Tuesday, August 30, 2011

"अपणा आज"

(द्वारा/रचित/ जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु" )
कदम कदम फर अपणा ही,
आज दुखदाई छन,
देखदु छौं जब मिजाज ऊँका,
खट्टु सी ह्वै जान्दु मन...
द्वी कदम मेरी तरक्की का,
मन मा ऊँका आग,
कैका भाग कू क्वी नि खांदु,
अपणु-अपणु भाग.....
बात सिर्फ हृदय किछ,
जख बस्दु छ भगवान,
बेदर्द किलै होयां अपणा,
जन ढुंगा का समान....
फिर भि दिल मा दर्द छ,
जना भि छन ऊँका मिजाज,
देखि दुनियां मतलबी छ,
पराया ही "अपणा आज"...
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित ३०.८.२०११)
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Monday, August 29, 2011

"पहाड़ बिटि पाती"

(रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")
लिख्युं छ, मैं यख नौनौ समेत,
कुल देवतौं की कृपा सी,
कुशल छौं, आशा छ आप भी,
कुशल मंगल ह्वैल्या, अबरी हमारी भैंसी,
लैंदी छ अर भारी दुधाळ भी,
हमारी टक्क तुम फर लगिं छ,
तुम घौर ऐ जाँदा, तस्मै खै जाँदा,
ये सौण का मैना, चौमासू लग्युं छ.
नन्दु अर नारैणु स्कूल जाण लग्यन,
मास्टरजिन दुयौं कू नौं लिख्यालि,
मैकु भारी ख़ुशी छ, तुम भी होला,
माली सारी झंगरेड़ि छ, अर बेली सारी कोदाड़ी,
बल्दु की जोड़ी मेरी माळ्या रखिं छ,
हमारू हौळ तांगळ पदान जी, ख्यास करि लगाणा छन,
फसल पात खूब लगिं छ, ह्वै सकु त घौर औन्दि बग्त,
मैकु एक हरीं साड़ी अर लाल बिलोज,
जरूर ल्हैन, किलैकि बग्वाळ,
श्रीनगर बैंकुंठ चतुर्दसी कू मेळू,
ह्युंद का मैना होला,
आपकी जीवनसाथी.............
(सर्वाधिकार सुरक्षित अवं प्रकाशित २८.८.२०११)
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Tuesday, August 23, 2011

"हमारू पहाड़"

(रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")
पराणु सी प्यारू छ, दुनियाँ मा न्यारू छ,
देवतौं कू मुल्क अर भोले जी कू प्यारू छ,
कवि, लेखक, गितांग, नचाड़, बंठ्या बैखु का,
मयाळु मन मा बस्युं, "हमारू पहाड़",
गंगा यमुना कू मैत, माँ नन्दा कू प्यारू छ,
गर्व छ हमतैं, पराणु सी प्यारू "हमारू पहाड़",
जन्मभूमि, देवभूमि, मुल्क हमारू छ.
जख हैंस्दु छ हिमालय, प्यारू बुरांश,
प्यारी फ्योंलि कू मैत, वीं तैं भी प्यारू छ,
मन मा सदानि बस्युं रंदु, हमारा मन मा,
हे दिदा भुलौं, बल कथगा न्यारू छ,
पराणु सी प्यारू, कवि "जिज्ञासु" का मन मा,
दूर परदेश मा भी बस्युं, "हमारू पहाड़",
पराणु सी प्यारू छ, दुनियाँ मा न्यारू छ.
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित २२.८.२०११)
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हमारू पहाड़...

Thursday, August 11, 2011

"कनुकै होलि खाणि बाणी"

(रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")
तिबारि डिंडाळि उजाड़ि, प्यारू गौं छोड़ि छाड़ी,
कनुकै होलि हे चुचौं, तुमारी खाणी बाणी......
कखन खैल्या हे चुचौं, पहाड़ की सब्बि धाणी,
कखन पेल्या हे तुम, छोया ढुंग्यौ कू पाणी,
क्या तुमारी, वे प्यारा पहाड़, टक्क निछ जाणी?

कुल देवतौं का मंदिर, देवता भि होयाँ ऊदास,
प्यारू गौं छोड़ि चलिगें, आज ऊ छन निराश,
पित्रु का कूड़ा रैगिन, तुमारु देश प्रदेश निवास,
ऐल्या क्या तुम बौडि़क, होला ऊ लग्यां सास,
तिबारि डिंडाळि उजाड़ि, प्यारू गौं छोड़ि छाड़ी,
कनुकै होलि हे चुचौं, तुमारी खाणी बाणी......

अपणु मुल्क त्यागि, जू बल भौं कखि भागि,
खौरि का दिन बितदा, कैकि किस्मत नि जागी,
मैन यूँ आंख्यौंन देखि, मेरा मुल्क पहाड़ की,
धौळ्यौं कू ठण्डु पाणी, जवानी कुजाणि किलै भागी,
जनु भि सोचा तुम, कवि "जिज्ञासु" कू मन,
सोचण लग्युं अफुमा, प्यारू गौं छोड़ि छाड़ी,
तिबारि डिंडाळि उजाड़ि, कनुकै होलि हे चुचौं,
तुमारी खाणी बाणी......
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित दिनांक: १०.८.२०११ )
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Friday, August 5, 2011

"गढ़वाळि छैं गढ़वाळि मा"

(रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")
गढ़वाळि छैं गढ़वाळि मा छकि छक्किक बोला,
कथगा प्यारी भाषा हमारी मन मा कुछ तोला....

