देख्दु जावा तुम, कुछ दिन की बात छ,
वे प्रभु का हाथ छ,
होलि कृपा जू तुमारी,
नेता बणि जौलु रे-नेता बणि जौलु...
जीती जौलु जब,
झट पट्ट मैं भी, वे प्यारा देरादूण,
विधान सभा मा जौलु रे,
नेता बणि जौलु रे-नेता बणि जौलु...
जीती जौलु जब,
चलि जौलु प्रतिनिधि बणि, पहाड़ सी दूर,
सदानि मन मा ख्याल, तुमारु रलु रे,
नेता बणि जौलु रे-नेता बणि जौलु...
जीती जौलु जब,
पूरा पांच साल, देहरादून रौलु रे,
सच छौं बोंनु, पहाड़ औलु रे,
नेता बणि जौलु रे-नेता बणि जौलु...
जीती जौलु जब,
ये पहाड़ जब आलि, आफत तुम फर,
सच छौं बोंनु, देखण औलु रे,
नेता बणि जौलु रे-नेता बणि जौलु...
जीती जौलु जब,
तुमारी आंख्यौं कू मैं,
तारु बणि जौलु रे, बौड़ी बौड़ी औलु रे,
नेता बणि जौलु रे-नेता बणि जौलु...
तुमारा हाथु कू साथ,
पिठैं अर फूल पात,
याँ सी क्या छ भलि बात,
हे! तब नेता बणि जौलु रे,
तुमारु सेवाकार रौलु रे.....
नेता बणि जौलु रे-नेता बणि जौलु...
कवि: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित २७.१.२०१२)
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गढ़वाळि कवि छौं, गढ़वाळि कविता लिख्दु छौं अर उत्तराखण्ड कू समय समय फर भ्रमण कर्दु छौं। अथाह जिज्ञासा का कारण म्येरु कवि नौं "जिज्ञासू" छ।दर्द भरी दिल्ली म्येरु 12 मार्च, 1982 बिटि प्रवास छ। गढ़वाळि भाषा पिरेम म्येरा मन मा बस्युं छ। 1460 सी ज्यादा गढ़वाळि कवितौं कू मैंन पाड़ अर भाषा पिरेम मा सृजन कर्यालि। म्येरी मन इच्छा छ, जीवन का अंतिम दिन देवभूमि उत्तराखण्ड मा बितौं अर कुछ डाळि रोपिक यीं धर्ति सी जौं।
Thursday, January 26, 2012
Wednesday, January 25, 2012
"प्यारा पहाड़ मा"
अस्पताळ मा डाक्टर,
स्कूल मा बल मास्टर,
निछन-निछन,
कनुकै होलु ईलाज,
कनुकै पढला नौना-नौनी,
कनुकै होलु?
उत्तराखंड कू विकास,
ज्व छ, सबका मन की आस,
करा हे! आप सब्बि विचार,
ये काम का खातिर चैन्दी,
साफ सुथरी सरकार,
पर्वतजन तुम जागा,
अपणा विकास की खोज मा,
भौं कखि न भागा,
रुका-रुका-रुका,
पहाड़ मा....
कवि: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित)
दिनांक: २५.१.२०१२
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स्कूल मा बल मास्टर,
निछन-निछन,
कनुकै होलु ईलाज,
कनुकै पढला नौना-नौनी,
कनुकै होलु?
उत्तराखंड कू विकास,
ज्व छ, सबका मन की आस,
करा हे! आप सब्बि विचार,
ये काम का खातिर चैन्दी,
साफ सुथरी सरकार,
पर्वतजन तुम जागा,
अपणा विकास की खोज मा,
भौं कखि न भागा,
रुका-रुका-रुका,
पहाड़ मा....
