Thursday, July 28, 2011

"खैलि! हे लठ्याळा"

(रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु" )
यीं दुनियाँ मा अयुं छैं तू, ज्यू भरिक खा,
भटकणु किलै छैं हे, सुदि, ऊँड फुन्ड न जा...
चकड़ीतु की चाल देख, देश मुल्क का हाल देख,
मनखि बाघ बण्यां छन, जौंसि, लगणि छ डौर,
डरि डरिक कतै नि रणु, मनखि छैं तू ,
अफु पछाण, "खैलि! हे लठ्याळा",
यीं दुनियाँ मा अयुं छैं तू, ज्यू भरिक खा,
भटकणु किलै छैं हे, सुदि, ऊँड फुन्ड न जा...

गितांग का गीत सुणि, त्वैन मन मा कुछ नि गुणि,
खूब खा मैं बोन्नु छौं, भोळ मिलु या न मिलु,
रैलु रैठु घल्च पल्च, तू खूब सपोड़,
मैं नि पुछणु "कथगा खैल्यु",
मौका अबरि तेरा हाथ, तू कतै न छोड़,
"खैलि! हे लठ्याळा",
यीं दुनियाँ मा अयुं छैं तू, ज्यू भरिक खा,
भटकणु किलै छैं हे, सुदि, ऊँड फुन्ड न जा...
(सर्वाधिकार सुरक्षित अवं प्रकाशित २८.७.२०११)
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Wednesday, July 27, 2011

"छकि छक्किक खाणु छौं"

(रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु)
मेरु क्या तुमारु छ, बाल बच्चा पळ्ना छन,
क्या बोन्न हे, तुमारु ही सारू छ...
हम नेतौं का हाथ देखा, लोकतंत्र प्यारू छ,
"छकि छक्किक खाणु छौं",
क्या बोन्न हे, तुमारु ही सारू छ...
तुम भि खावा मैकु बतावा, जिंदगी सुदि न गंवावा,
हमारा तुमारा हाथ मा, लोकतंत्र प्यारू छ,
"छकि छक्किक खाणु छौं",
क्या बोन्न हे, तुमारु ही सारू छ...
जन भि सोचा अपणा मन मा,
आज बग्त हमारू छ, हमारू क्या छ,
कृपा तुमारी, सब कुछ तुमारु छ,
"छकि छक्किक खाणु छौं",
क्या बोन्न हे, तुमारु ही सारू छ...
हमारा खातिर जन भि सोचा,
लोकतंत्र प्यारू छ,
तुमारा तिलु कू तेल पेणु,
"छकि छक्किक खाणु छौं",
क्या बोन्न हे, तुमारु ही सारू छ...
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित २७६.७.२०११)
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Tuesday, July 26, 2011

"पंछी होन्दा"

रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित दिनांक: २५.७.२०११)
पैलि प्यारा पहाड़, फुर्र उड़िक जान्दा,
भमोरा,काफळ,खैणा, तिम्ला खूब खांदा,
बांज, बुरांश की डाळ्यौं मा बैठिक,
टक्क लगैक, वे उत्तराखंड हिमालय तैं हेरदा...
अनंत आकाश मा उड़ि-उड़िक,
पंच बद्री,पंच केदार, पंच प्रयाग,
जगनाथ,बागनाथ जी का दर्शन करदा...
देवभूमि देवप्रयाग जख,
श्री रामचन्द्र जी त्रेता युग मा ऐ था,
मनोहारी अलकनंदा-भागीरथी संगम फर,
नहेन्दा अर टक्क लगैक देखदा...
चन्द्रबदनी,सुरकंडा,कुंजापुरी,धारीदेवी,
कमलेश्वर, किकलेश्वर, सैणा श्रीनगर,
देवी देवतौं का दर्शन करदा....
प्यारा उत्तराखंड का हरेक गौं का,
रीत-रिवाज, संस्कृति का दर्शन करदा,
"पंछी होन्दा" आजाद ह्वैक,
देवभूमि उत्तराखंड मा विचरण करदा.
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Monday, July 25, 2011

"पहाड़ की घुघती"

(रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित दिनांक: २३.७.२०११)
उड़ि-उड़ि डाळ्यौं ऐंच, बैठिं छन ऊदास,
हेरदि ऊँड फुन्ड, प्यारा पहाड़ु का पास....
खुदेड़ बेटी ब्वारी जौमु, देन्दि थै रैबार,
टपराणि छन आज, देखा दौं हपार....
खुदेड़ु की खुद आज, प्यारी घुघत्यौं तैं लगणि,
बौड़ि आला खुदेड़, मन की आस छ जगणि....
पहाड़ की घुघत्यौं तुम, न होवा ऊदास,
चलिग्यन जू परदेश, बौड़ि आला पास...
खुदेण लगिं छन, ऊ घुघती प्यारी,
औणि याद ऊँ तैं, देखा दौं हमारी....
पहाड़ का मन्ख्यौं तुम, यनु त पछाणा,
तुम बिन उदास घुघती, वख किलै नि जाणा...
"पहाड़ की घुघती" छन, आज भौत ऊदास,
ह्वै सकु त पौंछि जावा, तुम फुर्र ऊँका पास....
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Thursday, July 21, 2011

