Tuesday, November 22, 2016

घरवाळि.....


घरवाळि यनि दे भगवान,
बोल्युं माणु हो भग्यान....

सुबौ की हो अति प्यारी,
जिंदगी भर हो सेवाकारी,
पिरेम की गंगा जु बगाऊ,
सुबेर राति चा पिलाऊ,
मेरा गुणु कू करु बखान,
घरवाळि यनि दे भगवान......

मेरा घर मा गोरु न भैंसा,
खूब छ मैंमु धेल्ला पैंसा,
ये कारण जी कुछ नि धाण,
मौज मा वींन सदानि राण,
कोठी सी सुंदर मेरु मकान,
ब्वे छ मेरी देव्ता समान,
सासु दगड़ि सीरियल देखु,
घरवाळि यनि दे भगवान.....

गुण की खाण यनि हो वा,
मन मा कतै न करु अभिमान,
अति रौंत्याळु मुल्क हो जैंकु,
न्यौड़ु बग्दि धौळि की धार,
चंद्रवदनी का थान ल्हिजौलु,
अपणि गाड़ी मा घुमौलु,
रौड, जामणि, रणसोळीधार,
मैकु द्यौ सदानि प्यार,
गढ़वाळि कविता लिख्दि हो,
संस्कृति कु करु सम्मान,
घरवाळि यनि दे भगवान......

दिनांक 18.11.2016

Thursday, November 17, 2016

फेसबुक मा पहाड़....



जू नि जै सकणा छन,
अपणा प्यारा पहाड़,
दिन रात देखणा छन,
फेसबुक मा पहाड़। 

दिखौण वाळौं की कमी निछ,
फोटु पोस्ट करिक दिखौणा,
अपणु प्यारु पहाड़,
दिन रात दिखौणा छन,
फेसबुक मा पहाड़। 

क्वी नाचणा क्वी नचौणा,
पहाड़ की नखरी भलि दिखौणा,
देखिक भै बंध खुश होणा,
दिन रात देखणा छन,
फेसबुक मा पहाड़। 

मैं गौं गयुं थौ घूमण,
फोटो पोस्ट करिं छन मेरी,
हे दिदा! त्वैन भी देख्यन,
कनु लगणु छ गौं मुल्क,
देखि ले फेसबुक फर,
अब्त सब्बि देखणा छन,
फेसबुक मा पहाड़। 

पहाड़ तैं पहाड़ जैक देखा,
पहाड़ ह्वयुंं छ आज ऊदास,
टैम पैंसा सब्बि तुमारा पास,
न होण देवा वे पहाड़ तैं ऊदास,
ज्व छ कवि जिज्ञासू की आस,
अपणा आंखौन देखा पहाड़,
ओंसी का बुंद सी नि बुझ्दि,
हे दगड़्यौं हमारी तीस,
किलै देखणा छन तुम,
फेसबुक मा पहाड़.....

दिनांक 17.11.2016

Friday, November 4, 2016

पतरोळ की थाती तक हम यायावरों का भ्रमण




मेरे प्रिय मित्र से मुझे संदेश मिला, आप एक जुलाई को अंजनीसैण आ जाओ।  वहां पर एक शूटिंग होगी और आपको एक किरदार निभाना है।  सुरेन्द्र सिह रावत(सुरु दा) से मैंने संपर्क किया और कार्यक्रम अनुसार दिनांक 29.7.2016 को हम दोनों अंतराज्यीय बस अडडा, दिल्ली में रात लगभग ग्यारह बजे रात को मिले। हमनें रात बारह बजे ऋषिकेश के लिए प्रस्थान किया। उमस बहुत हो रही थी, बस की खिड़की से आती हुई हवा से कुछ राहत मिल रही थी। ड्राईवर गाड़ी को रफ्तार से चला रहे थे।  रास्ते में खतौली में हमारी गाड़ी रुकी तो वहां पर हमनें जलपान किया।  लगभग आधा घंटे के बाद बस नें ऋषिकेश के लिए प्रस्थान किया।  रास्ते कुछ झपकी लेते हुए हम हरिद्वार पहुंचे।  हरी की पौड़ी रोशनी से जगमग थी।  हमारी गाड़ी जैसे ही ऋषिकेश के पास लगभग 5 बजे सुबह पहुंची तो ठंड का अहसास होने लगा। पहाड़ श्याम रंग में नजर आ रहे थे। ऋषिकेश में बस से ऊतर कर हमनें पहाड़ को पहाड़ प्रेम में प्रणाम किया।  आसमान में बादल मंडरा रहे थे और  मौसम बहुत ही सुहावना लग रहा था।  हमनें वहां मुंह हाथ धोए और गरम गरम चाय का आनंद लिया।

