख्यौं की जिंदगी मा बसगाळ,
सुख की गंगा बौड़ैक ल्हौन्दु,
बौळ्या बरखा तैं बथौं बिचारु,
अपणा मन सी नचौन्दु। 

- जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
  दर्द भरी दिल्ली बिटि
  27/07/2020

मलेेथा की कूल