ब्वै बोंनि छ,
हे मसाण क्या कन्नु छैं? केकु कन्नु छैं खारू,
हे मेरा लाटा काला तू , बुढेन्दा कु छैं सारू....
खोपरी फूटि कनि आज, त्वैन यु क्या कर्याली,
सैड्डु गिच्चु सिंगाणन, आज त्वैन भार्याली.....
चूकि जान मेरा त्वैकु, हे ऐन्सु की बग्वाळ,
क्यौकु मान्नि छैं, हे लठ्याळा, सगोड़ा फुन्ड फाळ...

बुबा जी बोंना छन,
सुण हे, कख थै गयुं, आँखा कन्दुड़ खोल,
भतगै द्योलु आज त्वै, नितर सच बोल.....
क्या भटकण लग्युं छैं तू, ओलि पली डिंडाळि,
पीठ मा तेरा अभि लगौन्दौ, झण-झणि कंडाळि...

नौनु बोंनु छ,
क्या बोन्न मैन, हे बुबाजी, मेरा गौंणा बैठ्युं छ कांडू,
गोरु चरौण गयुं थौ ब्याळि, जख चन्द्रबदनी कु डांडू.....
घुण्डौ मा फट्युं छ बुबाजी, मेरु झीलु-झीलु सुलार,
कळकळि नि औन्दि मै फर, तुम करदा निछैं प्यार........
गढ़वाळि छैं गढ़वाळि मा छकि छक्किक बोला,
कथगा प्यारी भाषा हमारी मन मा कुछ तोला....
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित दिनांक: ५.८.२०११)
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Wednesday, August 3, 2011

"अमर शहीद श्रीदेव सुमन"

(रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")
जन्मभूमि जौल ग्राम, पट्टी. बमुण्ड, टिहरी गढ़वाल,
प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करि, गौं अर प्यारा चम्बाखाल,
सुमन समर्पित आपतैं, महान आपकु कठिन त्याग,
दबिं कुचलिं जनता टिहरी की, लगण लगिं थै जाग,
राजशाही का अत्याचार, आपन करि विरोध अपार,
टिहरी रियासत की जनता, झेन्न लगिं थै लगातार,
भोली भाली जनता कू, होण लग्युं थौ क्रूर दमन,
बिगार बोकी, कर भरिक, दुखित थौ जनता कू मन,
देखि दुखित रंदु थौ, सदानि श्रीदेव आपकु मन,
चांदा था सुखी जनता तैं, मन हो ऊँकू जन सुमन,
सुपिनु आपकु एक थौ, टिहरी रियासत हो आज़ाद,
सुखि रौन रियासतवासी, रज्जा की गुलामी का बाद,
सिंहासन रज्जा कू हिलि, आप फर ह्वैन भारी अत्याचार,
चौरासी दिन की जेल काटी, जनता मा मचि हा-हाकार,
२५ जुलाई-१९४४ कू ब्याखुनि बगत, छोड़ी आपन संसार,
दिनि प्रिय पराणु की आहुति, होलु मेरु सुपिनु जरूर साकार,
२५ जुलाई-१९४४ रात कू, पाप्यौन बगाई आपकी लाश,
धौळी भिलंगना अर भागीरथी, वीं रात कु थै भारी उदास,
१९४८ मा जनतान करि, देवप्रयाग, कीर्तिनगर फर अधिकार,
टिहरी रियासत कू अंत ह्वै, सुमन जी आपकु सुपिनु साकार,
बलिदान आपकु कालजई छ, हे "अमर शहीद श्रीदेव सुमन",
अत्याचार आपन भुग्तिन, व्यथित कवि "जिज्ञासु" कु मन.
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित दिनांक: १.८.२०११)
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Monday, August 1, 2011

"कब तक सटकैल्यु"

(रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")
लुकारा आँखौं लोण मर्च, धोळि-धोळि रे,
एक दिन यनु आलु, जब तू पछ्तैली रे,
देखला लोग जब तू, हाथ मा हथगड़ी पैरि,
बाल, बच्चा, बंगला छोड़ी, जेल जैल्यु रे.....

भ्रष्ट्राचार का आँगा फाँगौं, खूब घूम रे,
पाप की कमै करि-करि, कब तक खैल्यु रे,
एक दिन यनु आलु, जब गोळ फर ऐल्यु रे,
दारू, माशु, धोळ-फोळ, तब चितैल्यु रे,
लुकारा आँखौं लोण मर्च, धोळि-धोळि रे,
देखला लोग जब तू, हाथ मा हथगड़ी पैरि,
बाल, बच्चा, बंगला छोड़ी, जेल जैल्यु रे.....

सदानि कैकि नि चल्दि, यनु भि बगत औन्दु रे,
द्वी हाथुन कपाळ पकड़ि, बुकरा बुकरि रोंदु रे,
भ्रष्ट्राचार की गंगा मा, जू हाथ धोंदु रे,
लुकारा आँखौं लोण मर्च, धोळि-धोळि रे,
देखला लोग जब तू, हाथ मा हथगड़ी पैरि,
"कब तक सटकैल्यु" रे, जेल जैल्यु रे.....
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित दिनांक: ३१.७.२०११)
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मलेेथा की कूल