      ऋषिकेश से हमनें छ बजकर तीस मिनट हिंडोलाखाल नई टिहरी की बस से प्रस्थान किया।  हमनें रौडधार तक की टिकट ली और तय किया कि रौडधार से पैदल चंद्रवदनी जाएगें।  हमारी बस देवप्रयाग की ओर सरपट दौड़ रही थी।  गंगा में पानी मटमैला दिख रहा था और बहाव भी तेज था।  बस में हम झपकी ले रहे थे।  पहाड़ की ठंडी हवा हमें सकून प्रदान कर रही थी। रास्ते में ब्यासी से पहले हल्की बरखा हो रही थी और हम आनंद की अनुभूति कर रहे थे।  गंगा के किनारे और हरे भरे जंगल देखकर आंखों को सुखद अहसास हो रहा था।  लगभग नौ बजे हम देवप्रयाग पंहुचे।  सुरु भुला ने कहा मुझे एक चार्जर लेना है।  देवप्रयाग टिकट घर के पीछे हमें अलकनंदा भागीरथी के संगम की ओर जाती हुई एक गली में मोबाईल की दुकान दिखाई दी।  वहां पर हमनें पता किया तो अस्सी रुपये में चार्जर मिल गया।  हम चार्जर के पैसे दे ही रहे थे, तभी एक बाबा वहां पर आ गए।  उनके हाथ में टेमरु का सोट्टा था।  वहीं पर एक लड़का बांसुरी की तान छेड़ रहा था।  मुझसे रहा नहीं गया और मैनें उसक लड़के से बांसुरी मांगी और बजाने लगा।  सुरु भुला ने मोबाईल से रिकार्डिंग शुरु की।  सुरु भुला ने मौके का फायदा उठाते हुए वहां पर अपना मोबाईल चार्ज किया।  कुछ समय बाद ड्राईवर बस की ओर जाने लगा, जिस पर हमारी नजर थी।  बस के कंडक्टर ने मुझे बताया, आप सुंदर बांसुरी बजाते हैं।  उसने टिकट घर की पिछली खिड़की से मुझे बांसुरी बजाते देख लिया था। 

      देवप्रयाग में मुझे दोस्त का फोन आया।  जिज्ञासु जी आप देवप्रयाग में ही रुक जाओ ।  अब देवप्रयाग में ही शूटिंग का कार्यक्रम है।  मैंने उन्हें बताया हमनें रौडधार की टिकट ले रखी है और हमारा चंद्रवदनी मां के दर्शन करने का कार्यक्रम है।  मित्र ने बताया आप शाम को देवप्रयाग आ जाओ।  हमनें अपनी सहमति दी और नौ बजकर तीस मिनट पर प्रस्थान करती हुई अपनी बस में बैठ गए।  बस से हमनें देवप्रयाग को निहारा।  भुवनेश्वरी मंदिर, डिग्री कालेज का मैदान, अलकनंदा के पार दिखती सर्पीली सड़कें नजर आ रही थी।  महड़ स्कूल के पास बैंड पर मैंने सुरु भुला को एक मंदिर दिखाया जो सड़क निर्माण के दौरान मिला।  हमारी बस हिंडोलाखाळ की तरफ भाग रही थी।  सुरु भुला को मैं गांवो का परिचय करवा रहा था।  हिंडोलाखाळ के बाद व जामणीखाळ से पहले मैंने सुरु भुला को नागेश्वर मंदिर बस की खिड़की से दिखाया।  जामणीखाळ पहुंचने पर हम वहीं उतर गए।


      हम फरशुराम भट्ट जी की दुकान पर गए और सुरु भुला का उनसे परिचय करवाया।  मान्यवर भट्ट जी फौज से सेवा निवृत्त होकर शब्जी उत्पादन, बुरांस, माल्टा का जूस, पुदने का जूस, तिम्ले का अचार इत्यादि उत्पाद स्वयं बनाकर अपनी दुकान के माध्यम से बेचते हैं।  जिस दिन वे कश्मीर से सेवा निवृत्त होकर आए तो वहां से एक चिनार का पौधा साथ लाए जिसका रोपण उन्होंने भुवनेश्वरी महिला आश्रम, अंजनीसैण में किया है।  मैंने उनसे पूछा पेड़ अब कितना बड़ा हो गया है।  खुश होकर उन्होंने बताया पेड़ खूब बड़ा हो रहा है।  उत्तराखंड की धरती पर शायद यहा अकेला चिनार का पेड़ होगा जिसे मैंने रोपा है।  सुरु भुला ने भट्ट जी से विस्तृत जानकारी ली। सुरु भुला ने पूछा, आपने प्रशिक्षण लिया है।  भट्ट जी ने बताया मैंने भुवनेश्वरी महिला आश्रम के सौजन्य से तीन महीनें का प्रशिक्षण प्राप्त किया है।   भट्ट जी ने हमें अपने हाथों से बनाया पुदीने का जूस पिलाया।  हमनें भट्ट जी से पूछा, चंद्रवदनी जाने के लिए कोई वाहन मिल जाएगा। पास ही कोळा काण्डी गांव के एक सज्जन ताश खेल रहे थे। भट्ट जी ने उन सज्जन को कहा इन मित्रों को चंद्रवदनी भ्रमण हेतु ले जाओ।  हमें कहा इन्हें चार सौ रुपये देना। 