कवि: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित)
दिनांक: २५.१.२०१२
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Monday, January 23, 2012
"प्रिय घन्ना भाई"
आंख्यौं सी दूर,
बस्याँ रन्दन,
जू आँखौं मा,
उत्तराखंडी भै बन्धु का,
जौंकु मिजाज, मन मा,
कुतग्याळि लगौण्यां छ,
पर मन मा,
एक टक्क सी लगिं छ,
कना होला अजग्याल,
जीत का जंजाळ मा,
वे प्यारा गढ़वाळ मा,
बसिं होलि जौंका मन मा,
एक ही बात,
हास्य अभिनेता छौं,
हे! नेता बणै देवा,
मैकु जितै देवा,
नेता बणि जौलु,
आपका दुःख दर्द सब्बि,
तुमारा मन की सुपन्याळि,
योजना ल्हेक, साकार करिक,
विकास की जोत जगौलु,
गढ़वाळ कू,
"प्रिय घन्ना भाई".......
रचनाकर: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित)
दिनांक: २३.१.२०१२
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बस्याँ रन्दन,
जू आँखौं मा,
उत्तराखंडी भै बन्धु का,
जौंकु मिजाज, मन मा,
कुतग्याळि लगौण्यां छ,
पर मन मा,
एक टक्क सी लगिं छ,
कना होला अजग्याल,
जीत का जंजाळ मा,
वे प्यारा गढ़वाळ मा,
बसिं होलि जौंका मन मा,
एक ही बात,
हास्य अभिनेता छौं,
हे! नेता बणै देवा,
मैकु जितै देवा,
नेता बणि जौलु,
आपका दुःख दर्द सब्बि,
तुमारा मन की सुपन्याळि,
योजना ल्हेक, साकार करिक,
विकास की जोत जगौलु,
गढ़वाळ कू,
"प्रिय घन्ना भाई".......
रचनाकर: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित)
दिनांक: २३.१.२०१२
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Friday, January 20, 2012
"पहाड़ की पिड़ा"
दूर भागणा छन,
प्यारा पर्वतजन,
पहाड़ सी, कुजाणि किलै?
दुःख दुयौं का मन मा छ,
पहाड़ का भी,
अर पर्वतजन का भी,
आपसी रिश्ता का कारण....
मनखी कू मन बदलि सकदु,
पहाड़ कू कतै ना,
दुःख देणी छन जैकु,
विकास की परियोजना,
जौमा विनाश भी लुक्युं छ,
जू पर्वतजन का खातिर भी,
भलि निछन बल,
नितर किलै भागदा,
पर्वतजन, पहाड़ सी दूर,
क्या देणी छन,
यी परियोजना पर्वतजन तैं,
सिर्फ विस्थापन अर पलायन,
रोजगार कथगा?
पर्वतजन अर पहाड़,
दुयौं कू सतत विकास हो,
अतीत कू रिश्ता कायम रौ,
मन की पीड़ा दूर हो,
कामना छ मेरा कविमन की,
प्यारा "पहाड़ की पिड़ा" दूर हो,
बद्रीविशाल जी की कृपा हो.....
रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित)
दिनांक: २०.१.२०१२
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प्यारा पर्वतजन,
पहाड़ सी, कुजाणि किलै?
दुःख दुयौं का मन मा छ,
पहाड़ का भी,
अर पर्वतजन का भी,
आपसी रिश्ता का कारण....
मनखी कू मन बदलि सकदु,
पहाड़ कू कतै ना,
दुःख देणी छन जैकु,
विकास की परियोजना,
जौमा विनाश भी लुक्युं छ,
जू पर्वतजन का खातिर भी,
भलि निछन बल,
नितर किलै भागदा,
पर्वतजन, पहाड़ सी दूर,
क्या देणी छन,
यी परियोजना पर्वतजन तैं,
सिर्फ विस्थापन अर पलायन,
रोजगार कथगा?
पर्वतजन अर पहाड़,
दुयौं कू सतत विकास हो,
अतीत कू रिश्ता कायम रौ,
मन की पीड़ा दूर हो,
कामना छ मेरा कविमन की,
प्यारा "पहाड़ की पिड़ा" दूर हो,
बद्रीविशाल जी की कृपा हो.....
रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित)
दिनांक: २०.१.२०१२
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Wednesday, January 18, 2012
"खासपट्टी मा खास"
तीन शूरमा, पूर्वमंत्री,
चुनाव अखाड़ा मा छन,
मन मा जीत की आस,
अपणु भाग अजमौण लग्याँ,
हे! जनता तेरी जय हो,
जाण लग्याँ ऊँका पास.....
जनता बोन्नि,
याद ऐगी हमारी,
घर गौं भी ऐगी याद,
आज देखणा छौं,
मुखड़ी तुमारी,
कै बरसु का बाद........
सत्ता कू सुख चाख्यलि,
भूलिग्याँ हमारू उपकार,
अब त ह्वैगे होलु,
आपकी गरीबी कू उद्धार.....
प्रिय प्रत्याशियौं,
हम्न दिनि,
आप सब्ब्यौं तैं मौका,
आज भी घंघतोळ मा छौं,
हम खासपट्टी का गौं का.....
माँ चन्द्रबदनी का दर्शन करा,
रखा मन मा जीत की आस,
टटोळा मन प्रिय जनता कू,
जौंका मन मा विकास की आस,
जू छन "खासपट्टी मा खास".......
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित)
रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
१८.१.२०१२
चुनाव अखाड़ा मा छन,
मन मा जीत की आस,
अपणु भाग अजमौण लग्याँ,
हे! जनता तेरी जय हो,
जाण लग्याँ ऊँका पास.....
जनता बोन्नि,
याद ऐगी हमारी,
घर गौं भी ऐगी याद,
आज देखणा छौं,
मुखड़ी तुमारी,
कै बरसु का बाद........
सत्ता कू सुख चाख्यलि,
भूलिग्याँ हमारू उपकार,
अब त ह्वैगे होलु,
आपकी गरीबी कू उद्धार.....
प्रिय प्रत्याशियौं,
हम्न दिनि,
आप सब्ब्यौं तैं मौका,
आज भी घंघतोळ मा छौं,
हम खासपट्टी का गौं का.....
माँ चन्द्रबदनी का दर्शन करा,
रखा मन मा जीत की आस,
टटोळा मन प्रिय जनता कू,
जौंका मन मा विकास की आस,
जू छन "खासपट्टी मा खास".......
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित)
रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
१८.१.२०१२
Sunday, January 15, 2012
"ऊँचि निसि डाँडी-काँठी"
ऐंसु का ह्युंद ह्यून छयिं छन,
जख जान्दु छ कल्पना मा,
हमारू तुमारु मयाळु मन,
दूर परदेश जू भै बन्ध होला,
होलि याद औणि ऊँ तैं,
उदास भी होला होण लग्यां,
यनु सोचि मन मा,
हे ! हमारा प्यारा पहाड़,
हम्न क्या कन्न.....
प्यारी हिंवाळि डांडी काँठी,
मनमोहक छन हमारा मुल्क,
होलि जख फुंड घुघती प्यारी,
हिटणि ठण्डु मठु सुरक सुरक,
दादा जी कू ह्वक्का कुड़-कुड़,
गौथु की डिग्ची चुल्ला मा,
होलि थिड़कणि थिड़-थिड़,
होलु बोडा कोदा की रोठठी,
घर्या घ्यू का दगड़ा खाणु,
नाती नतणौ कथा सुणौणु,
कथगा स्वाणि होलि लगणि,
"ऊँचि निसि डाँडी-काँठी"....
रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित)
१६.१.२०१२, www.pahariforum.net
जख जान्दु छ कल्पना मा,
हमारू तुमारु मयाळु मन,
दूर परदेश जू भै बन्ध होला,
होलि याद औणि ऊँ तैं,
उदास भी होला होण लग्यां,
यनु सोचि मन मा,
हे ! हमारा प्यारा पहाड़,
हम्न क्या कन्न.....
