Monday, December 31, 2012

"संकल्प नयाँ साल फर"


भुला, भुल्यौं, दिदा, दिद्यौं,
मंगलमय हो आपतैं,
बल नयुं साल-2013,
बद्रीविशाल जी की कृपा सी,
जुगराजि रयन,
हमारू कुमाऊँ- गढ़वाळ,
दनकदु रयन आप,
प्रगति पथ फर,
चढ़दु रयन ऊकाळ....

कामना छ मँहगाई कम हो,
नेतौं तैं सदबुध्धि आऊ,
जनु ऐंसु का साल ह्वै,
यनु अनर्थ कब्बि न हो,
काल चक्र कैका बस मा,
नि होंदु बल,
प्रकृति कू नियम छ,
होंणी हो खाणी हो,
कामना कवि "जिज्ञासु" की.....

गढ़वाळी मा लिखणु छौं,
तुम भी लिख्यन बोल्यन,
अपणा नौना नौनी,
जरूर सिखैन लिखणु बोन्नु,
गढ़वाळी, कुमाऊनी, जौनसारी,
कृपा होलि तुमारी,
आप एक उत्तराखंडी छन,
बोली भाषा कू,
सम्मान अर सृंगार,
संकल्प नयाँ साल फर.......

-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
नव वर्ष फर शुभकामनाओं सहित उत्तराखंडी समाज तैं समर्पित मेरी या गढ़वाळी कविता
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं ब्लॉग पर प्रकाशित 31.12.12
11.30 ( रात्रि)
  

Thursday, December 20, 2012

"हे कलम"



मेरे मन के भावों को,
कागज पर उतारकर,
कहती है तू,
भाषा का सम्मान करो,
माता पिता,
गंगा और हिमालय,
उत्तराखंड आलय,
इनका आदर करो...


भाषा और संस्कृति,
जब तक आपकी,
जिन्दा रहेगी,
हे कवि "जिज्ञासु",
मैं आपकी प्रिय कलम,
सदा यही कहूँगी....


आपकी और मेरी,
मित्रता कायम रहे,
पहुंचे संदेश जन जन तक,
भाषा और संस्कृति के,
सम्मान और सृंगार का,
आपकी प्रिय मित्र,
कलम यही कहे
अनुभूतिकर्ता: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"

सर्वाधिकार सुरक्षित एवं कविमित्र श्री प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल जी के
तस्वीर क्या बोले के तहत "लेखनी" के रेखाचित्र पर रचित मेरी ये कविता
दिनांक: 21.12.2012









Wednesday, December 19, 2012

"प्यारी ब्वै"


जख भी होलि स्वर्ग मा,

स्वर्गवासी ब्वै,

जै दिन स्वर्ग सिधारि,

छक्किक रोयौं मन मा,

मन भौत उदास ह्वै

बचपन मा,

घुडौंन गोया लगैक,

कुजाणि कब हिटण लग्यौं,

तेरी ममता की छाया मा,

कुजाणि कब बड़ु होयौं,

नखरि भलि सदानि,

बार त्यौहार कौथिग फर,

अपणा हातुन खलाई ,

मन मारी अपणु,

खौरी भि भौत खाई

जब तक "प्यारी ब्वै",

यीं धरती मा,

डाळी कू सी छैल बणिक,

मेरा दगड़ी रै,

हँसी ख़ुशी जिंदगी बिति,

मन उदास नि ह्वै

अनुभूतिकर्ता-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"

सर्वाधिकार सुरक्षित एवं ब्लॉग पर प्रकाशित

19.12.12

मलेेथा की कूल