      बारह बजे के लगभग हमनें चंद्रवदनी के लिए प्रस्थान किया।  चढ़ाई के रास्ते पर गाड़ी दौड़ रही थी और मैं सुरु भुला को अपनें गांव ईलाके से परिचित करवा रहा था।  चंद्रवदनी जाना हो तो अक्टूबर से लेकर मार्च तक का साफ मौसम होने के कारण गढ़वाळ हिमालय मनोहारी दिखता है।  हिमालय पहाड़ पर लगे कोहरे के कारण नजर नहीं आ रहा था।  कुछ समय बाद हम नैखरी पहुंचे।  वहां पर हमनें छायाकारी की फिर चंद्रवदनी मंदिर की ओर बढ़ गए।  पार्किग स्थल पर पहुंचकर हमनें चहुं ओर निहारा और पैदल मार्ग की ओर सुरु भुला की इच्छानुसार नंगे पांव प्रस्थान किया। चंद्रवदनी पंहुचने पर हम श्री चंडी प्रसाद भट्ट जी की दुकान पर गए।  सुरु भुला का उनसे मैंने परिचय करवाया और कुछ तस्वीरें ली।  पास ही खिले हुए बुरांस मनमोहक लग रहे थे।  भट्ट जी ने बताया ये बुरांस अब खिल रहे हैं।  मौसम परिवर्तन का प्रभाव है ये।  भट्ट जी से हमनें पूजा की सामग्री ली और मंदिर में गए।  वहां पर पुजारगांव के ढ़ोली ढ़ोल बजा रहे थे।  उनकी मंदिर में ड्यूटी लगती है।  मंदिर की ओर आने जाने वालों की हलचल थी।  पंडित जी ने मंदिर के भीतर पूजा की, हमें प्रसाद दिया और मां भगवती के बारे में बताया। हमनें ढ़ोली को समर्थानुसार कुछ रुपये दिए।  पास ही मेरे अमेरिका प्रवासी भुला जगमोहन सिंह जयाड़ा द्वारा बनवाया लक्ष्मी नारायण मंदिर है।  वहां पर एक पट्टिका पर हमारे दादा जी स्व. बद्री सिंह जयाड़ा, सरोप सिंह जयाड़ा, गोकल सिंह जयाड़ा और दादी जी स्व. पाखू देवी जी का नाम अंकित है। हमनें दर्शन करने के बाद श्री चंडी प्रसाद भटट जी को मिलते हुए जामणीखाळ के लिए प्रस्थान किया। हमें दोपहर दो बजकर तीस मिनट पर जामणीखाळ पंहुचना था, क्योंकि देवप्रयाग जाने वाली अंतिम बस इसी समय मिलती है।  अब हम पैदल मार्ग से होते हुए पार्किंग स्थल की ओर आने लगे।  रास्ते में मैंने पथरी की जड़ी कामळिया को देखा, जो पथरी के ईलाज में कारगर होती है और सुरु भुला को भी दिखाई।  कार में बैठकर हमनें जामणीखाळ के लिए प्रस्थान किया और दोपहर दो बजकर तीस मिनट के लगभग जामणीखाळ पहुंच गए।  सुरु भुला ने फरशुराम भट्ट जी से पुदीने का जूस, सेब का जैम लिया।  थोड़ी देर में बस आई और हम उसमें बैठे और देवप्रयाग के लिए प्रस्थान किया। 


      देवप्रयाग हम लगभग चार बजकर तीस मिनट पर पहुंचे।  मित्र को फोन मिलाया उन्होंने कैमरा मैंन का नंबर दिया।  मैंने जब संपर्क किया तो कैमरा मैन ने बताया, कार्यक्रम बदल गया है इसलिए आप बादशाही थौळ आ जाओ।  पैरौं से जमीन खिसक गई, न रहे घर के और न घाट के।  बहुत देर तक देवप्रयाग में उलझन की स्थिती में रहे।  जोशीमठ जाने वाल एक बस आई और हम उसमें बैठकर बग्वान में ऊतरे।  हमनें तय किया अब अपने समधोळा ललथ चलते हैं।  सौभाग्य से एक जीप ललथ के पास जा रही थी।  हम उसमें बैठकर ललथ गांव से पहले ऊतर गए।  सड़क से हम शार्टकट खेतों से होते हुए ललथ के पास सड़क पर पहुंचे।  जामणीखाळ में श्री अंकित भटट जी ने मुझे कुछ देशी आम दिए थे।  मैंने सुरु भुला को कहा इन आमों को चूस लेते हैं, कुछ प्यास का अहसास हो रहा था। हम आम चूस रहे थे, सामने से समधि जी श्री मोहन सिंह बिष्ट जी आ रहे थे।  उनके हाथ में कुछ आम थे।  उन्होनें आम हमें दिए और हमनें उन खटटे मीठे आमों को चूस डाला।  कुछ देर बाद हमनें अपने समधि जी के आवास की तरफ प्रस्थान किया।

      बग्वान से मैंने फोन करके बहु के दादा जी को अपने आने की सूचना दे दी थी।  जब हम समधोळा पहुंचे तो बहु के दादा दादी जी ने हमारा स्वागत किया।  मेरे समधि जी तो सपरिवार देहरादून प्रवासी हैं। बहु के दादा दादी जी नें हमारी आवाभगत की।  बातचीत का दौर चला, सुरु भुला का मैंने उनसे परिचय करवाया।  पिछली रात भलि भांति नींद न लेने के कारण हमें नींद आ रही थी।  हम भोजन करने के बाद सो गए।

