Saturday, March 30, 2013

"चले जाने से पहले"


जिंदगी जीने के लिए जिन्दा हैं,
जायेंगे एक दिन आपके कंधों पर,
करण वश जो कंधा न दे सकेंगे,
सुनकर खबर हमारी,
इस धरती से चले जाने की,
कैसा महसूस करेंगे?
जरूर लिखना कलम से अपनी,
जीते जी जान लेते हैं,
जाने के बाद क्या पता लगेगा,
मन की बात बता दो मित्रों,
"चले जाने से पहले"
कवि "जिज्ञासु" की जिज्ञासा है।

-जगमोहन सिंह जयाड़ा  "जिज्ञासु"
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित
30.3.13

 

Friday, March 29, 2013

"वीं भग्यान की कृपा सी"


टिहरी  गढ़वाल  मा,
चन्द्रबदनी मंदिर का धोरा,
त्यूंसा, ज्वान्या, कटारचोट की,
तड़तड़ी ऊकाळ जनि,
अपणि जिंदगी मा मैं,
वीं भग्यान की कृपा सी,
सदानि चुल्घच्चोर्य़ा बणयुं  रयौं,
सच बोलों सुखि रयौं,
याद रख्यन आप भी,
सुखि जिंदगी का खातिर,
यू एक राम बाण छ,
जीवन साथी की कैद सी,
तुम्न कख जाण छ,
प्रयोग जरूर कर्यन,
हम त सुखी छाँ,
"वीं भग्यान की कृपा सी"......

-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
रचना सर्वाधिकार सुरक्षित व प्रकाशित
30-.3.13
www.jagmohansinghjayarajigyansu.blogspot.com

"खबरदार! खबर छ"


हमारा उत्तराखंड मा,
दारू ठेका का आवेदक,
मर्दु सी ज्यादा जनानी छन,
कनु बांजा पड़ि जमानु,
जबकि मद्यनिषेद आन्दोलन,
कबरि पहाड़ की महिलाओं की,
एक महान उपलब्धि थै....

कखि प्रधान पति की तरौं,
नाम की प्रधानी,
या एक चाल त निछ,
नाम की ठेक्केदानी,
काम पति परमेश्वर जी कू,
वन भी उत्तराखंड मा अब,
दारू की गंगा भी बग्दि छ,
दारू की तीस लग्दि छ,
जब सूर्य होन्दु अस्त,
मेरा मुल्क का मनखि मस्त...

चला क्वी बात निछ,
ठेक्कौं सी पैंसा आलु,
नेता,अफसर,ठेक्केदारू कू,
कैकु त विकास होलु,
हे उत्तराखंड की जनता,
तू निचंत करिक सेयीं छैं,
घर गौं बंजेणा छन,
तेरु उत्तराखंड ऊताणदंड,
"खबरदार! खबर छ"...

-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं  प्रकाशित,
दूरवार्ता यन्त्र संख्या: 09654972366
29.3.13

"कनु जमानू थयौं ऊ"

खटमलुन खयौं मैं,
ऊपाणौन तड़कयौं,
दगड़यौन भतगयौं
अर हौड़ हौड़ फरकयौं,
कनु जमानू थयौं ऊ,
आज भूली गयौं.....

पक्याँ आम खूब खैन,
गोरू चरौंण गयौं,
सारी फुंड फाळ मारी,
बिट्टा ऊद फर्केयौं,
कनु जमानू थयौं ऊ,
आज भूली गयौं......

उकाळी भि  हिटयौं,
अर उद्यारी भि गयौं,
बोझ भारू बोकि खूब,
खेल कौथिग गयौं,
कनु जमानू थयौं ऊ,
आज भूली गयौं......

एक दिन यनु आई,
गढ़वाळ की गाड़ी मा बैठि,
वे प्यारा पहाड़ छोड़ी,
हिंदुस्तान का दिल मा अयौं,
आज मैकु याद औन्दि,
कनु जमानू थयौं ऊ,
आज भूली गयौं......

-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित
29.3.13


Monday, March 25, 2013

"दगड़यौं मेरी जन्मभूमि"

जैं धरती मा मैं पैदा होयौं,
तैं धरती माँ कू मैं शत्त शत्त प्रणाम करदु,
ये उत्तराखंड अपणा गढ़वाळ देवी देब्ता,
घर गौँ धार खाळ जख छन ऊंका मंडुला,
मन सी ऊंकू प्रणाम करदु ध्यान लगौंदु।
 
अपणा माँ बाप सी दूर,
द्व़ी पैंसा कमौण का खातिर,
जू मैं अपणु गढ़वाळ छोड़ी,
वे प्यारा मुल्क मैं, 
कब्बि नि भूली सकदु,
मेरी रग रग मा आज बस्युं छ।
 
लोगुन बोलि परदेश जवा,
अर पैंसा खूब कमावा,
पैंसा हर क्वी कमै देन्दु,
माँ बाप कमौणु,
सबसि मुश्किल होन्दु,
आज मेरा ब्वे बाब,
यीं दुनिया मा निछन।
 
नौकरी का खातिर,
हम्न सब्बि धाणी ख्वै,
मन भौत उदास ह्वै,
घर गौं ब्वे बाब की याद ऐ,
बिराणा मुल्क परदेश मा,
मन हताश निराश रै।
 
आज अपणु गढ़वाळ छोड़यालि,
जौन हमतैं पाली पोषिक बडु बणाई,
ऊँ तैं द्वी घड़ी कू प्यार नि दी सक्यौं,
अब त दगड़यौं मन मा एक ही बात छ,
अपणा गढ़वाळ घर गौं लौटिक,
कुछ यनु अनोखु विकास कू काम करौं,
जन्मभूमि कू अपणा हातुन श्रींगार हो, 
मैं फर मेरी पराण सी प्यारी जन्मभूमि तैं,
दगड़यौं गर्व हो अर मेरी मन इच्छा पूरी हो,
-मनमोहन सिंह जयाड़ा सुपुत्र जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित 25.3.13 

Monday, March 18, 2013

कवि दिल कैसा होता है?



किसी ने पूछा,
कवि नजर से,
मैंने कहा,
आल इन वन,
पागल भी, घायल भी,
टूटता है तो दिखता नहीं,
सबकी संवेदनाओं को,
पत्थर और पहाड़ की भी,
आत्मसात करता है,
कवि की कलम को,
कविता के रूप में,
व्यक्त करने को कहता है,
माँ सरस्वती के आशीर्वाद से,
मुझ जैसा पागल,
जिज्ञांसा के वशीभूत हो,
प्रिय कविताओं की चाहत में,
दिल से सृजन करता है।

-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
सर्वाधिकार सुरक्षित अवं प्रकाशित
18.3.2013














Wednesday, March 13, 2013

"न फरक्यौ"



भेळ ऊद, हे! भुला,
तेरा होणी खाणी का दिन छन,
सोच अपणि जिंदगी का बारा मा,
जिंदगी मा जू सुखि रण चांदु,
ज्वानि का दिन सुदि न बितौ,
जू फिर बौड़िक नि औन्दा,
जब बिति जान्दा,
आँखौं मा तरबर आंसू ल्हयौन्दा.

बग्दु पाणी धौळयौं कू,
आँखौंन देखि होलु त्वैन,
जू सदानि का खातिर बगि जांदु,
तेरा पहाड़ का काम नि औन्दु,
तनि तेरी ज्वानि छ,
बिति जालि फेर तेरा के काम की,
"न फरक्यौ" जाणि बूझिक.

-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं ब्लॉग पर प्रकाशित
13.3.13

मलेेथा की कूल