प्यारी हिंवाळि डांडी काँठी,
मनमोहक छन हमारा मुल्क,
होलि जख फुंड घुघती प्यारी,
हिटणि ठण्डु मठु सुरक सुरक,
दादा जी कू ह्वक्का कुड़-कुड़,
गौथु की डिग्ची चुल्ला मा,
होलि थिड़कणि थिड़-थिड़,
होलु बोडा कोदा की रोठठी,
घर्या घ्यू का दगड़ा खाणु,
नाती नतणौ कथा सुणौणु,
कथगा स्वाणि होलि लगणि,
"ऊँचि निसि डाँडी-काँठी"....
रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित)
१६.१.२०१२, www.pahariforum.net
Wednesday, January 11, 2012
नदी
जो निरंतर बहती है,
अपने पथ की ओर,
सागर की तलाश में,
उसके तट पर बसे,
इंसानों के आवास,
शहर और गाँव,
जो पाते हैं नदी से,
निर्मल जल,
इंसान करते हैं उसको,
प्रदूषित, न जाने क्योँ?
नदी बिना प्रतिकार किये,
बहती रहती है निरंतर,
क्यौंकि उसे बहते रहना है.
रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु" )
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित
11.1.2012
अपने पथ की ओर,
सागर की तलाश में,
उसके तट पर बसे,
इंसानों के आवास,
शहर और गाँव,
जो पाते हैं नदी से,
निर्मल जल,
इंसान करते हैं उसको,
प्रदूषित, न जाने क्योँ?
नदी बिना प्रतिकार किये,
बहती रहती है निरंतर,
क्यौंकि उसे बहते रहना है.
रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु" )
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित
11.1.2012
Friday, January 6, 2012
हे नेता जी....
फिर एग्यैं तुम,
पांच साल पूरा करिक,
अपणि अर प्यारा चम्चौं की,
पापी पोटगी भरिक,
हम सनै क्या मिलि?
तुम सनै वोट दीक.......
अबरीं दां हम,
तुमारी मीठी बातु मा,
बिल्कुल नि औण्या,
उबरी त बोलि थै बात,
आपन मन भरमौण्या,
कथगा करि आपन,
हमारा गौं मुल्क कू विकास,
पिछला पांच साल मा,
गौं खाली ह्वैगी हमारू,
हम होयां छौं निराश.....
कुछ भि बोला,
भलु न ह्वान तुमारू,
तुम्न खाई हमारू,
हम तुम्तैं वोट द्योला,
कतै न रख्यन सारू,
तुम जूठा,अबिस्वासी,
दुबारा जीत कू सुपिनु न देखा,
पाप धोण का खातिर,
चलि जवा तुम अब,
हे नेता जी, गया अर काशी...
(रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु" )
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित
6.1.2012
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पांच साल पूरा करिक,
अपणि अर प्यारा चम्चौं की,
पापी पोटगी भरिक,
हम सनै क्या मिलि?
तुम सनै वोट दीक.......
अबरीं दां हम,
तुमारी मीठी बातु मा,
बिल्कुल नि औण्या,
उबरी त बोलि थै बात,
आपन मन भरमौण्या,
कथगा करि आपन,
हमारा गौं मुल्क कू विकास,
पिछला पांच साल मा,
गौं खाली ह्वैगी हमारू,
हम होयां छौं निराश.....
कुछ भि बोला,
भलु न ह्वान तुमारू,
तुम्न खाई हमारू,
हम तुम्तैं वोट द्योला,
कतै न रख्यन सारू,
तुम जूठा,अबिस्वासी,
दुबारा जीत कू सुपिनु न देखा,
पाप धोण का खातिर,
चलि जवा तुम अब,
हे नेता जी, गया अर काशी...
(रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु" )
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित
6.1.2012
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"दरोळु"
जैकु लोग भलु नि बोल्दा,
किलै होलि पिनी?
यनु भी नि सोचदा....