      सुबह छ बजे हमारी आंख खुलि।  हमनें चाय पी और प्रस्थान करने का विचार बनाया।  ललथ से प्रस्थान करने के बाद हम गांव के नीचे गए।  सोच रहे थे जामणीखाळ जाने के लिए कोई ट्रक मिल जाए तो सही रहेगा और हम नई टिहरी जल्दि पहुंच जाएगें।  बहुत इंतजार के बाद दो ट्रक आए पर उन्होंने हमें बिठाया नहीं।  पास ही एक आम का पेड़ था, वहां पहुंच कर हमनें पके आमों का रस्वादन किया।  सुरु भुला की ऊपर की ओन एक तिबारी पर नजर गई।  भुला ने कहा चलो तिबारी की तस्वीरें लेते हैं।  तस्वीरे लेने के बाद हम ललथ बैंड पर पहुंचे।  मूसलाधार बरखा लग गई।  काफी समय तक सुबह नौ बजे श्रीनगर जाने वाली बस आई और बस में बैठकर हमनें मलेथा का टिकट लिया।  सोचा मलेथा में हमें नई टिहरी जाने की बहुत सी बसें मिल जाएगीं। 

जब हमारी बस मलेथा पहुंची तो हम वहां पर ऊतर गए।  पास ही एक दुकान पर गए और उनसे पूछा कुछ जलपान की व्यवस्था हो जाएगी।  होटल वाले ने बताया परोंठे मिल जाएगें।  हमनें कहा जल्दि बनाओ।  कुछ देर इंतजार के बाद होटल वाले नें हमें गरम गरम परोंठे परोसे।  पेट पूजा करने के बाद हम माधो सिंह भण्डारी जी के स्मारक की ओर चल दिए। रास्ते में हमें स्टोन क्रेशर स्थल दिखाई दिया, जो हिमालय बचाओं आन्दोलन के श्री समीर रतूड़ी जी और मलेथा ग्राम वासियों के भीगीरथ प्रयास से बंद पड़ा हुआ है। पंद्रह मिनट पैदल चलने के बाद हम स्मारक पर पहुंचे।  स्मारक स्थल रमणीक जगह पर मलेथा की कूल के ठीक ऊपर है।  सुरु भुला बता रहे थे, देखो स्मारक तो बना दिया पर उचित देखभाल की कोई व्यवस्था नहीं।  उमस बहुत थी, कुछ तस्वीरें लेने के बाद हम सुरंग के मुहाने पर गए।  सुरंग में अथाह पानी जा रहा था।  माधो सिंह भण्डारी जी के महान त्याग के कारण हमनें उन्हें याद किया।  सन् सोलह सौ पैंतीस में सुरंग बन जाने के बाद पानी सुंरग से पास नहीं हुआ।  माधो सिंह व्यथित थे, भगीरथ प्रयास बेकार हो गया। बताते हैं उनके स्वप्न में देवी आई और बताया।  माधो सिंह तुम्हें सुरंग पर नर बलि देनी होगी, तभी पानी सुरंग के पार जाएगा।  भण्डारी जी इस कारण किंकर्तव्यविमूढ़ हो गए।  अंत में उन्होंने अपने पुत्र गजे सिंह की वहां पर बलि दी।  आज मलेथा गांव उनके इस त्याग के कारण हरा भरा है।  मलेथा के लोग भी उन्हें याद करते हैं और उनकी याद में जनवरी माह में मेला आयोजित किया जाता है।  कवि हूं इस कारण मैंने मलेथा पर रचना की है।  रचना का एक अंश इस प्रकार से है:-
आमू का बग्वान मलेथा, लसण प्याज की क्यारी,
कूल बणैक अमर ह्वैगि, भड़ माधो सिंह भण्डारी...

कूल का खातिर करि माधो, त्वैन नौना कू बलिदान,
आज अमर ह्वैगि माधो सिंह, उत्तराखण्ड की शान....(कवि जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू)

      कुछ समय बाद हम स्मारक स्थल से ऊपर सड़क पर आ गए।  प्यास बहुत लगी थी, पास ही सड़क पर कार्यरत महिलाओं से हमनें पानी मांग कर अपनी प्यास बुझाई।  बस का हम इंतजार कर रहे थे, बहुत देर बाद साढ़े बारह बजे दिन में हमें बस मिलि।  अब हम डांगचौंरा की ओर बढ़ रहे थे, गाड के पास सिंचित खेतों में धान की रोपाई हो रही थी।  मैंने सुरु भुला को बताया, हमारे स्व. रामू बाद्दी का गांव यहीं हैं।  मेरे बाल्यकाल के दौरान सर्दियौं के मौसम में स्व. रामू हर साल हमारे गांव आता था।  रात को गांव वाले उनके पास बैठते और पारंपरिक गीत सुनते थे। गीत की कुछ पंक्तियां इस प्रकार से है:-

1.   गिरमपति गिरजा टीरी नरेश, चिरंजीव रान तेरु गढ़देश.....
2.   हरसिंग पटवारी की थै घूत्तू चौकी, वे बाग मान्न की इच्छा थै जौंकी....
3.   कमला तू रोई ना....   
4.   द्वी हजार आठ भादौं का मास, सतपुलि मोटर बगिन खास....
5.   रात घनाघोर मांजी रात घनाघोर.......   

