Thursday, January 16, 2014

देव्‍तौं का धाम मा....


यनु किलै ह्वै,
भागीरथी, मंदाकनिन,
अपणा बग्‍दा बाटा का,
न्‍यौड़ु धेारा फुंड,
मोळ माटु करि,
विकराळ रुप धारी,
सब कुछ बगै,
होन्‍दु खान्‍दु मनखि,
बेसहारा ह्वैक,
सब कुछ गंवैक,
गम का आंसू का घूटी,
बुकरा बुकरी रोन्‍दु,
भारी ऊदास ह्वै.....
दिन आला जाला,
दिल मा लग्‍यां घौ,
मेरा मुल्‍क का मनखि,
सैत भूली जाला,
पर सोचण वाळी बात,
यछ मुल्‍की मनख्‍यौं,
पहाड़ खाली होणु,
वख रयां कुछ,
जिंदगी बितौणा मनखि,
प्रकृति की मार सी डरी,
परदेसु जथैं जाला,
किलैकि वै तैं,
देव्‍तौं का धाम मा,
पैदा होयां हालात,
दिन रात डराला.....
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
 
सर्वाधिकार सुरक्षति एवं ब्‍लाग पर प्रकाशित
 
3.12.2013
 

ब्‍यो बरात मा.......


हमारा पहाड़, छयिं छ दारु,

रंगमता ह्वैक, मैमान भी बोल्‍दा,

धन धन भाग हमारु.....



बर ब्‍यौला का बुबाजी,

लग्‍यां दारु का जुगाड़ मा,

यू नयुं रिवाज छैगि,

आज हमारा पहाड़ मा....



सूर्य अस्‍त पहाड़ मस्‍त,

आज सार्थक ह्वैगि,

हमारा पहाड़ कू, हरेक मनखि,

दारु की चपेट मा ऐगि....



होणी खाणी का लक्षण,

यी निछन दिखेणा,

बैंड अर डीजे की धुन फर,

सब्‍बि छन बौळेणा....



किस्‍सा फर हात कोचिक,

गौं का मनखि, खुश छन होणा,

काम काज मा, सहयोग नि करदा,

ध्‍याड़ी फर ल्‍हयां मनखि,

खाणौं बणौणा, भांडा मठौणा

ब्‍यो बरात मा.....

 

-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु

सर्वाधिकार सुरक्षित एवं ब्‍लाग पर प्रकाशित

6.12.13

ब्‍यो बरात मा......


हमारा पहाड़, छयिं छ दारु,

रंगमता ह्वैक, मैमान भी बोल्‍दा,

धन धन भाग हमारु.....



बर ब्‍यौला का बुबाजी,

लग्‍यां दारु का जुगाड़ मा,

यू नयुं रिवाज छैगि,

आज हमारा पहाड़ मा....



सूर्य अस्‍त पहाड़ मस्‍त,

आज सार्थक ह्वैगि,

हमारा पहाड़ कू, हरेक मनखि,

दारु की चपेट मा ऐगि....



होणी खाणी का लक्षण,

यी निछन दिखेणा,

बैंड अर डीजे की धुन फर,

सब्‍बि छन बौळेणा....



किस्‍सा फर हात कोचिक,

गौं का मनखि, खुश छन होणा,

काम काज मा, सहयोग नि करदा,

ध्‍याड़ी फर ल्‍हयां मनखि,

खाणौं बणौणा, भांडा मठौणा

ब्‍यो बरात मा.....

 

-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु

सर्वाधिकार सुरक्षित एवं ब्‍लाग पर प्रकाशित

6.12.13

कनु थौ कनु ह्वैगि आज......


कनु थौ कनु ह्वैगि आज,
बदलिग्‍यन तैका मिजाज,
क्‍यौकु ह्वै होलु यनु,
मन मा भारी,
घंघतोळ होयुं,
हे जी क्‍या होलु अब....
क्‍वी बोन्‍ना छन,
निखाण्‍या ह्वैगि,
क्‍वी बोन्‍ना छन,
बल निहोण्‍यां,
क्‍वी बोन्‍ना छन,
अफु सनै,
बडु़ भारी समझदु,
जनु भि बोला,
अपणु हिछ.....
क्‍यौकु बदलि जांदा मनखि,
सोचा दौं मेरा भै बन्‍धो,
द्वी दिन की जिंदगी या,
हंसी खुशी सी रौला,
गीत अपणि जल्‍मभूमि का,
जख भि रौला, खूब गौला....
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु,
सर्वाधिकार सुरक्षति एवं ब्‍लाग पर प्रकाशित
26.12.13
 

धार मा बैठि...


टक्‍क लगैक,

एक दिन,

देखण लगिं थै वा,

मैंन भि देखि झळकैक,

मुल हैंसि वा,

मैं भि हैंस्‍यौं,

ज्‍यु पराण हमारु,

बथौं बणिक तब,

ऊड़दु गै ऊंचि डांड्यौं मा,

कुळैं की डाळी झूलि तब,

बोली वींकु वींन,

तू छैं हे मेरी दगड़्या,

मैन तेरा मन की बात,

हे चुचि मैंन बिंग्‍यालि,

क्‍या सोचणि छैं,

धार मा बैठि.....

 

-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु

सर्वाधिकार सुरक्षति एवं ब्‍लाग पर प्रकाशित

03.01.2014

ह्युंद का मैना...



आग तापिक,

घाम तापिक,

दिन कटणा छन,

थर थर कौंपदु गात सैडु,

क्‍यापर होयुं मन,

ढिक्‍याण पेट,

न्‍युं च्‍युं बणिक,

कब तक रौला,

काम काज,

कन्‍न्‍ा हि पड़दु,

नितर क्‍या खौला,

ह्युंद का मैना,

लग्‍यां छन,

ज्‍यु कनु छ,

ऊंचि धार ऐंच बैठि,

छक्‍किक घाम तापौं,

तुम भि होला,

यनु सोचणा,

खराण्‍यां ह्युंद का मैना...

 

-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु

सर्वाधिकार सुरक्षित एवं ब्‍लाग पर प्रकाशित

15.1.2014

मलेेथा की कूल