"पाणी का भरयाँ ताल"

(हमारा कुमाऊँ अर गढ़वाळ)

(रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित दिनांक: २१.७.२०११)

जन नैनीताल, काणाताल, डोडीताल, मात्री ताल,
गरूड़ ताल, नौकुचिया ताल, सूखा ताल, राम ताल,
लक्ष्मण ताल, सीता ताल, नल-दमयंती ताल, भीमताल,
क्या कायम रलु सदानि अस्तित्व यूंकू, मन मा छ सवाल?
हमारा प्यारा रंगीला कुमाऊँ अर छबीला गढ़वाळ.......

पहाड़ मा "पाणी का भरयाँ ताल",
फिर भी पर्वतजन तिस्वाळा, मन मा छ सवाल?
जल संरक्षण, पहाड़ की पुरातन परम्परा,
आज यथगा जागरूक निछन पर्वतजन,
अतीत कू प्रयास, मन्ख्यौं कू या प्रकृति कू,
हमारा खातिर छ मिसाल.....

पहाड़ की सुन्दरता मा चार चाँद लगौंदा छन,
हरा भरा जंगळ अर "पाणी का भरयाँ ताल",
हैंसदु हिमालय, जख बिटि निकल्दी छन धौळि,
जन अलकनंदा, भागीरथी, यमुना, मंदाकनी,
पिंडर, कोशी, रामगंगा, पूर्वी पश्चिमी नयार,
धोन्दी छन तन मन कू मैल पहाड़ का मन्ख्यौं कू,
उदगम यूंका छन "पाणी का भरयाँ ताल"......
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Wednesday, July 20, 2011

"रौंत्याळि डांड्यौं मा"

(रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")
जख बिति होलु बचपन, सोचा हे! हमारू,
देवतौं कू मुल्क छ, हमारू भी प्यारू,
हरा भरा बण अर लाल माटा की मटखाणी,
गाड अर गद्न्यौं मा बगदु ठण्डु पाणी,
बथौं कू फुम्फ्याट अर बरखा बत्वाणि,
धार ऐंच बैठिक हेरा, भौत खुश होंदु छ पराणि...
हे दिदौं, भुलौं वे मुल्क की, हम्न कदर नि जाणि,
दूर देश परदेश मा जब-जब याद औन्दि छ,
भौत क्वांसू होंदु छ हमारू पापी पराणि,
टरकणि, मन मा गाणी, वख छ सब्बि धाणी,
लगदि होलि आपका मन मा स्याणी,
जरूर जवा "रौंत्याळि डांड्यौं मा",
देख्यन, कथगा खुश होलु पराणि,
दाळ, गौथ, खाजा, बुखणा, स्यो, नारंगी,
हे! मिलली हमारा मुल्क घ्यू की माणी.
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित दिनांक: २०.७.२०११)
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Monday, July 18, 2011

"पहाड़ की पठाळ"

(रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")
हमारा प्यारा कुमाऊँ अर गढ़वाळ,
जौन ढक्याँ होन्दा छन, हमारा प्यारा घौर,
तब्बित, भौत प्यारा लगदा छन,
जख होंदु छ छोरों कू किब्लाट,
पहाड़ की वास्तुकला का अनुरूप बण्यां,
तिबारी, डिंडाळि, नीमदरी, बंद मकान,
"पहाड़ की पठाळ" सी ढक्याँ, हमारा मुल्क की शान.....
लेंटरदार मकान की चाहत मा, नयाँ जमाना कू घौर बणैक,
हे पर्वतजन, "पहाड़ की पठाळ" कू, कतै न करा त्रिस्कार,
जौंकी छत्रछाया मा, बिति बचपन अर मिलि प्यार,
लगावा "पहाड़ की पठाळ", नयाँ जमाना का मकान फर,
फेर हेर्यन दूर बिटि, अपणु सुपिनों कू प्यारू घौर,
जगा देवा दिल मा अपणा, "पहाड़ की पठाळ" सी,
रखा जुग-जुग तक प्यार, होलु संस्कृति कू सृंगार,
कायम रलि पहाड़ की, दुर्लभ पुरातन वास्तुकला,
परम्परा छ हमारी, देखि होलु आपन पहाड़ मा कखि,
"पहाड़ की पठाळ" सी ढक्याँ घौर मा, खोळि फर गणेश.
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित दिनांक: १८.७.२०११)

Friday, July 15, 2011

"ऊ प्यारा दिन"

(रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु" १५.७.२०११)
आज भी याद औन्दा छन, जू प्यारा मुल्क पहाड़ मा बित्यन,
याद जब जब करदा छौं, व्यथित ह्वै जान्दु भारी मायाळु मन.
सोचा स्कूल मा पढ़ि होला, अर लिखि होलु पाटी फर माटा मा,
खति होलु ऊ प्यारू बचपन, बल स्कूल बिटि गौं तक का बाटा मा.
खाई होला खैणा, तिम्ला, काफळ, प्यारा मुल्क की प्यारी किनगोड़,
लम्डदु- लम्डदु खूब भागी होला, गौं का बाटा फुन्ड लगै होलि खूब होड़.
थौळ जाण कू ऊलार अर रगर्याट, पैरि होलु झीलु पट्टा वाळु लम्बू सुलार,
गै होला कौथगेरू का दगड़ा, हिटि होला प्यारा पहाड़ की ऊकाळ-ऊद्यार.
करि होलु प्यारा दगड़्यौं कू दगड़ु, पढ़ी लिखि होला अपणा प्यारा स्कूल,
बिगळेग्यन आज सब्बि कख होला, मायाजाळ मा अल्झिक गयौं आज भूल.
देखि थौ जब ऊकाळ हिटिक गै था, प्यारी ब्वै का दगड़ा चन्द्रबदनी मंदिर,
हेरि थौ उत्तराखण्ड हिमालय पैलि बार, दूर वथैं भी जख छ सुरकंडा मंदिर.
पहाड़ फर बचपन बिति, नौकर्याळ, फौजी, हळ्या, दाना सयाणौ की बात,
सुणदा था टक्क लगैक ध्यान सी, कंदुड़ फर धरिक अपणा द्वी प्यारा हाथ.
कवि "जिज्ञासु" की कल्पना मा, "ऊ प्यारा दिन" आज भी बस्याँ छन,
कुतग्याळि सी लगदी छन आज, जब-जब याद करदु छ मेरु कविमन
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित)
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Thursday, July 7, 2011

(श्री यंत्र टापू शहीद यशोधरबेंजवाल)

शत् शत् नमन आपतैं,
अर राजेश रावत जी कू,
१०, नवम्बर-१९९४ का दिन,
आपन दिनि अपणु बलिदान,
श्रीयंत्र टापू श्रीनगर गढ़वाल मू,
सुपिनों मा बस्याँ,
पराणु सी प्यारा,
उत्तराखण्ड राज्य का खातिर.

आपकु शरीर अर सुपिना,
तैन्न लग्याँ था अलकनंदा मा,
देखि होलि आपन,
ज्व अपणा आँखौंन,
औन्दि जान्दि बग्त,
आन्दोलन धरना का बग्त,
जैन अंत समय मा,
दिनि आपतैं जगा,
अपणा विराट हृदय मा.

उत्तराखण्ड राज्य बणि,
सुपिनु साकार ह्वै,
सार्थक ह्वे बलिदान आपकु,
दुःख आज छ मन मा,
आप हमारा बीच होन्दा,
कथगा खुश होन्दा,
आप अर हम,
अर हमारू पराण,
हे स्वर्गवासी,
"शहीद यशोधर बेंजवाल" जी.

रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु "
(सर्वाधिकार सुरक्षित १६.७.२०१०)

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"श्रीयंत्र टापू"

उत्तराखंड आन्दोलन कू गवाह छ,
जैन देखि,
आन्दोलनकर्ताओं कू दमन,
क्रूर पुलिस का द्वारा.

जौन आन्दोलनकारी,
बन्दूक का बटन,
डंडौन अर ढुंगौन,
बुरी तरौं पिट्यन,
निर्दयी ह्वैक.

अलकनन्दा उदास थै,
घटना की गवाह थै,
आन्दोलनकर्ताओं कू जोश,
बलिदानियौं कू बलिदान,
रंग ल्ह्याई,
सुपिनु साकार ह्वै,
उत्तराखण्ड राज्य बणि.

कैकु फैदा ह्वै?
जनता कू,
आन्दोलनकर्ताओं कू,
या नेतौं कू.

रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु "
(सर्वाधिकार सुरक्षित ८.६.२०१०)
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Wednesday, July 6, 2011

"मन ऊदास छ"

(रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु" ६.७.२०११)
कुजाणि किलै? ये दूर देश मा,
वे प्यारा उत्तराखण्ड प्रदेश, गढ़देश सी दूर,
आज अफुमा होयुं छ, बोला त खोयुं छ,
खुदेड़ दिन भि निछन...
होंदु होलु अहसास आपतैं भि,
जब चंचल मन, ठहरी जांदु छ,
द्योरा मा आज ये बस्गाळ,
बदळ बोला या मेघदूत, जौं तैं हेरि देखि,
"मन ऊदास छ", यनु सोचिक,
सैद अयाँ छन, वे प्यारा मुल्क पहाड़ सी,
रैबार ल्हीक, कै लंगि संगि या दगड़्या कू,
मन पराण सी प्यारी माँ जी कू,
पर बात ज्व भि हो, "मन ऊदास छ".
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Tuesday, July 5, 2011

"हे! बसगाळ बौड़िक ऎगि"

(रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु" ५.७.२०११)
यनु लगण लग्युं छ, जनु यीं जिंदगी मा भी,
जब मिलि ख़ुशी मन की, अहसास होंणु छ...
पर चला बात करदु, प्यारा पहाड़ फर बसगाळ की,
हमारा तुमारा वे प्यारा, कुमाऊँ अर गढ़वाळ की....
कड़ाक किड़की द्योरू जब, घनघोर कुयेड़ी छैगी,
कवि "जिज्ञासु" तैं कल्पना मा, प्यारू पहाड़ याद ऐगी..
बरखा लगि कूड़ी की पठाळ, जख बिटि पणद्यारि लगणि,
होलि फसल पात ऐन्सु खूब, मन मा एक आस सी जगणि..
धौळी, गाड, गदना अर धारा, प्यारा छौड़ौं कू छछड़ाट,
बैठ्युं बोडा तिबारी मा, होण लग्युं वैका ह्वक्का कू गुगड़ाट..
दूर कखि सारी मा ढोल बजणा, बल हर्षु काका की गुड्वार्त,
हबरि खूब झूमणा गुड्वार्ति, औजि लगौण लग्युं छ पंड्वार्त..
चौक मा चचेंडीं, काखड़ी, मुंगरी, सारी मा मार्सू होयुं लाल,
कोदू , झंगोरू, सेरों में साट्टी, हे! लग्युं छ बल बसगाळ......
"हे! बसगाळ बौड़िक ऎगि", मन भी कथगा खुश ह्वैगी,
दर्द भरी दिल्ली मा यनु निछ,वे पहाड़ बसगाळ छैगी...
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Monday, July 4, 2011

"यकुलि-यकुलि"

(रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु" ४.७.२०११)
चन्द्रबदनी का डांडा, लखि बखि बण का बीच,
जख बिटि दिखेणु छ, प्यारू खासपट्टी हपार,
हिन्ड़ोलाखाळ, जामणिखाळ अर रौड़धार,
प्यारू अंजनीसैण, लामरीधार, जाखणीधार....
कखि दूर हैंसणा छन, प्यारा हिंवाळा कांठा,
पैर्यां छन जौंका मुंड मा, ह्यूं का सफ़ेद ठांटा,
कुलदेवी चन्द्रबदनी मंदिर, लगणु छ कथगा प्यारू,
क्या बोन्न हे दगड़्यौं, जख प्यारू मुल्क हमारू,
ब्वारी अलकनन्दा, सासू भागीरथी, संगम देवप्रयाग,
भेंटेणी छन द्वी जख, देखा बल कना छन बड़ा भाग,
कल्पना कवि "जिज्ञासु" की, करा आप भी अहसास,
पोथलु सी उड़ी जावा, पौंछा कुलदेवी चन्द्रबदनी का पास,
"यकुलि-यकुलि" बैठिक, वे प्यारा मुल्क सी दूर,
ज्यू कनु छ आज मेरु, उड़िक चलि जौं खासपट्टी फुर्र..
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Friday, July 1, 2011

"बोडि कू फोन"

(रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु)
बोडि देळि मा बैठिक, धौण ढगडेक देखण लगिं थै,
हाथ मा धरिक, अपणु पराणु सी प्यारू, मोबाईल फोन,
ब्याखनि की बगत थै, धार ऐंच हैंसण लगिं थै, बल जोन,
आज क्या ह्वै होलु? नि आई मेरा बेटा धन सिंह कू फोन.

अचाणचक्क! कखि बिटि आई, धन सिंह कू दगड़्या मकानु,
बोन्न लगि, हे बोडि! क्या छैं देखणि, हाथ मा पकड़िक आज फोन,
बोडि बोन्न लगि, हे बेटा! आज ये निर्भागि फर सास निछ बाच,
बेटा धन सिंह कू फोन औण थौ, लग्युं छौं मैं कबरी बिटि मन मा सास,
मकानुन बोलि, क्या बोन्न हे बोडि, तेरु त छ यु फोन, बोडाफोन,
बोडिन फट्ट सी बोलि! हे लाटा, मेरा काला, यु निछ तेरा बोडा कू फोन,
ऊ बिचारा त, आज स्वर्ग मा छन, हमारा पित्र देवता बणिक,
हे छोरा! यु त मेरु छ, या यनु बोल "बोडि कू फोन".
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मलेेथा की कूल