चढ़ाई का मार्ग था और हमारी गाड़ी सरपट कांडीखाळ की ओर जा रही थी।  अमोली गांव आने पर मैंने सुरु भुला को बताया, ये विजय बुटोला का गांव है। काण्डीखाळ के बाद हमारी बस मगरौं की तरफ जा रही थी। घाटी मनोहारी लग रही थी। वहां पर हमनें सड़क मार्ग से गुजरते हुए नवोदय विद्यालय परिसर देखा जो काफी भव्य था।  पौखाळ के बाद हम जाखदार पहुंचे जहां से एक सड़क घनसाली की ओर जाती है।  टिहरी डाम की विशाल झील नजर आ रही थी।  आगे हमें पीफळ डाळी का पुल दिखाई दिया।  डाम में पानी मटमैला दिख रहा था और डूबे हुए गांवों के अवशेष झील मा जल स्तर कम होने के कारण नजर आ रहे थे। जब हम टिहरी डाम के निकट पहुंचें तो नई टिहरी व डाम की दीवार नजर आ रही थी।  कुछ समय बाद हम भगीरथपुरम पहुंचे और वहां पर बस से ऊतर गए।  प्रस्थान से पहले पतरोळ जी(श्री कुम्मी घिल्डियाळ) से हमारी बात हुई थी ओर उन्होंने कहा था आप भगीरथ पुरम ऊतर जाना।  पतरोळ जी का कार्यालय वहीं पर है।  हमनें फोन करके बताया हम पहुंच चुके हैं।  मैंने कैमरा मैन को फोन किया हम भगीरथपुरम पहुंच गए हैं।  कैमरा मैन ने बताया हम चंबा पहुंच गए हैं और देहरादून जा रहे हैं।  मैंन उनको यात्रा मंगलमय हो कहा।  अब मैं सकून में था क्योंकि अब हमें बादशाही थौळ नहीं जाना था।  पतरोळ साहब अपनी कार से आए और हमारे गले मिले। बातचीत का दौर चला, पास ही शहीद की मूर्ति लगी थी।  पतरोळ जी ने बताया देखो स्मारक तो बना देते हैं लेकिन कोई देखभाल की व्यवस्था नहीं।  पतरोळ जी हमें टिहरी डाम के गेस्ट हाऊस ले गए और कहा आप यहां विश्राम करो, फिर शाम छ बजे मैं तुम्हें अपने घर पर ले जाऊंगा।  हमनें स्नान किया और आराम करने लगे।

लगभग छ बजे पतरोळ जी आए और हमें टिहरी डाम के परिसर में बने पार्क में घुमाया।  पतरोळ जी कह रहे थे आपके दिल्ली में क्या पार्क हैं।  देखो ऐसे पार्क है दिल्ली में।  वहां पर हमने पार्क में तस्वीरें ली।  कुछ समय बाद पतरोळ जी हमें अपनी कार में बिठाकर नई टिहरी को चल दिए।  रास्ते में दो मील के पत्थर लगे थे जिनमें टिहरी चार और पांच किमी लिखा था।  पतरोळ जी ने बताया मित्रों देखो।  एक जगह स्मारक द्वार बना हुआ था और उसमें लगी टाईल निकली हुई थी।  पतरोळ जी ने बताया इसे भी देखो, बना तो देते हैं देखभाल नहीं करते।  कुछ समय बाद हम नई टिहरी पतरोळ जी के घर पर पहुंचे।  सुरु भुला पहले पतरोळ जी के घर आए हुए थे।  मैं नव आगंतुक था।  पतरोळ जी ने कहा आप बाहर ही रुको।  मैंने सोचा पतरोळ साहब कहीं प्रवेश से पहले हम पर पिठांई तो नहीं लगा रहे।  कुछ समय बाद पतरोळ जी ने कहा अंदर आ जाओ।  पतरोळ जी ने अपने अस्त व्यस्त ड्राईगं रुम को सुव्यवस्थित किया।  मैंने कहा पतरोळ जी मैंने सोचा आप घर में प्रवेश करते हुए हम पर पिठांई लगाने का विचार कर रहे हैं।



पतरोळ जी का परिवार दिल्ली में प्रवासी है।  अकेलेपन के कारण हमारे आने पर उन्हें अथाह खुशी का अहसास हो रहा था।  हम उनके प्रिय मित्र ठहरे और हमारी तरह उन्हें भी पहाड़ और संस्कृति प्रेम है।  कहते हैं मुझे पहाड़ से दूर का प्रवास कतई अच्छा नहीं लगता।  शुरुआत के दिनों में उन्होंने फरीदाबाद में प्रवास का जीवन बिताया है।  टिहरी डाम में नौकरी लगने की बात हमें बताई और कहा यहां तो स्वर्ग है।  एकाकीपन मुझे थोड़ा सताता जरुर है।  पतरोळ जी अपनी रसोई में गए और हमें चाय पिलाई।  हम मित्र के घर मेहमान की तरह अहसास नहीं कर रहे थे।  हमनें जिस प्रकार हो सके भोजन व्यवस्थ और अन्य कार्यो में हाथ बंटाया।  स्नान करने के बाद भोजन की व्यवस्था हुई।  भोजन करने के बाद सुरु भुला और पतरोळ जी यंग उत्तराखंड सिने अवार्ड और अन्य रिकार्डिंग देखने में व्यस्त हो गए।  मैं तो सो गया और वे चार बजे रात तक जगे रहे।  सुरु भुला और हम खराटे लेते हैं इसलिए पतरोळ जी ऊड्यारनुमा कमरे में ऊपर की मंजिल में सो गए।






