Friday, November 29, 2013

बोडा....

ऊकाळ उद्यार,
औंदु जांदु थौ,
कोदु झंगोरु,
खांदु थौं,
अपणि डिंडाळि मा बैठिक,
ह्वक्‍का पेंदु थौ,
फंसोरिक सेंदु थौ,
पर आज,
बोडा की उजड़िगि डिंडाळि,
चौक फुंड जमिगि कंडाळि,
सैडा गौं की नाड़ी नसुड़ि,
हातन लगौंदु थौ,
अपणा माळया बल्‍दुन,
हौळ लगौंदु थौ,
मुलाज्‍या भी भारी थौ,
कैकि हदद मदद मा,
पिछनै नि रंदु थौ,
आज वैका नौना बाळा,
चलिग्‍यन परदेश,
पित्र बणि बोडा,
आज पित्र कूड़ी मा,
गौं भि बेरौनक अब,
बिना बोडा कू,
याद हि रैगिन अब,
बोडा जी की शेष.....
-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं ब्‍लाग पर प्रकाशित
8.11.2013
 

"द्वी आंखा मूंजि"

कंदूड़्यौं फर हात लगैक,
पुराणु बोयुं आज काटणु छौं,
हात काटी दिन्‍युं अपणु,
ऊंकू करयुं भुगतणु छौं,
तुम भि होला भुगतणा,
मेरी तरौं,
मैं केकी बात कन्‍नु छौं?
मैं कैकी बात कन्‍नु छौं?
आज फिर बोण कू,
बग्‍त अयुं,
जनु ब्‍वैल्‍या तनु पैल्‍या,
मैं "द्वी आंखा मूंजि",
भारी घंघतोळ मा पड़ि,
प्‍यारा घंघतोळ जी की तरौं,
कपाळि पकड़ि सोचणु छौ,
कै तैं लगौं गौळा.......
-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित
26.11.13

"ढुंगू बणिक"

मौज मा छौं हम,
अपणु मुल्‍क छोड़िक,
सच बोला त,
सच्‍चा नाता रिस्‍ता,
धागा जन तोड़िक,
भटकणा भि छौं,
अटकणा भी,
कुजाणि केका बाना,
एक दिन आलु,
आस औलाद हमारी,
हमारा जाण का बाद,
हमारा निब्‍त,
एक ढुंगू उठैक,
वे मुल्‍क ल्‍हिजालि,
ऊ भि सोच्‍ला,
हम्‍न अपणौं तैं,
ढुंगा का रुप मा,
अपणु पित्र बणैक,
पित्रकूड़ी थरप्‍यालि,
चला मन्‍न का बाद,
"ढुंगू बणिक",
अपणा मुल्‍क त रौला.....

-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं ब्‍लाग पर प्रकाशित
28 नवम्‍बर-2013

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