Wednesday, December 30, 2015

पहाड़ की नारी.....


करदि छ धाण अपणि,
निभौन्‍दि छ जिम्‍मेदारी,
पहाड़ जनि अडिग,
उठौन्‍दि बोझ भारी.......
हंसी खुशी निब्‍टौन्‍दि धाण,
नि होन्‍दि मन सी ऊदास,
धारौं बिटि पाणी ल्‍हौन्‍दि,
बणु बिटि लाखड़ु घास.....

पहाड़ जनि जिंदगी मा,
खुशी खोजिक ल्‍हौन्‍दि,
दुख लुकैक सुख कू,
सदा अहसास करौन्‍दि.....
होणी खाणी का पिछ्नै,
समर्पित पहाड़ की नारी,
पहाड़ की उन्‍नति मा,
जौंकु सहयोग छ भारी.....
पहाड़ का श्रृंगार मा जौंकी,
जिंदगी खपि जान्‍दि,
भाग्‍य विधाता बणिक,
जीवन सुखी बणौन्‍दि......
समर्पित रैन सदानि,
उठैन सदानि कष्‍ट भारी,
शत शत नमन त्‍वैकु,
हे पहाड़ की नारी..........

दिनांक 30.12.15 

लुकण्यां अर भुकण्यां.....


पहाड़ का द्वी बुढ्या,
कुकरया अर बाग सिंह जौंकु नौं,
प्‍यारा पहाड़ मा छ जौंकु,
अपणु प्‍यारु गौं.....

दाना सयाणौं कू नौं नि लेन्‍दि,
वे गौं की ब्‍वारि,
बाग कु लुकण्‍यां कुकर कु भुकण्‍यां,
बोन्‍नु हायिं छ लाचारी.....
एक बोडा कू नौं छ बाग सिंह,
तब बाग कू बोल्‍दन लुकण्‍यां,
कुकरया दादा स्‍वर्गवासी छ,
पर कुकर कु बोल्‍दन भुकण्‍यां.....
नखरी भलि जनि भी होलि,
पहाड़ की परंपरा छ हमारी,
ये कारण सी नौं बर्जदिन,
गौं की सब्‍बि ब्‍वारि......
यीं परंपरा मा सम्‍मान की,
झलक सी छ दिखेणी,
दाना सयाणौं कू नौं तब,
ब्‍वारि निछन लेणी.......
जैं परंपरा मा मान सम्‍मान हो,
सिरोधार्य छ हमारी,
लुकण्‍यां अर भुकण्‍यां बोन्‍नु,
प्‍यारी परंपरा हमारी.........

दिनांक 22.12.15 श्रीनगर गढ़वाल

पाड़ की बिजली पाणी.....


दिल्‍ली मा खोज्‍दु ऐगि हम्‍तैं,
पाड़ की बिजली पाणी,
जागा हे मेरा उत्‍तराखण्‍ड्यौं,
तुम्‍न यनु भी जाणी......
अपणौ कू दर्द यनु हि होन्‍दु,
हम्‍न यनु नि जाणी,
हम्‍तैं खोज्‍दु किलै औणि,
पहाड़ की बिजली पाणी......
तीस बुझौणु पाणी हमारी,
बिजली अंधेरु भगौणि,
याद दिलौणा छन ऊ हम्‍तैं,
क्‍या पाड़ की यादि नि औणि.......

मनखि छौं हम उत्‍तराखण्‍ड का,
मन मा कुछ अहसास करा,
उत्‍तराखण्‍ड की धरती खुदेणि,
तुम भी खुदेवा जरा जरा......
बिजली पाणी सी सबक लेवा,
पाड़ सी तुम नातु जोड़ा,
कळकेर धरती उत्‍तराखण्‍ड की,
प्‍यार करा तुम वीं सी थोड़ा.......


दिनांक 6.12.2015

एक गौं मा.....


जब क्‍वी मुर्दा मरि,
गौं का मनख्‍यौंन,
मुर्दा बांधिक अलग मू धरि,
रिस्‍तेदारी का एक मनखिन,
अजौं क्‍या देर छ चर्चा करि,
गौं का मनखि बतौण लग्‍यन,
साब अजौं जरा टैम लगलु,
एक आदिम हैक्‍का गौं,
पीपा ल्‍हीक जयुं छ,
किलैकि वख बंदबस्‍त करयुं छ.....

जब ऊ आदिम अपणि कांधि मा,
भरयुं पीपा ल्‍हीक आई,
सब्‍बि मड़ेड्यौंन घूंट लगाई,
तब मुर्दा कांधि मा ऊठाई....
बस मा बैठिक जब,
बाटा मा एक बजार मा ऐन,
होटल मा पेट पूजा कू गैन,
घूंट लगैक खूब मुर्गा उड़ैन.....
तब कुछ मनखि बोन्‍न लग्‍यन,
अपणा खुट्टौन समसाण जाणा छौं,
मुर्दा फर अपणि कांध लगाणा छौं....

क्‍ल्‍पना निछ कवि जिज्ञासु की,
एक सज्‍जन कू बतैयुं हाल छ,
बात या हमारा पाड़ किछ,
जख हमारु गढ़वाळ छ,
मनख्‍वात मरिगी आज,
बोल्‍दन सब्‍य ह्वैगि समाज,
किलै होणु छ आज यनु,
नि रैगि सब्‍य हमारु समाज........

दिनांक 15.12.2015

मलेेथा की कूल