दो जुलाई सुबह मेरी नींद खुली तो परदा हटाकर देखा तो टिहरी डाम की झील और खैट पर्वत और धारमंडळ वाला क्षेत्र मनोहारी लग रहा था।  कोहरा पहाड़ पर इधर उधर भाग रहा था।  मैंने खूबसूरत नजारों को अपने कैमरे में कैद किया।  पतरोळ जी और सुरु भुला भी जाग चुके थे।  हमनें स्नान किया और पतरोळ जी ने गरम गरम परोंठे बनाएं।  तैयार होकर हमनें पंराठे चाय के साथ खाए।  कुछ देर बाद हम पतरोळ जी की कार में बैठकर भगीरथपुरम के लिए चल दिए।  वहां से पतरोळ जी ने श्री बलबीर सिंह तोपाळ जी को साथ लिया और हमनें घनसाली के लिए प्रस्थान किया।  हल्की बरखा लगि हुई थी और हम घनसाली की ओर जा रहे थे।  पतरोळ जी ने हमारा परिचय तोपाळ जी से करवाया।  मैंने तोपाळ जी से कहा आप लोग राजशाही के दौरान अतीत में तोप चलाते थे।  तोपाळ जी ने बताया तोप तो राजशाही के साथ चलि गई है और अब हमारे पास बंदूक ही रह गई है।  टिपरी पहुंचने पर पतरोळ जी ने कहा यहां पर माछा भात खाते हैं।  हमनें कहा रहने दो आगे कहीं भोजन कर लेगें।  पीफळ डाळी पर पहुंचने पर फिर पतरोळ जी ने माछा भात खाने की इच्छा जाहिर की लेकिन तय हुआ घनसाली में ही भोजन करेगें।  हमारा कार्यक्रम जग्दि गाड, मालगांव तक जाने का था।  विदेश में रहने वाले गणेश प्रसाद बडोनी जी ने श्रीमती पूनम नेगी का परिचय दिया था। मुझे बताया वे गढ़वाळि गाने लिखती हैं और पेड़ से गिरने के कारण रीढ़ की हडडी टूटने के कारण अपाहिज भी हैं। पूनम को मैंने आपने आने की सूचना दी।  वे बता रही थी कि यहां बहुत बरखा हो रही है।  हमनें सोचा घनसाली से पास ही होगा। 

कुछ समय बाद हम घनसाली पहुंचे।  वहां पर मेरे एक फेसबुक दोस्त फोटोग्राफर श्री शिव सिंह रौथाण जी रहते हैं।  मन में अभिलाषा थी उनसे मिला जाए।  सोचा घनसाली में पूछकर पता लग जाएगा।  लेकिन मेरी डायरी में उनका फोन नंबर था जो दिल्ली में ही छूट गई थी।  मैंने दिल्ली फोन करके अपने घर में बताया जरा डायरी देखो और शिव सिंह रौथाण जी का नंबर दो।  परिजनों ने बताया जिस डायरी का आपने जिक्र किया उसमें उनको नंबर नहीं है।  फेसबुक के माध्यम से मैंने रौथाण जी को संदेश दिया था, हम घनसाली आ रहे हैं। पतरोळ जी का नंबर भी दिया।  बरखा के कारण संचार व्यवस्था ठीक न होने के कारण या आनलाईन न होने के कारण उनको कोई संदेश नहीं मिला।  घनसाली पहुंचकर दो तीन फोटोग्राफर से हमनें पूछा पर रौथाण जी के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलि।  बरखा लगि हुई थी, इस कारण हमनें घनसाली में दो तीन रंगीन छाते खरीदे और पनगोला से प्रभावित बेहड़ा गांव गए। 

बेहड़ा, श्याम नगर पहुंचने हमनें मलबे का आया सैलाब देखा।  प्रभावितों ने बताया हमारी सिंचित भूमि 1975 में बह गई थी। बेहड़ा गांव के लोहार होने के कारण ग्राम वासियौं की संस्तुति पर तब हमें यहां पर सरकार ने जमीन दी थी। 28 मई, दोपहर दो बजकर तीस मिनट पर ऊपर से मलबा और पानी आया और हमारे घरों में घुस गया।  किसी तरह हमनें अपनी जान बचाई।  हिमालयन न्यूज के लिए सुरु भुला ने उनको साक्षात्कार लिया और पतरोळ जी ने कवर किया।  बहुत ही भावुक अंदाज में वे अपनी व्यथा जाहिर कर रहे थे।  कुछ समय बाद हम पास ही मान्यवर तोपाळ जी की ससुराल बेहड़ा गए।  उनकी ससुराल में भी वही हाल था।  मलबा उनके घरों के बीच से गाड की तरफ तक आया हुआ था।  सड़क से उनके घर को आता हुआ रास्ता क्षतिग्रस्त था।  हम किसी प्रकार उतरकर उनकी ससुराल में पहुंचे।  चाय पानी का दौर चला, उनके ससुर जी शिक्षा विभाग से सेवानिवृत्त हैं।  वहां पर फिर सुरु भुला ने सभी से घटना की जानकारी ली और पतरोळ जी ने आपदाग्रस्त क्षेत्र को कवर किया।  कुछ देर बाद हम वापिस तोपळ जी के ससुर जी के घर पर आए।  तोपाळ जी के ससुर जी को मैंन अपनी प्रिय गढ़वाळि कविताएं सुनाई।  कविताएं सुनकर तोपाळ जी के ससुर बहुत खुश हुए।  भोजन का दौर चला और हमनें नई टिहरी के लिए प्रस्थान किया।