आज दुनिया पेणी छ,
लुकाँ-ढकाँ अर देखाँ,
ब्यो बारात मा,
दिन हो या रात मा,
कै भी शुभ काम मा,
फेर निचंत करिक सेणी छ....
दुख मा दारू, सुख मा दारू,
अनुसरण कन्नु छ,
सभ्य समाज हमारू,
जबकि पैलि लोग,
कतै नि पेंदा था दारू,
तब विकसित नि थौ,
उत्तराखंडी समाज हमारू.....
क्या बोन्न तब,
आज का युग मा,
दारू हिछ सारू,
"दरोळु" त बोल्दु छ,
हौर ल्हवा रे दारू......
(रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")
6.1.2012
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित
www.pahariforum.net
किलै होलि पिनी?
यनु भी नि सोचदा....
आज दुनिया पेणी छ,
लुकाँ-ढकाँ अर देखाँ,
ब्यो बारात मा,
दिन हो या रात मा,
कै भी शुभ काम मा,
फेर निचंत करिक सेणी छ....
दुख मा दारू, सुख मा दारू,
अनुसरण कन्नु छ,
सभ्य समाज हमारू,
जबकि पैलि लोग,
कतै नि पेंदा था दारू,
तब विकसित नि थौ,
उत्तराखंडी समाज हमारू.....
क्या बोन्न तब,
आज का युग मा,
दारू हिछ सारू,
"दरोळु" त बोल्दु छ,
हौर ल्हवा रे दारू......
(रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")
6.1.2012
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित
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Wednesday, January 4, 2012
क्या बोन्न हे "धाद"?
मन मा दुःख एक हिछ,
हमारू मुल्क,
प्यारू पहाड़,
पर्वतजन की बेरूखी सी,
होण लग्युं छ बर्बाद,
संस्कृति, तन अर मन,
तौंका बदलिग्यन आज,
आप भी प्रयासरत छन,
मन सी बिंगु जू समाज,
सब्बि जू यनु सोच्वन,
वक्त भी बोंनु छ आज,
मेरा कविमन की कामना,
सुमति प्रदान कर्वन,
सब्ब्यौं तैं बद्रीविशाल,
कालजई रौ हमारू,
कुमाऊँ अर गढ़वाल,
क्या बोन्न हे "धाद",
पराणु सी प्यारू पहाड़,
सदानि रौ आबाद.......
(रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु" ४.१२.२०१२)
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित,
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हमारू मुल्क,
प्यारू पहाड़,
पर्वतजन की बेरूखी सी,
होण लग्युं छ बर्बाद,
संस्कृति, तन अर मन,
तौंका बदलिग्यन आज,
आप भी प्रयासरत छन,
मन सी बिंगु जू समाज,
सब्बि जू यनु सोच्वन,
वक्त भी बोंनु छ आज,
मेरा कविमन की कामना,
सुमति प्रदान कर्वन,
सब्ब्यौं तैं बद्रीविशाल,
कालजई रौ हमारू,
कुमाऊँ अर गढ़वाल,
क्या बोन्न हे "धाद",
पराणु सी प्यारू पहाड़,
सदानि रौ आबाद.......
(रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु" ४.१२.२०१२)
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Tuesday, January 3, 2012
पहाड़
पहाड़ उजड़ रहा है,
मिट रहा है,
निराश हो रहा है,
अस्तित्व खो रहा है,
जिम्मेदार पर्वतजन हैं,
जो उससे दूर भाग रहे हैं...
सुना है दिल्ली मेट्रो के हीरो,
श्रीधरन अपने गाँव रहने के लिए,
रिटायरमेंट के बाद जा रहे हैं,
सबक है पर्वतजन के लिए,
कैसे आबाद रहेंगे,
उत्तराखंड के गाँव,
और प्यारे पहाड़,
कौन खोलेगा बंद किवाड़?
रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
ग्राम: बागी-नौसा, पट्टी-चन्द्रबदनी, टिहरी गढ़वाल, उत्तराखण्ड.
