Monday, April 11, 2016

नौ गरै....



जै मनखि का शांत होन,
खूब होन्दि खाणी बाणी,
बिफरि जान्दा जब,
तब होन्दि टोटग ऊताणि.....


देखणा होला उत्तराखंड मा,
तौंका मन की नि जाणी,
करग्यन अपणा मन की,
ह्रवैग्यन अब गाणि स्याणि....


शनि गरै की नजर त,
होन्दि छ भारी बिकामि,
भुग्तदु रै जान्दु मनखि,
मति भी ह्रवै जान्दि निकामि....


हे भगवान! कै मनखि का,
खराब नि होयां चैन्दा गरै,
तब ह्रवै जान्दि मनखि कू,
सब जगा बिटि हरै तरै....


कवि छौं, कबलाट लग्दु,
कै फर असंद छ औणि,
हे यूं नौ गरै की माया,
क्या कुदिन छ दिखौणि.......


-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू,
ग्राम-बागी नौसा, पट्टी-चंद्रवदनी,
टिहरी गढ़वाळ(उत्तराखंड)
दूरभाष: 09654972366
दिनांक 5.4.2016

किलक्वार....



मान्न लग्यां था रात मा,
मैंन पूछि कू होला?
बतौन्दारौन बताई,
बिचारौं की आत्मा,
भटकणि छन बल,
ज्यूंदा ज्यु,
किलैकि ऊंका मन की,
नि ह्रवै सकि,
हे राम! ऊ हिछन,
किलकणा रात मा.....
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू,
दिनांक 5.4.2016

गुरौं न पाळा.....



तड़कौन्दा छन,
बात समझ नि औणि,
देखणा होला उत्तराखंड तैं,
व्यथा छ वेकी बतौणि?


हात काटिक दिनि था तुम्न,
सी छन मौज मनौणा,
आस तुमारी मार्यालि तौन,
अपणि मवासि बणौणा.....


पाड़ कू बिकास तौन नि कन्न,
अजौं भी चेति जावा,
बजेंदा उत्तराखंड कू तुम,
हातुन भाग बणावा.......


गेर भरेणि निछन तौंकी,
दूध कतै न पिलावा,
तौंका बिस सी दूर रयन तुम,
अजौं भी बिंगि जावा.....


दुमुख्या छन गिच्ची तौंकी,
तुमतैं छन भरमौन्दा,
बंजेदा पहाड़ की छ्वीं सी,
मन सी तब बिसरौन्दा.....


वंत सी अलग दिखेन्दा,
मिलि जुलिक खांदा,
खांदि बग्त पांची आंग्ळा,
जन दगड़ा ह्रवै जांदा......


गुरौं न पाळा भला का खातिर,
तौं तैं किनारा लगावा,
पहाड़ का होनहार ज्वानु तैं,
पहाड़ की डोर थमावा......


-जगमोहन सिंह जयाड़ा 'जिज्ञासू',
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी- चंदवदनी,टिहरी गढ़वाळ, उत्तराखंड।

सेंटुला.....




सोचणा छन,
हम पिछ्नै किलै रौं,
मूल उत्तराखंडी छौं,
राजनीति मा जौं,
उत्तराखंड़यौं का सुपिना,
सच करि जौं,
सेंटुलौं की बात फर,
यकीन होणु छ,
किलैकि पाड़ मा,
सेंटुलौं की संख्या,
अति बात छ,
मनख्यौं का बजाय,
पहाड़ का विकास की,
चाबी तौंका हात छ......

-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू,
मेरा कविमन कू कबलाट,
दिनांक 29.3.2016

मलेेथा की कूल