घनसाली से आगे बढ़ते हुए हमें निमार्णाधी घोंटी पुल के पास पहुंचे।  पतरोळ जी ने वहां पर गाड़ी रोकी और बताया इसे हम टाईगर बैंड कहते हैं।  कुछ समय पहले हमारे टाईगर दोस्त की कार खाई में गिरने से दर्दनाक मौत हो गई थी।  पतरोळ जी बता रहे थे सोच रहा हूं यहां पर मैं पत्थरों से पैराफिट बनाऊंगा।  हमनें स्वर्गवासी टाईगर जी का नमन किया और एक बीड़ी जगाकर उन्हें भेंट की।  वहां से आगे चलने पर हम उस स्थान पर रुके जहां पर टिहरी डाम में लगे पत्थरों को निकाला गया था।  वहां पर एक लोहे का पुल था और स्थान का नाम आसीना है।  कुछ तस्वीरें लेने के बाद पतरोळ जी ने नेगी जी के एक गाने पर सुरु भुला की एक विडियों क्लिप बनाई जो जिसे फेसबुक पर अभी तक लगभग छ हजार से भी ज्यादा लोग देख चुके हैं।  कुछ आगे चलने पर समधोळा का द्वी दिन समळौण्या रैगिन गीत पर मेरी भी विडियो क्लिप बनाई जिसे फेसबुक पर दो हजार से भी ज्यादा लोग देख चुके हैं।  पास ही एक आम का पेड़ था जिस पर पत्थर चलाकर मैंने चार आम झाड़ लिए थे।  लगभग छ बज चुके थे और हम नई टिहरी की ओर जा रहे थे।  लगभग आठ बजे हम पतरोळ जी के आस पर पहुंचे।

पतरोळ जी के आवास पर पहुंचकर हमनें भोजन व्यवस्था की।  पतरोळ जी ने कहा राजमा धुर्च कर बनाते हैं।  गरम गरम रोटी बनाने का मुझे सौभाग्य मिला।  तस्वीरों के माध्यम से पतरोळ जी के घर पर हमारी गतिविधियों को आप निहार रहे होगें।  भोजन के बाद विडियो रिकार्डिंग और तस्वीरों को पतरोळ जी ने कंप्यूटर पर डाला।  सुरु भुला सो चुके थे और हम इस कार्य में रात के चार बजे जगते हुए सो गए।

तोपाळ जी ने सुबह चाय बनाकर हमें पिलाई।  पतरोळ जी अपने उड्यारनुमा कमरे में सो रहे थे।  पतरोळ जी के ड्राईगं रुम से सतेश्वर मंदिर, टिहरी आवासीय परिसर और डाम की झील बहुत ही मनोहारी लग रही थी।  उसके बाद पतरोळ जी हमें साथ लेकर तोपाळ जी को छोड़ने भगीरथपुरम गए।  दिल्ली लौटने का हमारा कार्यक्रम था, बाद में हमनें तय किया रात की बस से दिल्ली जाएगें।  पतरोळ जी ने हमें बताया स्व. सेमवाळ स्मृति वन पिछले समय से रविवार के दिन सत्यमेव जयते टीम द्वारा साफ किया जा रहा है।  लोगों ने उसमें कूड़ा डाल दिया था और स्मृति वन देख भाल के आभाव में बुरे हाल में था।  देखो सभी छात्र उस काम में लगे हैं।  मैं आज वहां जा नहीं सका, इसलिए वहां चलते हैं।  पतरोळ जी हमें कार से वहां ले गए।  स्मृति वन के गेट पर ऊतर कर हमनें देखा, गेट के पास ही एक कूड़ादान रखा हुआ है।  नीचे उतरने पर हमनें देखा सभी छात्र उसकी सफाई में व्यस्त थे।  सुरु भुला ने स्मृति वन के बारे में सभी छात्रों का साक्षात्कार लिया।  उन्होंने बताया सभी लोग कूड़ा यहां डालते हैं लेकिन इस कार्य में हमारे साथ कोई सहयोग नहीं कर रहा है।  नगर पालिका की तरफ से भी कोई सहयोग नहीं मिल रहा है।  हम चाहते हैं हमारा नगर साफ सुथरा रहे।  हम इस स्मृति वन की सफाई करने के बाद यहां पर पेड़ लगाएगें।  पतरोळ जी से हमनें इसकी सफाई के बारे में बताया।  पतरोळ जी ने कहा दिखावे के लिए एक दिन यह काम नहीं करना।  हर रविवार को इसकी सफाई होगी और इसे हरा भरा बनाने तक लगातार काम चलता रहेगा।  पतरोळ जी को हमनें कहा हम नीचे सड़क पर जा रहे है और आप कार को नीचे ले आओ।  नीचे जाने के बाद हमनें उनकी बहुत इंतजार की लेकिन वे नहीं आए।  हमें लगा वे सभी छात्रों की भोजन पानी की व्यवस्था में व्यस्त हो गए हैं।  हम पतरोळ जी के आवास पर लौट गए।  कुछ देर बाद पतरोळ जी भी वापिस अपने घर पर आ गए।