३.१२.२०१२See More
Vivek Patwal, Butola Kamal, Yashpal Singh Pundir and 6 others like this.
Manish Mehta नव वर्ष की पहली बेहतरीन कविता के लिए सुभकामनायें !
मनीष जी...
पहाड़ पर मेरी कविता,
आपके मन को भायी,
शायद पहाड़ की आपको,
बहुत याद आई,
कामना करें,
हमारा पहाड़ आबाद रहे,
हम सदा नहीं रहेंगे,
पर हमारा प्यारा उत्तराखंड,
जुग जुग तक आबाद रहे,
मेरा कविमन तो यही कहे,
आओ प्यारे पर्वतजन,
जन्मभूमि का सृंगार करें...
(रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")
Diwan Singh Kaintura happy new year
Shubham Chand kavita ache hai
मिट रहा है,
निराश हो रहा है,
अस्तित्व खो रहा है,
जिम्मेदार पर्वतजन हैं,
जो उससे दूर भाग रहे हैं...
सुना है दिल्ली मेट्रो के हीरो,
श्रीधरन अपने गाँव रहने के लिए,
रिटायरमेंट के बाद जा रहे हैं,
सबक है पर्वतजन के लिए,
कैसे आबाद रहेंगे,
उत्तराखंड के गाँव,
और प्यारे पहाड़,
कौन खोलेगा बंद किवाड़?
रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
ग्राम: बागी-नौसा, पट्टी-चन्द्रबदनी, टिहरी गढ़वाल, उत्तराखण्ड.
३.१२.२०१२See More
Vivek Patwal, Butola Kamal, Yashpal Singh Pundir and 6 others like this.
Manish Mehta नव वर्ष की पहली बेहतरीन कविता के लिए सुभकामनायें !
मनीष जी...
पहाड़ पर मेरी कविता,
आपके मन को भायी,
शायद पहाड़ की आपको,
बहुत याद आई,
कामना करें,
हमारा पहाड़ आबाद रहे,
हम सदा नहीं रहेंगे,
पर हमारा प्यारा उत्तराखंड,
जुग जुग तक आबाद रहे,
मेरा कविमन तो यही कहे,
आओ प्यारे पर्वतजन,
जन्मभूमि का सृंगार करें...
(रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")
Diwan Singh Kaintura happy new year
Shubham Chand kavita ache hai
Monday, January 2, 2012
"मनख्यौं का बोल"
ज्युकड़ा ऊद, सेळि सी पड़दि,
जू क्वी बोलु, भला बोल,
पर हे मनखी, सुदि नि बोन्नु,
मुख सी बुरा बोल....
कथगा चुभदी बुरी बात,
बोन्न सी पैलि, हे मनखी तू,
अपणा मन मा तोल,
कैकु मन दुखैक,
मन मा होंदु घंघतोळ.....
मनखी मरी मिटि जांदु,
रै जांदा वैका, भला बुरा बोल,
याद करदा छन तब मनखी,
"मनख्यौं का बोल".........
(रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु" २.१.२०१२)
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जू क्वी बोलु, भला बोल,
पर हे मनखी, सुदि नि बोन्नु,
मुख सी बुरा बोल....
कथगा चुभदी बुरी बात,
बोन्न सी पैलि, हे मनखी तू,
अपणा मन मा तोल,
कैकु मन दुखैक,
मन मा होंदु घंघतोळ.....
मनखी मरी मिटि जांदु,
रै जांदा वैका, भला बुरा बोल,
याद करदा छन तब मनखी,
"मनख्यौं का बोल".........
(रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु" २.१.२०१२)
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स्व. इन्द्रमणि बडोनी जी, आपन कनु करि कमाल, उत्तराखण्ड आन्दोलन की, प्रज्वलित करि मशाल. जन्म २४ दिसम्बर, १९२५, टिहरी, जखोली, अखोड़ी ग्राम, उत्...
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