भोजन की व्यवस्था की गई और हमनें भोजन किया। भोजन करने के बाद पतरोळ जी ने सुव्यवस्थित तरीके से मेरी गढ़वाळि कविताओं की रिकार्डिंग की अर उसके बाद हम आराम करने लगे।  लगभग छ बजे सांय हमारी नींद खुलि।  हाथ मुहं  धोकर हम तैयार हुए ।  पतरोळ जी ने कहा मैं तुम्हें चंबा तक छोड़ देता हूं।  पतरोळ जी ने हमें समूण के रुप में धनोल्टी के आलू दिए।  कार में बैठकर हम चंबा के लिए चल दिए।  नई टिहरी नगर, उसके बाद घने चीड़ का वन और बादशाही थौळ बहुत हीं रमणीक लग रहा था।  कार की खिड़की से मैंने देखा, चंद्रवदनी मंदिर की चोटी बहुत ही मनोहारी लग रही है।  चलते चलते मैंने दृश्य अपने कैमरे में कैद किया।  चंबा की तरफ जाते हुए दूर से चंबा और सुरकंडा की चोटी मनमोहक लग रही थी।  पतरोळ जी को मैंने रुकने के लिए कहा क्योंकि हमें चंबा की तस्वीरें लेनी थी।  पतरोळ जी ने गाड़ी रोकी और हमनें चंबा को अपने कैमरे में कैद किया।  चंबा पहुंचने पर एक जीप ऋषिकेश के लिए खड़ी थी।  हमें पतरोळ जी ने उसमें बिठाया।  बैठने से पहले सुरु भुला नें एक सेल्फी ली और पतरोळ जी से गले मिलकर हम जीप में बैठ गए।  भावुक छण था, पतरोळ जी भी भावकु थे।  दुनियां का मायाजाल है ये, अपनी मंजिल को हमें जाना था। पहाड़ पर आने की ऊमंग अनोखी होती है।  लौटने पर यादें मन में बस जाती है और ऊदासी सी छा जाती है। 

कुछ देर बाद जीप स्टार्ट हुई और हम ऋषिकेश के लिए चल दिए।  खाड़ी होते हुए हम आगराखाळ पहुंचे।  रास्ते मे झरने बह रहे थे और ठंडी हवा बह रही थी।  कुंजापुरी के पास हमें कोहरे ने घेर लिया।  ठंड लगने लगि थी और मैं सोच रहा था अब हमें ऋषिकेश से गर्मी और उमस का सामना करना ही होगा।  नरेन्द्र नगर को निहारते हुए हम अब ऋषिकेश के निकट पहुंचने वाले थे।  एक जगह आने वाले दो ट्रक रुके हुए थे और हमारी जीप आग बढ़ रही थी।  एक सांप सड़क पार नीचे की तरफ जा  रहा था जो हमारी जीप से कुचलते हुए बच गया।  जीप आगे निकल चुकी थी, मैंने पीछे देखा तो एक सांप सड़क के किनारे की तरफ जा रहा था।  उसक सिर तो नजर नहीं आया परंतु पीछे का हिस्सा लगभग सात हाथ का दिखा। 

लगभग आठ बजे सांय हम ऋषिकेश पहुंचे तो उमस बहुत हो रही थी।  ढालवाला पर जीप से ऊतर कर हम पैदल बस अडडे पहुंचे।  वहां पर कुछ देर में दिल्ली के लिए एक बस लगी और हमनें टिकट ली।  बस को दस बजे प्रस्थान करना था इसलिए सामनें एक होटल में हमने पेट पूजा की।  लगभग दस बजे बजे बस ने दिल्ली के लिए प्रस्थान किया।  ड्राईवर साहब बस को धीरे अंदाज में चला रहे थे।  हम सोच रहे थे दिल्ली हम साढ़े तीन बजे के लगभग पहुंच जाएगें।  सफर पूरा हुआ और हम पौने पांच बजे दिल्ली बस अडडे पहुंचे।  बस से ऊतर कर हम मोरी गेट गए, जहां सुरु भुला ने अपनी स्कूटी पार्क की हुई थी। पार्किंग से स्कूटी में बैठकर हमनें अपने घर के लिए प्रस्थान किया और छ बजे हम संगमविहार अपने आवास पर पहुंचे।  चाय पीने के बाद मैंने स्नान किया और सुरु भुला ने अपने आवास बदरपुर के लिए प्रस्थान किया।


-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
दिनांक 6.7.2016

मलेेथा की कूल